समय आ गया … ड्रैगन के पंख कतरने और मुँह को कुचलने का

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कौशल किशोर चतुर्वेदी
21वीं सदी में एक बार फिर चीन और भारत आमने- सामने आ गए हैं। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में  भारत को धोखा देकर चीन ख़ुद को बलवान साबित करना चाह रहा है।ड्रैगन ने दादागिरी के दम पर वास्तविक नियंत्रण रेखा से छेड़-छाड़ की कोशिश की है। 1962 में भारत के साथ धोखा हो चुका है और 58 साल बाद एक बार फिर से चीन ख़ुद को युद्धभूमि में बलशाली साबित करने में जुट गया है। 1962 में भारत को अपनी फारवर्ड नीति का त्याग करना पड़ा था। गलवान घाटी में हमला कर चीन ने एक बार फिर से उसी तरह का दुस्साहस कर भारत को नीचा दिखाने की हिमाक़त कर रहा है।पर ड्रैगन को यह नहीं भूलना चाहिए कि वसुधैव कुटुम्बकम की भाव वाले भारत ने भी 58 साल की दूरी तय कर ली है।नेहरू से मोदी तक का सफ़र भारत के विश्व शक्ति में रूपांतरित होने का एक बड़ा फ़ासला है जिसको ड्रैगन पंख फड़फड़ा कर और मुँह से आग उगल कर दरकिनार करना चाहता है। अब समय आ गया है कि राम रावण युद्ध और कौरव पांडव युद्ध की तरह एक निर्णायक युद्ध हो और इस बार मैदान में भारत ड्रैगन के पंख भी कुतर दे और उसका मुँह भी कुचल दें ताकि हमेशा के लिए इसका ख़ात्मा हो सके। साथ ही इसके कुप्रभाव में नेपाल पाकिस्तान जैसे राष्ट्र भी दुस्साहस करने की हिम्मत न जुटा सकें। अब वक़्त टेस्ट मैच का नहीं है और वनडे की तुलना में भी 20-20 मैच को लोग ज़्यादा पसंद कर रहे हैं। ऐसे में 2020 में 20 दिन का एक निर्णायक संग्राम ड्रैगन पर लगाम लगाने के लिए काफ़ी साबित हो सकता है।1962 में 30 दिन के युद्ध में चीन ने भारत को पटखनी दी थी और वह भारतीय हिस्सों पर भी क़ाबिज़ हो गया था। पर अब स्थितियां वैसी नहीं है।वैश्विक परिस्थितियां भी बदली हुई हैं। अब नेहरू को नकारने वाली भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असली परीक्षा का समय है। अब मोदी के सामने ख़ुद को साबित करने के लिए ड्रैगन के पंख कतरने और मुँह को कुचलने की बड़ी चुनौती है।
सर्जरी स्ट्राइक कर पाकिस्तान को सबक़ सिखाने, जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने, तीन तलाक़ को ख़त्म करने, GST नोटबंदी जैसे त्वरित निर्णय करने वाले लोकप्रिय और विश्व के शीर्ष नेताओं में शुमार मोदी को अब भारत की अस्मिता के लिए इस मोर्चे पर भी वाले लोकप्रिय और विश्व के शीर्ष नेताओं में शुमार मोदी को अब भारत की आन बान और शान के लिए इस मोर्चे पर भी ख़ुद को साबित करना ही पड़ेगा।
वोकल फॉर लोकल को चरितार्थ करने का वक़्त –
चीन से आर्थिक रिश्ते नाते तोड़कर भारत उसकी कमर तोड़ सकता है। भारत की जनता लॉकडाउन के समय यह समझ चुकी है कि उसकी वास्तविक की ज़रूरत क्या है? देश में जगह जगह युवा चीनी सामानों की होली जला रहे हैं। कभी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था।शास्त्री के प्रति मोदी की भी आस्था ठीक-ठाक है।आज की परिस्थितियां भी जवानों की और किसानों की जय जयकार का इशारा कर रही है। वोकल फ़ॉर लोकल का मोदी का नारा भी अब पंख लगाने को तैयार है अगर नीतियाँ उसका साथ दें तो।सीएए एनआरसी एनपीआर के ज़रिए देश को झकझोरने की जगह अब देश के इस मानव संसाधन को वोकल फ़ॉर लोकल में झोंककर ड्रैगन को भी सबक़ सिखाया जा सकता है और देश की एकता और अखण्डता को भी मज़बूत करने की दिशा में मिसाल क़ायम की जा सकती है।
बल ही देगा संबल –
आधुनिक भारतीय साहित्य में भी ड्रैगन यानि अझ़दहा को कभी ख़तरे और कभी साहस के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया गया है। हरिवंश राय बच्चन ने अपने “दो चट्टानें” नाम के संग्रह की प्रसिद्ध कविता “सूर समर करनी करहिं” में अझ़दहा को एक ज़ुल्म ढाने वाला और सच्चाई के तर्क के प्रति बहरा पात्र दिखाया है जिस से केवल बल के प्रयोग से बात की जा सकती है। जिस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश दुनिया में ख़ुद को बलशाली साबित करने का उपक्रम किया है उसकी असल परीक्षा अब ड्रैगन का ख़ात्मा करने में ही है। देश की 130 करोड़ से ज़्यादा आबादी मोदी के साथ खड़ी है। जवानों की शहादत ने हर भारतीय के मन में चीन के प्रति घृणा का भाव भर दिया है। ज़रूर अब इस बात की है कि मोदी बल दिखाकर चीन को दुर्बल कर दें और हर भारतीय के मन में संबल भर दें।