उपचुनाव में जीत: सरकार को राहत आगे संगठन को आफत…

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TIO, राघवेंद्र सिंह

मध्यप्रदेश में विधानसभा के 28 उपचुनाव में से 19 सीट जीतकर भाजपा ने मानो गंगा स्नान कर लिया है। चुनाव प्रचार के दरमियान आने वाली खबरों ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी थी। सत्ता और संगठन बी प्लान पर काम करने लगे थे। इसमें कांग्रेस के विधायकों को भाजपा में शामिल कराना एक बड़ा काम था। खैर अंत भला सो सब भला इस तर्ज पर तमाम तरह के इंतजाम करने वालों ने राहत की सांस ली है।
चुनावी नतीजों के साथ ही भाजपा ने दिवाली मना ली और कांग्रेस रिपोर्ट तैयार करने के बाद रस्मी तौर पर आत्म चिंतन के काम में लग गई है। इसके साथ ही पीसीसी चीफ के साथ विधायक दल के नेता में से कमलनाथ को अब कोई एक पद का मोह छोड़ना पड़ेगा। अजय सिंह राहुल के साथ जीतू पटवारी, मीनाक्षी नटराजन के नाम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए हवाओं में तैरने लगे हैं। दूसरी तरफ भाजपा में विधानसभा अध्यक्ष कौन होगा ? इसे लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं। दो मंत्रियों के चुनाव हारने को लेकर नए दावेदारों ने भाजपा में जोड़-तोड़ शुरू कर दी है। लेकिन अनुमान है कि इस मुद्दे पर सरकार व संगठन आराम की मुद्रा में रहना पसंद करेंगे। इसके साथ ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा (वीडी भाई )के सामने अपनी टीम बनाने का दबाव बढ़ गया है। इसमे सिफारिशों की आफत को समन्वय व सन्तुलन के साथ स्थान देना आग के दरिया में डूब कर जाने जैसा होगा। निर्णय लेने में नेताओं ने बीरबल की खिचड़ी जल्दी पका ली तो हफ्ते दस दिन में नए पदाधिकारियों का ऐलान हो जाएगा।
उपचुनाव के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राहत की सांस ली है। वे अपनी टीम के साथ फील गुड मोड पर हैं। उपचुनाव में जीत के बाद भगवान का आभार जताने तिरुपति बालाजी जा रहे हैं।
लेकिन बिहार में चुनाव के बाद वहां राष्ट्रीय नेतृत्व ने सुशील मोदी की भूमिका बदली है उसने सबको चौंका दिया है।
जाहिर है कि नए समीकरणों में ज्योतिरादित्य सिंधिया, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, उमा भारती के साथ प्रदेश अध्यक्ष वीडी की टीम समन्वय की परीक्षा में पास हो गई। इससे संगठन के घाघ और चतुर सुजान नेताओं के सामने वीडी नए अनुभव व आत्मविश्वास से भरे होंगे। लेकिन एक बात निश्चित है कि सरकार राहत और संगठन आफत में है। संगठन की बात करें तो विष्णु दत्त शर्मा ने उप चुनाव अभियान के पहले पांच महामंत्रियों की घोषणा कर अपने इरादे और तेवर जता दिए थे। एक बात तो तय है कि नए पदाधिकारियों की सूची भी बहुत चौंकाने वाली होगी। इनमे 10 उपाध्यक्ष और 10 मंत्री बनाने के साथ एक कोषाध्यक्ष की घोषणा बहुत जल्द होने के संकेत हैं। कोषाध्यक्ष के नाम पर एक बार फिर बैतूल के हेमंत खंडेलवाल मुहर लगा सकती है। उनके पिता स्वर्गीय विजय खंडेलवाल भी लंबे समय तक प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष रहे हैं। उपाध्यक्ष की सूची में उमाशंकर गुप्ता, ध्रुव नारायण सिंह, बंशीलाल गुर्जर, विनोद गोटिया, रामलाल रौतेल, जीतू जिराती, आलोक शर्मा, शैलेंद्र शर्मा के नाम चर्चा में है। संगठन नए संवाद प्रमुख की तलाश कर रहा है। संगठन में काम करने वाले कुछ लोग और हारे हुए सिंधिया समर्थक प्रत्याशी निगम – मंडलों में अध्यक्ष उपाध्यक्ष के पद पाने की दौड़ में लगे हैं। भाजपा के अंदर खाने की बात करें तो युवा चेहरों को ज्यादा मौका दिया जाएगा।

