राघवेनदर
जो लोग देश को अपना कहते हैं उन्हें ये कहानी समझकर काम करने की जरूरत है। जाहिर है जो आग लगा रहा है देश उसका भले ही हो लेकिन उसकी मुल्क से मुहब्बत पाक साफ तो नहीं लगती। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इनकी पार्टी और विचारधारा किसी की पसंद नपसंद हो सकती है लेकिन प्रदर्शन के नाम पर होने वाली हिंसा पर कांग्रेस जैसी अहिंसा की पुजारी पार्टी अगर चुप्पी साधती है तो फिर मुल्क के बहुत से लोग हैदराबाद के औबेसी की तारीफ जरुर करेंगे। औबेसी ने दो दिन पहले ही कहा है कि हम हर तरह की हिंसा की निंदा करते हैं। संविधान ने हमें विरोध और प्रदर्शऩ करने का अधिकार दिया है इसका हर हाल में इस्तेमाल किया जाना चाहिए लेकिन इसमें किसी भी तरह की हिंसा की कोई गुंजाईश नहीं है। हमें उसकी हर हाल में निंदा करनी पड़ेगी। अपने डेढ़ मिनट के संदेश में वे कहते हैं हिंसा क्यों होनी चाहिए। हरगिज नहीं। उन्होंने कहा हमारा प्रदर्शऩ देश के संविधान और उसकी रुह को बचाने के लिए है। महात्मा गांधी से लेकर मौलाना अबुलकलाम से हमें अहिंसा की जो परंपरा मिली है उसे बचाना है। दूसरी तरफ कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में सोनिया गांधी से लेकर राहुल और प्रियंका गांधी तक ने न तो हिंसा की आलोचना की और न उसे रोकने का आव्हान किया। एक कांग्रेस के नेता ने तो कहा कि लोग हमारी सुनते तो आज हम सरकार में न होते। गोया इस तरह उन्होंने शांति की अपील करने से किनारा कर लिया।
ऐसे लोगों की तलाश और उसके बाद उन्हें डिटेंशन कैंप में रख उनको उनके देश भेजा जाएगा। इसके साथ केन्द्र सरकार कहती है कि एनआरसी के लिए कोई नए कैंप नहीं खोले जाएंगे। लेकिन अविश्वास का आलम ये है कि गृह मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक कह रहे हैं कि कोई भी भारतीय नागरिक इन कानूनों से संकट में नहीं आएगा। दस्तावेजों को लेकर भी कहा जा रहा है कि जो आज नागरिक है वह खतरे में नहीं है। घुसपैठिए जरूर बाहर होंगे और पड़ोसी इस्लामिक कन्ट्री जैसे पाकिस्तान,बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना से जान बचाकर भारत आने वालों को नागरिकता दी जाएगी। लेकिन अविश्वास का आलम ये है कि भारतीय मुसलमान केन्द्र सरकार की इस बात पर भरोसा नहीं कर रहा है। यही सबसे बड़ा संकट है। डाक्टर अली की बात फिर यहां महत्वपूर्ण है कि -सरकार को कानून बनाने के पहले पूरे देश को भरोसे में लेना चाहिए था। जैसा कि तीन तलाक पर कानून बनाने और राम मंदिर के मुद्दे पर संविधान पीठ की सुनवाई के दौरान किया गया था।
धारा 370 हटाने का मामला अलबत्ता अचानक लिया गया लगता है। लेकिन इसे भी पूरा देश वर्षों से एक जरूरत मानता आ रहा था। और यह देश के एक सीमावर्ती राज्य का मामला था। भाजपा ने इसे राष्ट्रवाद और पाकिस्तान से जोड़कर सबके सामने रखा तो हिन्दु मुसलमान सबने इसे राष्ट्रभक्ति के नाम पर मन बेमन से ही सही स्वीकार किया। अलग बात है कि इसके लिए भी जम्मू कश्मीर में आर्मी को थाने अपने हाथ में लेने पड़े। स्थानीय पुलिस से बतौर सतर्कता हथियार जमा करा लिए गए। संचार साधनों में मोबाइल फोन,इंटरनेट सेवाएं रोकनी पड़ी औऱ चुनिंदा शीर्ष नेताओं को हिरासत में लेना पड़ा। जब मोदी सरकार ने ऐसा राष्ट्र हित में करना बताया तो सबने माना भी। मगर सीएए के मुद्दे पर लगता है सरकार ने लोगों को खासतौर से अल्पसंख्यकों को भरोसे में लिए बिना जल्दबाजी की नतीजा सामने है देश में हिंसा और आगजनी की घटनाएं आम होने लगी हैं।
यद्पि असम के बाद यूपी बिहार इसमें ज्यादा प्रभावित हैं। राजनैतिक जमीन मजबूत करने के लिए पार्टियां इसे अपने लिए एक बड़ा अवसर मान बैठी हैं। सर्दी के मौसम में अलाव जलाने के बजाए शहरों में आग लगाकर लोग आग ताप रहे हैं। एक और बात जो लोग ये उम्मीद लगाए हैं कि हम विरोध करके एनआरसी और सीएए रुकवा देंगे तो मेरी समझ से वे मुगालते में हैं। उन्हें याद करना चाहिए अल्पमत में आए प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल कमीशन लागू किया था और पूरा देश इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आया था। जगह जगह हिंसा,आगजनी और आत्मदाह की घटनाएं हुई थीं। हम सब देख रहे हैं आयोग की सिफारिशें लागू हैं और उस समय जो मरने-मारने की बात कर रहे थे वे सब उसी के साथ जीने के आदी भी हो गए हैं। जैसे धारा 370 हटाने पर भी महबूबा मुफ्ती,फारुख अब्दुल्ला समेत दर्जनों लोग खून की नदियां बहने की बातें कर रहे थे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसी तरह एनआरसी और सीएए में भी होने वाला है।