पटरी बदलती भाजपा में वक्त है बदलाव का…

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राघवेंद्र सिंह

कोरोना काल मे सब बदल रहा है। संसार, समाज और सियासत भी इससे अछूते नही हैं। भाजपा में परिवर्तन के हाल ये गए कि पूरे घर के बदल डालेंगे और कांग्रेस के हाल यह है कि कुछ भी ही जाए हम नही सुधरेंगे। बहरहाल बदलाव की बयार में मध्य प्रदेश भाजपा क्रांतिकारी मोड में है। छह महीने पहले प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बने विष्णुदत्त शर्मा (वीडी शर्मा) काबिल नेताओ को ढूंढने में कठिनाई के दौर से गुजर रहे हैं। यह परेशानी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह उठा चुके हैं। वे अपनी टीम की विधिवत घोषणा किए बिना ही अध्यक्ष पद से विदा हो गए थे। इसके चलते लगता है वीडी दबाव में हैं। इसीलिए छह महीने में वे अपनी टीम नही बना पाए तो एक तरह से कुंठा का शिकार होते दिखे। यही कारण है गणेश उत्सव की विदाई बेला में लगता है उन्होंने ने जिद करके अपने पांच महामंत्रियो के नाम का एलान कर दिया। यहीं से एक बार फिर शुरु हुआ जानकारों द्वारा संगठन के शिल्प में मीन-मेख निकलने का दौर। ये पद नए नवेले नेताओं के साथ पार्टी के लिए भी मुश्किल भरें हों तो किसी को हैरत नही होगी।

दरअसल किसी भी संस्था और दल में महामंत्री के पद अध्यक्ष के बाद सबसे अधिक अहम माने जाते हैं। महामंत्री के पद पर नियुक्त नेता अध्यक्ष और संगठन महामंत्री की सोच का आईना होते हैं। नए महामंत्रियो में रणवीर सिंह रावत, हरिशंकर खटीक ,शरतेन्दु तिवारी,भगवान दास सबनानी, कविता पाटीदार जैसे नाम अपनी पहचान के मोहताज माने जा रहे हैं। भाजपा जैसी पार्टी में महामंत्री सड़क से संसद तक संघर्ष में पारंगत हों। पार्टी की पंच निष्ठा के साथ संगठन शास्त्र व पार्टी संविधान ज्ञाता हो। विरोधी दल से लेकर शासन – प्रशासन में उसे पहचाना जाता हो और कार्यकर्ताओं में उसकी गहरी पैठ हो। घोषणा के साथ ही नाम जाने पहचाने लगे। वरना नए नेता के नाम पर कमजोर नेताजी आ गए तो वे पद की प्रतिष्ठा बढ़ाने के बजाए पूरे समय गणेश परिक्रमा कर पद बचाने में लगे रहेंगे। अभी तो हाल ये है कि पार्टी संविधान में संगठन महामंत्री को मिलाकर कुल पांच महामंत्री होते हैं लेकिन प्रदेश भाजपा में यह संख्या छह हो गई है। यह चूक है या संविधान संशोधन की प्रत्याशा में प्रयोग पता नही।

पांच महामंत्री अपने काम से साबित करेंगे कि वे पार्टी के पंच प्यारे हैं या नही। समन्वय के साथ संगठन के विवादों को निपटा कर पंच परमेश्वर होंगे या अनाड़ीपन के चलते शो पीस। विंध्य से ताल्लुक रखने वाले शरतेन्दु तिवारी असल में अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह को चुरहट से हराने के कारण चर्चाओं में आए थे। पार्टी ने सरकार में जगह देने के बजाए संगठन में बड़ा पद दे कर उन्हें एक तरह से मुश्किल में फंसा दिया है। वहां केदार शुक्ला और शंकरलाल तिवारी जैसे नेताओं के बीच शरतेन्दु को साबित करना पड़ेगा कि वे केवल चुरहट ही नही विंध्य के कार्यकर्ताओं के भी हित चिंतक हैं। इसी तरह शिवपुरी के रणवीर रावत को भी जताना पड़ेगा कि वे ग्वालियर-चम्बल के कार्यकर्ताओं की ताकत बनेंगे। जबकि इस इलाके में अनूप मिश्रा, जयभान सिंह पवैया जैसे दिग्गज नेता खाली बैठे हुए हैं। मालवा से संबंधित कविता पाटीदार को भी जताना पड़ेगा कि वे वरिष्ठ भाजपा नेता भैरूलाल पाटीदार की बेटी होने के साथ पूरे इलाके में प्रभाव रखती है। बुंदेलखंड के हरिशंकर खटीक भी इसी तरह की चुनौतियों से दो-चार होंगे। भोपाल के जिला अध्यक्ष रहे भगवान दास सबनानी पर भाजश पार्टी बनाने वाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के समर्थक होने की छाप थी। इससे उभरने के लिए कड़ी परीक्षा दी तब जाकर अब उन्हें महामंत्री बनाया गया है। हालांकि इसके पीछे वीडी शर्मा की प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा से दूरी भी बड़ी वजह है। असल मे सबनानी रामेश्वर शर्मा के हुजूर विधानसभा से टिकट के प्रभावी दावेदार है। उन्हें शर्मा की काट माना जा रहा है।

इसके अलावा प्रदेश भाजपा पिछले छह महीने में महामंत्रियो के नामो पर ही सहमति बन पाई। प्रदेश कार्यकारिणी के गठन में बड़ी बाधा महामंत्री के पद पर चयन माना जाता है। अभी दस उपाध्यक्ष और दस मंत्रियों समेत कार्य समिति के सदस्यों का चयन रह गया था। अब यह लगता है टल गया है। अनुमान है कि विधानसभा उपचुनाव के बाद शेष सूची घोषित की जाए।