फ्लॉप-शो बनकर रह गया द रॉयल क्यूजिन फूड फेस्टिवल

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शशी कुमार केसवानी

मिंटो हॉल में आयोजित द रॉयल क्यूजिन फूड फेस्टिवल लगभग फ्लॉप शो रहा है। राज परिवार के आए लोग या प्रतिनिधि उसी दिन रवाना हो गए। न तो उनके यहां के शैफ है हां उनके किचन में काम करने वाले कुछ लोग जरूर खाना बना रहे है साथ में आईएचएम भोपाल के स्टूडेंट खाना बना रहे है जिनको स्वाद के बारे में अभी बहुत जानकारी नहीं है। जो खाने की बारीकियां होती है वो उन्हें पता है न ही कोई बताने वाला है। सर्व हो रही चीजें न तो रायल टच की है न ही उसके आसपास की। प्रेजेंटेशन भी बहुत अच्छा नहीं है, जिसके कारण लोगों को न तो खाने में मजा आ रहा है न ही प्रजेंटेशन में। जो चीजें सर्व की जा रही है आम तौर पर घरों में उसी तरह का खाना खाया जाता है।

इससे बेहतर तो होटलों में अच्छे प्रजेंटेशन के साथ में ऐसी चीजें बेहतर स्वाद के साथ सर्व की जाती रही है। ऐसा लगता है कि शैफ अच्छे हो न हो डायटीशन से पूरी तरह सलाह लेकर चीजें बनाई जा रही है। ये एक साधारण सी बात है। चने की भाजी और बर्री रोटी, ग्लूटन फ्री होती है। ये बात लगभग खाने के शोकीन लोगों को पता ही रहती है। बेसन और आंवले की सब्जियां ट्रेडिशनल फूड में आती है न कि रायल फूड में। मैथी, चने की सब्जियां साधारण परिवारों में अलग-अलग तरह से बनाकर खाई जाती है यह राजसी खाना कबसे हो गया।

यह समझ में नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर एक शाही व्यंजनों का खूब मजाक उड़ा है। इस तरह से प्रदेश के बेहतर खाने को पीछे धकेल कर अजब-गजब कुछ खाना परोसा जा रहा है। जिससे प्रदेश की साख बढ़ने की बजाय गिरेगी। लगता है आयोजन बहुत जल्दबाजी में किया गया है। इसकी पूरी तैयारी नहीं की गई है। जिसके कारण भोपाल के लोग फेस्टिवल से काफी निराश नजर आएंगे। इतने बढ़े आयोजन में 15-20 टेबल लगना मजाक की बात लगती है। अगर सचमुच प्रदेश के खाने को बढ़ाना देना है तो उसके लिए पहले से बड़ी तैयारी करना पड़ेगी और विशेषज्ञों से सलाह लेकर प्रदेश से बाहर देशभर में खाने को एक नया मुकाम दिलवाया जा सकता है। इसके लिए एक टीम का गठन होना जरूरी है। वरना यह कहावत फिट बैठती है नानक अंधा अंधा ठेलिया। याने अंधे अंधों को रास्ता दिखा रहे है।