मुखिया का फ्री हेंड : क्या मप्र सच में माफिया मुक्त होगा, या नूरा कुश्ती ही हासिल है?

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पंकज शुक्ला

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पुलिस और प्रशासन को फ्री हेंड दिया है कि वह मप्र से माफिया राज खत्म करे। इस आदेश के बाद भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालिया में पुलिस और प्रशासन माफिया पर टूट पड़े हैं। माफिया राज की कमर तोड़ने के लिए युद्धस्तर पर कार्रवाई की जा रही है। खबर है कि इंदौर में माफिया के खिलाफ शिकायत के लिए अधिकारियों के फोन नंबर जारी किए गए तो पहले दिन ही ढाई सौ से ज्यादा फोन आए और मैसेज के जरिए 95 लोगों ने शिकायतें की। नाथ की इस पहल का पीड़ित जनता ने तो बेहतर स्वागत किया है। मगर, सवाल यह है कि क्या स्थानीय प्रशासन और पुलिस मुख्यमंत्री की मंशा को हूबहू मैदान में उतार पाएंगे? क्या पिछली तमाम मुहिमों की तरह यह भी गरीब को निपटाओ रसूखदार को बचाओ अभियान तो न बन कर रह जाएगा?

मोटे रूप में कह सकते हैं कि जितने सेक्टर हैं, लगभग उतने ही माफिया हैं जो समानांतर अपने साम्राज्य फैलाए हुए हैं। जैसे, शिक्षा माफिया, अस्पतालों में माफिया, रेत माफिया, शराब माफिया, जमीनों पर कब्जे करने वाले, अवैध वसूली करने वाले, सरकारी राहत की लूट करने वाले।आदि। हनी ट्रेप और उसके मीडिया में खुलासे के बाद सक्रिय हुए प्रशासन व पुलिस को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक टारगेट दे दिया है मप्र को माफिया मुक्त करो। यह मुहिम जहां से आरंभ हुई उसके उद्देश्य की बात बाद में मगर इसका अंत कहां होगा इस पर बात करना फिलवक्त जरूरी है। इसलिए जरूरी है कि इसके आरंभ को नहीं बदला जा सकता मगर इस मुहिम की दिशा और अंत को सुनियोजित किया जा सकता है।

मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर आदि शहरों में सक्रिय माफिया का रिकॉर्ड खंगाला गया। अपराधों की लंबी सूचियां सामने आई हैं। पार्किंग की जमीन पर कब्जा कर निर्माण करने वालों के खिलाफ इंदौर नगर निगम ने कार्रवाई प्रारंभ की। किसी ने बेसमेंट में पार्किंग के स्थान पर पब बना लिया है तो किसी ने दुकानें और हॉस्पिटल खोल दिए हैं। भोपाल में अभियान के पहले दिन केरवा डेम रोड पर बने करीब आधा दर्जन रेस्टोंरेंट को तोड़ा गया। मजेदार बात यह है कि इन सभी के बारे में प्रशासन को अनैतिक कार्य होने की शिकायतें भी लंबे समय से मिल रही थीं। अब तक चुप थे क्योंकि पुलिस और नेताओं के संरक्षण की वजह से अपराधी बचे रहे। कार्रवाई छोटे गुंडों पर ही होती रही। बड़े माफियाओं को पुलिस जानती है मगर ये अपने आकाओं के दम पर अड़ीबाजी, ब्लैकमेलिंग और सूदखोरी कर रहे हैं।

अब प्रदेश के मुखिया ने फ्री हेंड दिया है तो क्या प्रशासन और पुलिस नूरा कुश्ती से बच कर वास्तविक कार्रवाई करेगी? यदि हां, तो क्या हम उम्मीद करें कि पूरे प्रदेश में तालाबों और पोखरों के कैचमेंट एरिया में हुए कब्जे भी हटा दिए जाएंगे? भोपाल के बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में तो बस्तियां बस गई हैं। मैरिज गार्डन भी हैं। इन्हें हटाने के प्रयास हुए लेकिन सफलता नहीं मिली। कालियासोत नदी के कैचमेंट एरिया पर भू-माफिया और अफसरों की साठगांठ से बहुमंजिला इमारतें बन गई हैं। झुग्गी बस्ती भी हैं। इंदौर के खजराना तालाब और सिरपुर तालाब के कैचमेंट एरिया और पाल पर अतिक्रमण है, जबकि ग्वालियर क्षेत्र का जल स्तर बढ़ाने वाले छह बांधों पर अतिक्रमण हो रहा है। यहां अवैध निर्माण के साथ बस्तियां बस गई हैं। कई जगह तो ईट-भट्टे संचालित हो रहे हैं। रीवा जिले के 56 तालाब में से अधिकांश अतिक्रमण की चपेट में हैं। भोपाल के एमपी नगर जैसे व्यावसायिक क्षेत्रों में गुमटी माफिया सक्रिय है। भाजपा के पूर्व विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह तो इनके बचाव में संघर्ष करते रहे हैं। अपने समर्थकों की गुमटियां रखवाने का संघर्ष हिंसक भी हो जाता है। चंबल क्षेत्र में रेत माफिया हैं। क्या उम्मीद करें कि माफिया राज की समाप्ति की परिभाषा में ये तमाम माफिया भी आएंगे?

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है