क्षितिज
दीपा गेरा
कानपुर
क्या रिश्ता हैं, तेरा मेरा”
हर शय में उसकी बातें हैं…
कई दिन और कई रातें हैं..
गीत जो गाया है उसने…
मैनें वही गुनगुनाया हैं…
कहने को कोई नहीं…
बस अच्छे वक्त के साथी हैं..
सुख दुःख तो केवल हमने,
फोन पर ही बाॅटें हैं…!!
क्या रिश्ता हैं,तेरा मेरा…
जो मैं इतना खोई हूँ…
न मिलने पर,
और मिलने के बाद भी…
कितना मैं रोंई हूँ !!
क्यो भगवान मिलाता हैं…?!
जब कोई मिल ही नहीं पाता हैं…
शाम सवेरे सपनों में भी…
मैनें उसको पाया हैं…
वो उतना मेरा हैं, जितना उसने अपनाया हैं…
मेरे लिए तो आज भी वो,
मेरी हर शय में समाया हैं…
क्या रिश्ता हैं, तेरा मेरा !!?