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पद्मिनी दत्ता शर्मा अपनी दसवीं किताब ‘लेजिटीमेटली इलेजिटिमेट’ लेकर अपने प्रिय पाठकों के सामने हाज़िर हो गयीं हैं। हर बार कि तरह उनकी ये किताब भी के डि पी अमेज़न द्वारा ही देश विदेश में उपलब्ध कराई गयी हैं। ये किताब सिर्फ चन्द नारी पुरुषों की कहानी नहीं हैं। लेखिका ने प्रत्येक चरित्र के मनस्तातिक स्तर पर विश्लेषण किया है। पद्मिनी का हमेशा से यही मानना है की जन्म से ही कोई बुरा नहीं होता, उनके चारों ओर की वातावरण और परिस्थितियां उन्हें एक अजीब मोड़ पर ला खड़ा करती है , जहाँ से इंसान चाह कर भी उस चंगुल से निकल नहीं पाता।
हम अक्सर इंसान के पोशाक आशाक और उनके चालचलन को देखकर उनके बारे में अपना मतामत जाहिर करते हैं, जो कि मुनासिब नहीं। ‘लेजिटीमेटली इलेजिटिमेट’ अहाना , रिया , आदित्य , श्रावना कि कहानी है, ठिक जिस तरह से ये युवा, भविष्य, चंद्रलेखा और संजोग कि कहानी है। इस उपन्यास में कोई मुख्य चरित्र नहीं है, सब अपनी अपनी जगह से अपनी भूमिका निभाते हुए एक दूसरे से बाकायदा जुड़े हुए हैं।
अहाना को ये पता चलता है की उसके असली माँ बाप ने उसे बचपन में ही त्याग दिया था लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उस बेचारी का अपराध क्या था? उसके पालक माता पिता उससे बेहद प्यार करते थे , लेकिन फिर भी उसको एक ही चिंता खाये जाती थी कि क्यों हुआ उसके साथ ऐसा अन्याय? अपने आप को भुलाने के लिए अहाना एक बेक़रार ज़िन्दगी जीती थी… नशे में चूर होकर, छोटे कपड़ो में अनजान मर्दो के साथ दिन रात गुजारती थी, किसी भी बात का कोई असर नहीं होता था उसपर। इसकी वजह से कई बार वो मुश्किल में भी पड़ी, लेकिन उसके ज़िन्दगी में कोई बदलाव नहीं आया।
आदित्य , जो उससे बेहद प्यार करता था और सब कुछ जानने के बाद भी उससे शादी करना चाहता था, अहाना ने कई बार उसके पीठ पीछे भी दूसरे मर्दों से शारीरिक संबंध बनाये। उसे लगता था वो आज़ाद पंछी है और उसे कोई रोक टोक नहीं चाहिए था, उसे ऐसा महसूस होता था की आदित्य उस पर बेकार ही शक करता हैं और रौब जमाना चाहता हैं जो उसे कतई मंजूर नहीं था। इसी सिलसिले को मुद्दा बनाकर उसने आदित्य से अपनी शादी तोड़ दी। अहाना की पालिका माँ श्रावना ने भी अपने ज़िन्दगी में बहुत कुछ का सामना किया था, अपना बच्चा न होने के कारण उसके पति भी एक समय किसी और के साथ सम्बन्ध बनाये हुए थे, उन मुश्किल घरियों में एक अनजाना उसका साथ निभाया था , बिना उससे कोई फायदा लिए वगेर ही।
पद्मिनी ने इस चरित्र को बहुत खूबी से निभाया है। पद्मिनी का कहना है की वह अपनी निजी जिंदगी में भबिष्य जैसे एक इंसान से मिल चुकी हैं और उसी की झलक हमको इस चरित्र में साफ़ नज़र आता है। रिया, एक ड्रग पाचारकारी थी, जिनको सुनील नामक एक भले इंसान ने पुलिस के चंगुल से बचाया था, लेकिन ये लड़की सुनील को कभी अपने काबिल नहीं समझती थी और गैर मर्दो से पैसे के लिए सम्बन्ध बनाती थी , उसे लगता था चाहे वो कुछ भी क्यों न करे सुनील उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा। उसको बहुत बड़ा सदमा तब पहुँचता है जब एकदिन मिलिंद जैसा चिटिंगबाज के साथ कनाड़ी आइलैंड में मौज मस्ती से लौटने के बाद पता चलता हैं कि उसके सुनील ने लाक्षी नाम की एक लड़की से शादी कर ली हैं और वो बेहद खुश हैं।
लाक्षी का बचपन भी बहुत ही अनोखा था, बहुत बड़े बाप की बेटी होने के बाबजूद भी उसे कुछ साल जमादार कि बेटी बनकर रहना पड़ा था , उसके पापा के दुश्मनो से बचने के लिए और वही उसे मिला था उसका पहला प्यार ऋषव। ऋषव के बेहद चाहने पर भी उनकी शादी न हो सकी लेकिन वो हमेशा लक्षी के पीछे छाया की तरह रहा। चंद्रलेखा और संजोग दो लाजवाब चरित्र हैं इस उपन्यास में, दोनों एक दूसरे से बरसों जुदा रहकर भी मानसिक रूप से साथ होते हैं। ये दोनों असल में थे कौन और इन दोनों का बाकि चरित्र से क्या लेना देना हैं ये सब जानने के लिए पड़ना पड़ेगा ये खूबसूरत उपन्यास। अहाना और रिया का क्या संपर्क था? क्यों जाते थे दोनों बौद्ध मठ बारबार ? क्या अहाना और रिया को मिलता हैं उनके सारे प्रश्नों के उत्तर? क्यों अहाना अंत में अपनी सगी माँ से मिलने को इंकार करती हैं? और क्यों भाग आती हैं श्रावना के पास?
पद्मिनी दत्ता शर्मा कि यह उपन्यास जो की पहले ही दिन एक 200 कॉपी बिकी हुई हैा। पद्मिनी दत्ता शर्मा की यह किताब सच मच पढ़ने योग्य है। जब एक बार इस किताब को पढ़ना शुरू करेंगे तो अंत तक इसे छोड़ने का मन नहीं करेगा। किताब अपने पाठकों को अपने से बंधे रखती है। पद्मिनी दत्ता शर्मा यह किताब एक सुपरहिट देन है, उनके तरफ से उनके पाठकों को।