पुत्र के दाहसंस्कार के लिए हाथ फैलाते रहे माता-पिता

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इंदौर कीर्ति राणा

शहर के श्मशानघाटों पर दानदाताओं के नाम नंबर लिखे जरूर हैं किंतु मुसीबत के वक्त दानदाता भी बहाने से बाज नहीं आते।रविवार की दोपहर से शाम तक निर्धन-असहाय वृद्ध माता-पिता अपने इकलौते जवान बेटे के दाह संस्कार के लिए हाथ फैलाते रहे।लॉकडाउन वाला रविवार नहीं होता तो इनकी मदद के लिए कई हाथ उठ जाते।  एमटीएच अस्पताल के भृत्य संजय करोसिया और गेटकीपर योगेश भंडारी ने कुछ पैसे मिलाए और कुछ लोगों से मदद लेकर शववाहन के लिए 800 रु तो जुटा लिए लेकिन श्मशानघाट के ठेकेदारों ने बिना लकड़ी का दाम चुकाए शवदाह से इंकार कर दिया।अंतत: श्रमिक क्षेत्र के व्यापारी सुक्का भाटिया और उनके भतीजे यशपाल ने मदद की तो शवदाह हो सका।
सरस्वती नगर निवासी मुन्नीबाई और गणपत गेहलोत के पुत्र संजय गेहलोत (25 वर्ष) को गत सोमवार को खांसी की शिकायत पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर एमटीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया था, हालांकि उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। शनिवार को छुट्टी हो गई थी लेकिन कोरोना संक्रिमत मरीज होने की शंका में ऑटो रिक्शा वाले ने सवारी ले जाने से इंकार कर दिया।इसी बीच संजय को फिर बैचेनी महसूस हुई तो उसे वापस दाखिल करा के मां बाप घर आ गए।रविवार की सुबह सरस्वती नगर निवासी इनके पड़ोसी को अस्पताल से संजय के निधन और उसका शव एमवायएच में रखा होने की सूचना दी गई।

एमटीएच अस्पताल के सफाईकर्मी संजय करोसिया और मेनगेट गार्ड योगेश भंडारी मृतक संजय के वृद्ध माता-पिता को लेकर एमवायएच पहुंचे। अस्पताल वालों ने शव सौंप तो दिया लेकिन छुट्टी मजदूरी करने वाले गणपत गेहलोत के पास बेटे का शव ले जाने, दाह संस्कार करने के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं थी।बेटा पेंटर था, हर दिन हजार-आठ सौ रु कमा लेता था,जो थोड़ी बचत कर रखी थी वह अस्पताल आने-जाने व अन्य खर्चों में समाप्त हो गई।
संजय और योगेश ने आसपास के लोगों से भी चंदा जुटाकर शव वाहन का किराया ₹ 800 तो एकत्र कर लिए।यहां से शव लेकर पहले जूनीइंदौर श्मशानघाट पहुंचे तो वहां के ठेकेदार ने लकड़ी खर्च के 4 हजार रु जमा कराने पर ही दाह कर्म करने की बात कही। यहां लगे बोर्ड पर लिखे दानदाताओं से आर्थिक मदद के लिए संजय करोसिया ने फोन भी लगाया किंतु बात नहीं बनी।

यहां से शव लेकर मालवामिल श्मशानघाट पहुंचे वहां भी यही समस्या सामने आई।शववाहन यहीं छोड़कर ये दोनों निकले दाहकर्म की व्यवस्था के लिए मालवामिल क्षेत्र में दानदाता ढूंढने। होटल दिव्यपैलेस पर व्यापारी सुक्का भाटिया को परेशानी बताई। सुक्का और उनके भतीजे यशपाल भाटिया ने लकड़ी खर्च का सहयोग किया तब कहीं अंतिम संस्कार हो सका। इकलौते पुत्र की मौत के बाद अब माता-पिता के सामने समस्या थी कि रात के खाने का क्या होगा।श्मशानघाट में इस सारे माजरे के साक्षी एक व्यक्ति ने इनकी मदद के लिए कुछ नकदी रुपए दिए, तो दोनों की आंखों से टपकते आंसु दुआओं में बदल गए।

बुरे वक्त में किसी के काम आना मेरे लिए
तो सबसे बड़ा धर्म -सुक्का भाटिया
व्यापारी सुक्का भाटिया का कहना था वे दोनों मदद के लिए आए थे। पूरी घटना सुन कर मेरा तो क्या किसी का भी दिल पसीज जाता। बुरे वक्त में हम किसी के काम आ जाएं इससे बड़ा धर्म और मानवीयता हो नहीं सकती। मेरा भतीजा यशपाल भी सहयोग को राजी हो गया।

हम से जो मदद हो सकी की लेकिन दान की मदद के लिए नाम लिखाने वालों ने निराश किया
एमटीएच अस्पताल के सफाईकर्मी संजय करोसिया और योगेश भंडारी का कहना था हमारे पास जितने रुपए थे इस काम के लिए दे दिए। दुख तो यह है कि बोर्ड पर जिन दानदाताओं के नाम लिखे हैं, उन्होंने सहयोग तो दूर ढंग से बातचीत तक नहीं की।लॉकडाउन के कारण भी मदद जुटाने में परेशानी आई, सुक्का भाटिया जी ने जो सहयोग किया वो सच्चा धर्म है।