सीता शरण और बिश्नोई की दौड़ में
विधानसभा अध्यक्ष के लिए संगठन की राय को अहमियत दी गई तो अजय विश्नोई का नाम सबसे आगे लगता है। पुराने अनुभव और समन्वय को ध्यान में रखा गया तो होशंगाबाद के सीता शरण शर्मा भी दूसरी बार विधानसभा के अध्यक्ष बन सकते हैं। फिलहाल प्रोटेम स्पीकर के तौर पर रामेश्वर शर्मा दायित्व निभा रहे हैं। उन्हें संगठन में उपाध्यक्ष भी बनाया जा सकता है। विधानसभा उपाध्यक्ष के लिए बुंदेलखंड के प्रदीप लारिया का नाम भी शामिल है। विधानसभा उपाध्यक्ष नहीं बन पाए तो उन्हें संगठन में उपाध्यक्ष का दायित्व देने के संकेत है।

भाजपा अजब – गजब…
भोपाल से लेकर दिल्ली तक भाजपा में अटपटे और अनाड़ी पन के फैसले देखे जा रहे हैं। प्रदेश भाजपा मैं पांच की जगह 6 संगठन महामंत्री हो गए हैं जबकि संविधान के मुताबिक पांच ही होने चाहिए। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा ने प्रदेश के तौर पर एक ऐसे नेता को प्रदेश प्रभारी बनाया है जो राष्ट्रीय पदाधिकारी नहीं है। मुरलीधर राव पूर्व महामंत्री हैं। अब वे किसी पद पर नही हैं फिर भी प्रभारी के तौर पर उन्हें मध्य प्रदेश का दायित्व दिया गया है। इस गजब में अजब बात यह है कि मुरलीधर राव के साथ दो सह प्रभारी भी प्रदेश को दिए हैं। यह दोनों प्रभारी भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं। इनमें पंकजा मुंडे और विशेश्वर टुडू शामिल है। इसके पहले संगठन शास्त्र के जानकार के रूप में के उपाध्यक्ष रहे विनय सहस्त्रबुद्धे को प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था। लेकिन नव नियुक्त नेतागण अगर ठीक से काम नहीं कर पाए तो प्रदेश को सहस्त्रबुद्धे जी भी बहुत याद आएंगे। पंकजा मुंडे महाराष्ट्र में कुछ खास नही कर पाईं और मुरलीधर राव अमित शाह की टीम में महामंत्री के पहले कार्यकाल के बाद जेपी नड्डा की टीम में पदाधिकारी नही बन सके।लगता है भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश के अनुभवी संगठन में प्रभारी के तौर पर कमतर नेताओं की नियुक्ति कर रहा है। आगे – पीछे यह सब भाग मुश्किल भरा होगा। ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय नेतृत्व नेताओं को संगठन की नदी पार करने के लिए ऐसी नाव दे रहा है जिस में छेद है अब आप को पार करना है तो चप्पू भी चलाइए और अनाड़ीपन का पानी भी उलीचिए। वैसे कुशाभाऊ ठाकरे के मध्य प्रदेश में मंडल स्तर पर कार्य करने वाला कार्यकर्ता भी बड़े बड़े दिग्गजों को संगठन शास्त्र में पीछे छोड़ देता है। यह राज्य के हिसाब से छोटे मुंह बड़ी बात हो सकती है मगर हकीकत बहुत हद तक ऐसी ही है। संगठन की दृष्टि से आलाकमान राज्य की अनदेखी करता दिखा रहा है।