कर्नाटक चुनाव: हार का ठीकरा सिद्धा पर, उनके अड़ियल और जिद्दी रवैये से हुई हार

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बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस कार्यकतार्ओं के साथ पूर्व सीएम सिद्धारमैया पर भी सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि सिद्धारमैया के गलत अनुमान, अड़ियल और जिद्दी रवैये की वजह से राज्य में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। सिद्धारमैया एक जिद्दी और रौबदार व्यक्तित्व वाले नेता कहे जाते हैं जिनके राजनीतिक करियर को देखा जाए तो वह एक महत्वकांक्षी और हठीले नेता के रूप में उभरते हैं।
Karnataka elections: Defeat of right defeat, lost by their stubborn and stubborn attitude
अपने गुरु एचडी देवगौड़ा की ‘राजवंश राजनीति’ का विरोध करते हुए जेडीएस से बागी हुए सिद्धारमैया को कांग्रेस में नया घर मिला हालांकि उनपर हमेशा ‘बाहरी’ होने के सवाल उठते रहे। यह सिद्धारमैया ने अपने नेतृत्व क्षमता और कुशल राजनीति के जरिए धीरे-धीरे अपनी मजबूत जगह बनाई और सीएम पद पर आसीन हो गए। साथ ही कर्नाटक के उन मुख्यमंत्रियों का सूची में शामिल हुए जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

लेकिन कभी खुद को किस्मत का सितारा बताने वाले सिद्धारमैया के सितारे की चमक इस बार चुनाव में मिली हार ने फीकी कर दी। सिद्धारमैया का सफर कुछ-कुछ कर्नाटक की राजनीति के दिग्गज नेता देवराज उर्स जैसा दिखता है जिन्होंने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को एक राजनीतिक पहचान दी थी। कर्नाटक में कांग्रेस के किले के ढहने की वजह सिद्धारमैया का हठीला स्वभाव बताया जा रहा है।

बता दें कि सिद्धारमैया कुरुबा ओबीसी समुदाय से आते हैं जहां के लोगों को जन्म से ही चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है। यह अर्थव्यवस्था और बजट में एक्सपर्ट होते हैं। साथ ही राजनीति के पेशे में लड़ाकू स्वभाव वाले बताए जाते हैं। हालांकि इस बार सिद्धारमैया की रणनीति उनके प्रशंसकों की नजर में गलत साबित हो गई।

दो सीटों से चुनाव लड़ना पड़ा भारी!
सिद्धारमैया ने पार्टी नेताओं की दो सीटों से चुनाव न लड़ने की सलाह को बार-बार नजरअंदाज किया। बताया जा रहा है कि इससे दोनों सीटों पर अपने प्रचार में ही बंध कर रह गए और बाकी सीटों के प्रचार में अपना कीमती वक्त नहीं दे पाए। यह सब तब शुरू हुआ जब जेडीएस ने उनके ललकारते हुए उन्हें चामुंडेश्वरी सीट से लड़ने की चुनौती दे डाली। यह सीट वोक्कालिगा का गढ़ कही जाती है और सिद्धारमैया तब यहां से चुनाव लड़ते थे जब वह देवगौड़ा के सहयोगी हुआ करते थे।

राजवंश की राजनीति में फंस गए सिद्धारमैया
सिद्धारमैया ने चुनौती स्वीकार कर ली लेकिन खुद राजवंश की राजनीति में फंस गए और अपनी सुरक्षित सीट वरुणा से अपने बेटे यतींद्र को उतारा। जल्द ही उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो दूसरी सीट बादामी के लिए लॉबिंग शुरू कर दी। पार्टी के लोग सिद्धारमैया से कहते रह गए कि उन्हें अपने लिए वरुणा सीट सुरक्षित रखनी चाहिए थी। वहीं उनके बेटे को उपचुनाव या राज्यसभा सीट के लिए भी उतारा जा सकता था। कर्नाटक में कांग्रेस की हार के पीछे सिद्धारमैया का अहिंदा वोटबैंक पर अति आत्मविश्वास होना भी माना जा रहा है। इस वर्ग के लिए सिद्धारमैया सरकार ने कई आर्थिक विकास और कल्याणकारी योजनाएं लागू की थीं लेकिन आखिर में ऐंटी इंकंबेंसी ने कांग्रेस का किला ढहा दिया।