नई दिल्ली
6 दिसंबर 2012… ये वो तारीख है, जिस दिन दिल्ली की सड़कों पर रात के अंधेरे में चलती बस में निर्भया के साथ 6 दरिंदों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। इन 6 में एक ने जेल में आत्महत्या कर ली। उसका नाम राम सिंह था, जो बस ड्राइवर और मुख्य आरोपी था। एक नाबालिग था, जो 3 साल की सजा काटकर 20 दिसंबर 2015 को रिहा हो चुका है और कहीं चैन से अपनी जिंदगी जी रहा है। बचे चार। इनके नाम थे- मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय ठाकुर। इन दोषियों को उनके गुनाह की सजा 7 साल 3 महीने और 4 दिन बाद मिली। चारों दोषियों को तिहाड़ की जेल नंबर-3 में 20 मार्च की सुबह साढ़े 5 बजे फांसी पर लटकाया गया। फांसी देने के लिए जल्लाद पवन 17 तारीख को ही तिहाड़ पहुंच चुका था। लेकिन फांसी से कुछ घंटे पहले इन दरिंदों के साथ क्या-क्या हुआ? फांसी पर चढ़ाने की पूरी प्रोसेस क्या है?
किस-किस ने देखी इन चारों दोषियों की फांसी?
जेल सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर रहे। उनके अलावा डीएम या एडीएम भी रहे, जिन्होंने वॉरंट पर साइन किया। इन सबके अलावा कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल या वॉर्डन भी रहे। जब तक इन दोषियों की फांसी की प्रोसेस पूरी नहीं हुई, तब तक जेल में रह रहे सभी कैदी अपनी-अपनी सेल में ही बंद रहे।
दोषियों को फांसी सुबह 5:30 बजे हुई, लेकिन तैयारी रात से ही शुरू हुई।
दोषियों को नहलाया। उन्हें पहनने के लिए साफ और नए कपड़े मिले।
उसके बाद उन्हें खाने के लिए नाश्ता दिया गया। फांसी से एक घंटे पहले जेल सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, डीएम या एडीएम और मेडिकल ऑफिसर इन दोषियों से मिले।
दोषियों को जेल नंबर-3 में ले जाया गया।
दोषियों के सामने हिंदी में डेथ वॉरंट पढ़ा गया।
जल्लाद आया। दोषियों के पैरों को कसकर बांधा। उनकी गर्दन पर फांसी का फंदा भी जल्लाद ने ही डाला।
सुपरिटेंडेंट ने जल्लाद को इशारा किया और जल्लाद ने लीवर खींच दिया। चारों दोषी नीचे लटक गए।
इन दोषियों को फंदे पर तब तक लटके रहने दिया गया, जब तक मेडिकल ऑफिसर इनके मरने की पुष्टि नहीं की।