कोरोना काल :  अफसर गिरा रहे हैं आफत की बिजलियां…

0
226

  राघवेनदर

चीन का कोरोना वायरस आसमानी आफत बनकर पूरी दुनिया पर बरस रहा है। इसके चलते सब कुछ थम सा गया है। आसमानी आफत से तो सब जैसे तैसे उबर रहे हैं। लेकिन जिन अफसरों पर टिका है सबका तम्बू वे ही उखाड़ रहे हैं बम्बू। इस संकट काल में अफसरों की लापरवाही बिजलियां बनकर गिर रही हैं। इसमें सरकारों का दोष समय तय करेगा। वैसे कोई भी सरकार अपनी बदनामी नही चाहती। उप चुनाव सामने होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता तो यह बदनामी बिल्कुल नही चाहेंगे। क्योंकि वे आमजनता व किसानों में अपनी महानायक की छवि और लोकप्रियता को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। बावजूद इसके अफसरों के सुझावों के चलते उद्योगपतियों, किसानो से लेकर आम जनता महंगी बिजली और उनके भारी भरकम बिलों से परेशान है। शराब बिक्री की भांति हो सकता है ये वित्त प्रबंधन का आसान तरीका लगता हो। मगर मौके और दस्तूर की नजाकत के हिसाब से घाटे का सौदा ज्यादा है।
पिछले हफ्ते प्रदेश के छोटे बड़े उद्योगपतियों ने तो विरोध स्वरूप फिजिकल डिस्टांसिन्ग के चलते मांगों की तख्तियां लेकर वीडियो कांफ्रेंस की और ई धरना भी दिया। अफसरों की सलाह के बीच बिजली बिल में 129 रुपए प्रति यूनिट पड़  रही है। कोरोना संकट में मध्य प्रदेश के करीब सात सौ बड़े और साढे पांच हज़ार सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को फिर से मजबूत करने की कोशिश ही रही है। ऐसे में मार्च, अप्रैल में लाँक डाउन के कारण उद्योगिक इकाइयां बन्द रही हैं। इसके बाद भी उद्योगों को लोड अग्रीमेंट्स के साथ अन्य शुल्क भी बिजली बिलों में लगाए गए । बिजली के बिल और वास्तविक खपत को देखें तो प्रति यूनिट 129 रुपए की दर से वसूली हो रही है। यूनिटों में उत्पादन अप्रैल से मई तक लगभग बन्द है। आगे भी यही हालत बनी रहने की संभावना है। उद्योगपतियों ने देश के आठ राज्यों की भान्ति जून तक फिक्स और मिनिमम चार्ज सहित सभी तरह के शल्कों से राहत देने की बात कही है।  यूपी- पंजाब, हरियाणा ने 2 माह, आंध्र प्रदेश ने 3 माह के लिए इस तरह की राहत पहले ही दे दी है। घरेलू उपभोक्ता के बिल भी दो गुने और उससे ज्यादा के आ रहे हैं। मीटर रीडिंग की तारीख आगे पीछे कर दी जाती है। कोरोना काल में मीटर रीडिंग बंद है। औसत बिल में यूनिट की स्लैब  अंतर का घोटाला कर दो ढाई गुने बिल मोबाइलों के मैसेज बॉक्स में बिजली बन गिर रहे हैं।
 राज्य सरकार पहले से ही दिवालियेपन की स्थिति में है। आर्थिक आपातकाल जैसे हालात हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  कठिन परिस्थिति में किस तरह वित्तीय प्रबन्ध कर रहे हैं यह तो उनका दिल ही जानता होगा। केंद्र से फिलहाल कोई मदद नही और खजाना पहले से ही खाली पड़ा है। आमदनी शून्य पर आ रही है और खर्च दोगुना हो रहा है। समाज का हर वर्ग राहत के लिए हाय हाय कर रहा है। इसी तरह सरकार पर शिक्षण संस्थाओं की फीस माफ करने का भी दबाव है।इस सम्बंध में मध्यम वर्ग ज्यादा पिसता दिख रहा है। उसकी गुहार है की यूपी समेत कई राज्यों ने जब निजी स्कूलस में दो दो महीने की ट्यूशन व परिवहन फीस नही लेने के आदेश दे दिए हैं तो फिर ऐसे आदेश मप्र में क्यों नही ? बिजली बिल और शिक्षा में राहत घर घर की ख्वाहिश है। 150 यूनिट तक खपत पर 150 ₹ का बिल कमलनाथ सरकार की अनेक बुराई के बीच सबसे लोकप्रिय निणर्य था। बिजली की तरह गिर रहे नए बिजली बिलों ने कमलनाथ के पक्ष में चर्चा शुरू कर दी है। आमजनो  खासतौर से मध्यम वर्ग में सरकार की इमेज शिक्षा माफिया के पक्ष मे बनती दिख रही है। इस पूरे सियासी सीन पर एक शेर बड़ा मौजू लगता है– नशेमन पर नशेमन इस कदर तामीर करता जा
कि बिजली गिरते गिरते खुद बेजार हो जाए…
बॉक्स
मप्र भाजपा में मोदी की अनदेखी…
