राजेश बादल
लेखक राजेश बादल वष्ठि पत्रकार है आज तक चैनल से लंबे समय तक जुड़े रहे। बाद में राज्यसभा टीवी के संपादक रहे।
चीन और भारत के बीच सीमा पर तनाव घटाने के लिए बातचीत गंभीर थी। पहली बार सेना अध्यक्ष के ठीक नीचे स्तर वाले अधिकारियों के बीच इस बार यक़ीनन ठोस चर्चा हुई। पाँच घंटे चली शिखर वार्ता में दोनों पक्षों की ओर से तत्काल कोई टिप्पणी नहीं आई। भारतीय विदेश मंत्रालय ने चौबीस घंटे बाद बयान जारी किया।इसमें कहा गया है कि एशिया के दोनों बड़े मुल्क़ सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमत हैं और यह भी कि आईन्दा भी आपसी चर्चा से मामले सुलझाए जाएँगे।
निश्चित रूप से इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर परस्पर सहमति के अगले दिन रविवार को चीनी सेना ने सीमा – रेखा के पास युद्ध अभ्यास का वीडियो जारी किया। याने शान्ति और जंग की रिहर्सल फ़िल्म एक साथ दिखाकर चीन भारत को सतर्कता – सन्देश भी देना चाहता है ? नहीं भूलना चाहिए कि एक पखवाड़े पहले ही राष्ट्रपति शी जिंग पिंग ने फ़ौज से सैनिकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम तेज़ करने और जंग के लिए तैयार रहने के लिए कहा था ।
असल में हिन्दुस्तान और चीन के बीच कड़वाहट और मतभेद की जड़ें इतनी गहरा गईं हैं कि अब सदभाव और शान्ति के सारे प्रयास बहुत सतही लगने लगे हैं।यह ठीक है कि 1967 के मिनी ख़ूनी संघर्ष के बाद गोली नहीं चली है। उस छोटे से युद्ध में भारत ने 65 और चीन ने 300 सैनिक खोये थे। यह 1962 के सिर्फ़ पाँच बरस बाद हुआ था और चीन को अंदाज़ा हो गया था कि हिन्दुस्तान पाँच साल में काफी बदल चुका है। उसके बाद से वह भारत को घेराबंदी और अन्य कूटनीतिक चालों से दबाव में रखता रहा है। सीधे युद्ध में उसे भी बड़ा नुक़सान उठाना पड़ेगा।शतरंज पर चीन की शातिर चालें निश्चित रूप से परेशान करती रही हैं।
भारतीयों ने इसी वजह से उस पर कभी पूरा भरोसा नहीं किया । अगर बड़ा वर्ग यह मानता है कि भारत को पाकिस्तान की तुलना में चीन के प्रति अधिक गंभीर रहना चाहिए तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। अट्ठावन साल पहले की जंग का विजय भाव चीन को आज भी दंभी बनाए हुए है। इसी वजह से वह भारत के प्रति दोहरा चरित्र प्रदर्शित करता रहा है।