‘ऊंची दुकान और फीके पकवान”, द रॉयल क्यूजिन फूड फेस्टिवल

0
1247

TIO
शशी कुमार केसवानी/ मुद्रा केसवानी 

द रॉयल क्यूजिन फूड फेस्टिवल का उद्धाटन तो बहुत ही भव्य हो गया और होना चाहिए था। प्रदेशभर के 10 शाही परिवारों से जुड़े लोग जो आए थे। मिंटो हॉल में आयोजित द रॉयल क्यूजिन फूड फेस्टिवल में ऐसा कही स्वाद महसूस नहीं हुआ जो रॉयल फैमिली में खाया जाता हो या परोसा जाता हो। या यह जरूर है कुछ रॉयल परिवारों के आए लोग व उनके शैफ ने कुछ खास चीजें बनाई। जिनका स्वाद थोड़ा अलग था पर खास नहीं था। जैसे रीवा महाराजा पुखराज सिंह ने इंद्रहर बनाया जो अपने आप में एक अलग तरह का स्वाद समेटे था पर बाकी चीजें तो सामान्य रूप से जो होटलों में खाना मिलता है उसके अलग -बगल में भी कहीं नजर नहीं आया। यह समॐक्क नहीं आ रहा कि जबकि इस आयोजन से मुख्यमंत्री स्वयं जुड़े हुए है इस आयोजन से तो यह हाल है वरना क्या होता ये कहना भी मुश्किल है।

भोपाल की बेगमों की बहुत बड़ी रैसेपी है जिसके आसपास भी कुछ नजर नहीं आया। रीवा की भी बहुत सी चीजें है जो कहीं नजर नहीं आई। मुॐक्के तो लगता है यह एक अच्छा फूड फेस्टिवल की बजाय सरकारी आयोजन ही होकर न रह जाए। मसलन नरसिंहगढ़ की 400 साल पुरानी रैसिपी शाही गोश्त जिसे बताया जा रहा था उससे बेहतर तो भोपाल के छोटे-मोटे होटलों में ही मिल जाता है। समॐक्क में यह नहीं आ रहा है कि टूरिज्म से जुड़े लोगों को क्या खाने की समॐक्क कम है या स्वाद का पता नहीं है। खाना वो होता है जो आपकी रूहों को तरोताजा कर दे और मुंह से वाह निकले पर न रूह ताजा हुई न ही वाह निकला। इससे तो बेहतर है 1500 रुपए में शानदार किस्म से खाना खाया जा सकता है।

जैसे मेवाड़ स्टेट का मटन पुलाव बहुत ही साधारण तरीके का बना हुआ था। आमतौर पर घरों में मटन फुलाव ऐसा ही बनता है इसमें न कोई शैफ के हाथ का जादू था न कोई कमाल था। जबकि मेवाड़ का दही कबाब बहुत अच्छा बनता है पर वो स्वाद भोपाल में कही नजर नहीं आया। होलकर राजघराने की सिग्नेचर डिसेज, बटेर सुर्वेदार, स्मोक्ड अनार रायता भी ठीक ठाक था। जो आम लोगों को पसंद कम ही आएगा। जबकि होलकर घराने की बहुत सारी डिसेज ऐसी है, जिसके बारे में यह कोई जिक्र ही नहीं था। भोपाल राजघराने की जर्दा पुलाव, मकाई शोरबा, खोया कीमा मटर, चुकंदर का हलवा, कबाब गोश्त, गोश्त के पसंदे, भोपाली रिजाला था। इसमें भोपाल के राजघराने का स्वाद दूर-दूर तक नहीं था। रिजाला तो बहुत ही साधारण सा लग रहा था। इस रजाले से तो बेहतर भोपाल के कई होटलों में रिजाला बनता है, जिसे खाकर लोग वाह-वाह करते जाते है।

आयोजन में खूब फोटो खीेंचे गए सेल्फियों का दौर भी चला पर जो खाने पर फोकस होना चाहिए था वो किसी का नहीं था।
अगर सरकार को सच में प्रदेश की प्रोफाइल ही चेंज करनी है तो प्रदेश से बाहर जाकर प्रदेश का खाना खिलाना है तो खाने का स्तर भी ऊपर ले जाना होगा। जिसके लिए खास लोगों को जिनको स्वाद की समॐक्क है उन्हें भी जोड़ना होगा वरना ”ऊंची दुकान और फीके पकवान” वाली कहावत बनकर रह जाएगा।