मध्य प्रदेश भाजपा में कमलनाथ सरकार को गिराने के बाद बहुत जल्दबाजी में है। कोरोना काल में पीएम मोदी सहित जब पूरी दुनिया सबको घरों में रहने का आव्हान कर रही है तब प्रदेश भाजपा खूंटे खोज बैठने के काम कर रही है। पिछले लगभग दो माह की पार्टी गतिविधियां थोड़ा भी ध्यान से देखेंगे तो समझ में आएगा। मामला अच्छे – भले काम कर रहे 24 जिला अध्यक्ष बदलने का हो या कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करने के जलसे का हो। लगता है एक सामान्य कार्यकर्ता की बुद्धि से विचार न परिणामो का अनुमान। प्रदेश भाजपा हडबडी या यों कहें घबराहट में देखी जा रही है। ऐसा पहले कभी नही देखा गया। बेवजह दो दर्जन अध्यक्ष बदलने के बाद गुटबाजी बढ़ गई। कोरोना काल में यह परिवर्तन किसी भी तरह से उचित नही था। संगठन का जनसेवा का जो थोड़ा बहुत  काम हो रहा था वह भी ठंडा पड़ गया। प्रदेश कार्यकारिणी का गठन भी होना है। वह सन्तुलन, समन्वय, अनुभव, ऊर्जा, ईमानदार, नैतिकता का अभाव निजी पसन्द दिखी तो फिर नए बवाल को देखने के लिए तैयार रहना होगा।
       विधायक दल की बैठक से लेकर दो दिन पहले रायसेन के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के भाजपा में शामिल होने का भीड़- भाड़ वाला घटनाक्रम सुर्खियों में है। पार्टी के भीतर- बाहर चौतरफा इसकी आलोचना हो रही है। सिंधिया समर्थक पूर्व मंत्री डॉ.प्रभुराम को रायसेन से विधानसभा का उपचुनाव लड़ना है। वे अपने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल कराने आए थे। कोरोना संक्रामण के चलते भोपाल रेड ज़ोन में है। रायसेन से लेकर भोपाल प्रशासन ने 200 लोगो के आने की अनुमति कैसे दी ? दो दर्जन विधानसभा क्षेत्र में चुनाव होना है। अब ऐसे कितने आयोजनों को अनुमति देंगे।  एक नई होड़ शुरू हो सकती है। अनुमति दी तो आलोचना न दी तो पक्षपात के आरोप और व्यर्थ की नाराजी ब्याज में।
डॉ प्रभुराम समर्थकों को भोपाल आने की अनुमति देने पर सरकार- प्रशासन निशाने पर है। खूब छीछालेदर हो रही है। कोरोना काल की नियम और गाईडलाईन को तोड़ा गया। इसमें अन्तिम संस्कार तक के लिए मात्र बीस और शादी के कार्यक्रम के लिए वर वधु पक्ष को मिलाकर 50 लोगो के इकट्ठा होने की अनुमति है। तब भाजपा कार्यालय में लगभग 200 लोग कैसे इकट्ठे हो गये ? अभी न तो चुनाव प्रचार हो रहा है और न ही चुनाव आयोग ने विधानसभा उपचुनाव की कोई तारीख घोषित की है। प्रदेश भाजपा और उनके नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के निर्देशों की धाजियां पहली बार नही उडाई हैं। नेताओं को नियम तोडने से केंद्रीय नेतृत्व भी नही रोक पाया । इसीलिए आगे भी मोदी के सोशल/फिजिकल डिस्टांसिन्ग की धज्जियां राज्य में उड़ती देखी जाएंगी। मंत्रीमंडल का विस्तार होना है। इसी संदर्भ में सम्भवत: 1-2 जून को प्रदेश भाजपा में बड़ा जलसा होना है। हमे पता है कि यह सब बताने से नेताओं पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि सियासत करने वालों की चमडी मोटी हो चुकी है। अब आइना दिखाने और समालोचना की सुई का कोई असर नहीं होता है। अब तो जड़ता, मक्कारी और ढिटाई का आलम ये है कि सुई तो क्या आलोचना के तीर और भाले भी उनसे टकराकर वापस आ जाते हैं। चमड़ी की इस मजबूती में असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क में पाए जाने वाले एक सिंग वाले राइनो (गैंडे) भी शरमा जाएं। सत्ता – संगठन के शिखर पर नही पंहूचने वाले भले और पानीदार नेतागणों व कार्यकर्ताओं से माफी के साथ…
धान- गेंहूं भंडारण में बरबादी की जिम्मेदारी तय हो…
कोरोना वाइरस के बीच धान- गेंहूं की कटाई व समर्थन मूल्य पर लाखों टन की खरीदी की गई है। खरीदी और तुलाई से लेकर उनके भंडारण में गड़बड़ी व घोटाले की शिकायतें आ  रही हैं। चंबल, मालवा, हरदा निमाड़ और महाकौशल में मिट्टी की आड़ में प्रति क्विंटल 5-6 किलो तक ज्यादा गेहूं तौलने की शिकायतें आई हैं। चने को भी समर्थन मूल्य  खरीदने में विवाद हुए हैं। बाद भावन्तर के पांच सौ रुपए के साथ लगभग चार हजार रु के प्रति क्विंटल चना बेचना पड़ा है। खैर इन  तमाम शिकवे शिकायतों के बीच जबलपुर इलाके में सरकार के धान खरीदी और उसके भंडारण में बरबादी की खबरें आ रही हैं। सरकार की आंखें खोलने के  तस्वीर मीडिया में आनी शुरू हो गई हैं। बारिश के पहले गेहूं का उचित भंडारण होना जरूरी है। बारिश में इनकी बरबादी होने पर जिम्मेदारी तय कर दी जाए। साथ ही समय पूर्व खाद्यान की नुकसानी होने पर जिम्मेदार एजेंसी और अधिकारी- कर्मचारियों की सम्पति से वसूली सुनिश्चित कर देनी चाहिए। बड़ी मात्रा में नुकसान होता है और उसकी आड़ में घोटाले भी चलते हैं।