मप्र विधानसभा बजट सत्र- कमल के लिए कश्मकश, कठिन परीक्षा का दौर…

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TIO राघवेंद्र सिंह

मध्यप्रदेश की राजनीति इतिहास के सबसे नाटकीय दौर में है। 1967 के बाद ये पहला मौका है जब कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ की सरकार पर संकट के घटाएं उमड़ घुमड़ रही हैं।तब तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्र ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया का अपमान किया था। तब राजमाता ने कांग्रेस में विद्रोह कर मिश्र सरकार गिरा गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया था । अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपमान के चलते कमलनाथ सरकार संकट में है।

राज्यपाल के आदेश पर बजट सत्र के पहले दिन सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा गया है। 228 विधायको के सदन में सिंधिया कैंप के छह मंत्रियों के स्वीकार होने के बाद कांग्रेस की सदस्य संख्या 114 से घटकर 108 पर टिक गई है। लेकिन इसके बाद सिंधिया समर्थक 13 और कांग्रेस के तीन अन्य बागी विधायकों के बाद सदन में सत्तापक्ष 92 पर रह गया है। सहयोगी सपा,बसपा व निर्दलीय विधायकों को जोड़ा जाए तो सत्ता पक्ष 99 पर अटक गया है। फ्लोर टेस्ट की स्थिति में भाजपा अपने 107 विधायकों के साथ सरकार बनाने की तरफ बढ़ेगी। इस बीच बहुमत साबित करने के लिए कर्नाटक में कुमार स्वामी ने सरकार बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी वैसा कानूनी दांव कमलनाथ सरकार भी खेल सकती है। सरकार के सलाहकारों की कोशिश है सभी बागी विधायक कोर्ट की निगरानी और पुलिस के संरक्षण में सदन में मौजूद रहें। इसी को कांग्रेस खेमे में बाजी पलटने का दांव मान रही है। उसे उम्मीद है सदन में आए बागी पाला बदल सकते हैं। और यहीं से वो भाजपा को चित कर सकती है।

सियासी अखाड़े में माना जाता है कि पहलवान की पीठ भले ही कोई धोबी पछाड़ मारकर लगा जमीन से लगा दे मगर जब तक चित पहलवान चीं न बोले उसके समर्थक और खलीफा हार मानने को राजी नहीं होते । शायद अखाड़े और सियासत की नैतिकता में यही फर्क भी है जो देशभर के चुनाव से लेकर पंचायत और पार्लियामेंट तक नजर आता है। बागियों की सदन में गैरहाजिरी को भाजपा अपनी जीत मानेगी और कांग्रेस उन्हें कानून के जरिए विधानसभा में लाकर इस शह और मात के खेल के नतीजों को बदलने की कोशिश करेगी। इसके लिए बैंगलुरू कुमार स्वामी सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश पहले ही नजीर बन चुका है।

सन 67 के दौर में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पंडित द्वारका प्रसाद (डीपी) मिश्र कांग्रेस में जितने ताकतवर थे कूटनीति में उतने ही चाणक्य जैसे थे। हर कोई उनका लोहा मानता था। 1967 में श्री मिश्र की सरकार को अल्पमत में लाकर राजमाता ने कांग्रेस नेता गोविंद नारायण सिंह को सविंद सरकार का मुख्यमंत्री बनाने में कामयाबी हासिल की थी। चाणक्य कहे जाने वाले डीपी मिश्र की भांति प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी चुस्त चालाक मानी जाती है। 16 मार्च को इस जोड़ी की अग्नि परीक्षा है। बजट सत्र शुरू होगा और इसके साथ ही कांग्रेस सरकार को गिराने की निर्णायक लड़ाई भी शुरू हो जाएगी। 1967 में जिस तरह राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस को तोड़कर डीपी मिश्र की सरकार का तख्ता पलट किया था उसी तरह सोमवार को राजमाता के पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 19 विधायक तीन अन्य कांग्रेसी विधायकों के साथ कांग्रेस सरकार की विदाई करा सकते हैं। कुल मिलाकर बजट सत्र का पहला दिन दिल्ली और गुरूग्राम से भाजपा व बैंगलुरू से सिंधिया समर्थक विधायकों के सदन में निर्णायक रुख से सियासत के खलीफाओं का खेल शुरू होगा। इस बीच कोरोना वायरस के भी राजनीति में रंग घोलने और चुपड़ने की भी उम्मीद है।

प्रदेश विधानसभा में सरकार के भविष्य की चाबी तो विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति के हाथों में है लेकिन राज्यपाल लालजी टंडन के तेवर भी सरकार की दिशा तय करेंगे। हमने कोरोना वायरस का जिक्र किया है। जयपुर,गुरूग्राम और बैंगलुरू में कोरोना वायरस का अटैक चल रहा है। ऐसे में सरकार सभी विधायकों की जांच के साथ उन्हें गंभीर परीक्षण के लिए विधानसभा के बजाए अस्पताल भी भेज सकती है। यहीं से शुरू होगी राजनीति में कोरोना वायरस की आमद। असल में संदिग्ध मरीजों में इस वायरस की जांच और निगरानी के लिए आइसोलेशन वार्ड में रखा जाता है। इस स्थिति में यदि विधायकों को सदन में प्रवेश नहीं मिला तो फिर हंगामे शोर शराबे के साथ नाटकीयता का अकल्पनीय दौर भी देखने में आ सकता है। असल में सत्ता पक्ष बाजी हाथ से फिसलती देख साम दाम दंड भेद के साथ महामारी बने वायरस की आड़ भी ले सकता है। सरकार के संकट मोचक बागी विधायकों की वापसी के साथ भाजपा में सेंधमारी करने के जो उपाए अपना रहे होंगे उनके असफल होने पर कोरोना वायरस की जांच और निगरानी एक अचूक अस्त्र बन सकता है। दुनिया भर में महामारी बन रही इस बीमारी के बचाव में सरकार के कदम को अदालत में चुनौति भी दी जा सकती है। अदालत के निर्णय आने तक सरकार के पास समय होगा विधायकों को मनाने और भाजपा में तोड़फोड़ करने का।

प्रदेश की राजनीति को समझने वाले विशेषज्ञ भी आगे क्या होगा इसे जानने के लिए शीर्षासन करते नजर आ रहे हैं। राज्यसभा के चुनाव के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत भाजपा ने दो आदिवासियों और कांग्रेस ने दिग्विजय और फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है। विधायकों के गणित से भाजपा दो प्रत्याशी जिताने के ज्यादा करीब है। मतदान 26 मार्च को होना है। ऐसे में राज्य सरकार के भविष्य का फैसला मार्च के आखिर तक भी टल सकता है।

भाजपा में तैयार हैं
मुख्यमंत्री के दावेदार…
कमलनाथ सरकार के अल्पमत में आने की खबरों के साथ भाजपा विधायकों मे मुख्यमंत्री बनने की लहरें उठने लगी हैं। सबसे प्रबल दावेदारों में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। उन्होंने इस तरह की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। उनकी सक्रियता और लोकप्रियता देखते हुए मुख्यमंत्री का सहज दावेदार माना जा रहा है। इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और नरोत्तम मिश्रा भी दावेदारी कर रहे हैं। भाजपा हाईकमान विवाद होने पर केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे कर सकता है। फिलहाल तो बदलाव हुआ तो शिवराज सिंह कहेंगे मैं हूं न…