शिवराज सरकार: विस्तार की खिचड़ी में बेचैनी के कंकण भी…

0
388

राघवेंद्र सिंह

शिवराज सरकार के विस्तार की खिचड़ी पकी तो सही लेकिन उसमें बेचैनी के कंकण भी महसूस किए जा रहे हैं। इस बीच टीम वीडी शर्मा के बनने का रास्ता साफ हो गया है। जल्दी ही प्रदेश भाजपा का भी विस्तार हो जाएगा। रविवार तीन जनवरी की दोपहर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक दो मंत्रियों के शपथ समारोह के सरकार और भाजपा संगठन में अलग अलग अर्थ निकले जा रहे हैं। सिंधिया केम्प से मंत्री तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत अपने महाराज के प्रति दण्डवत है। उन्हें सत्ता की सफारी फिर मिल गई है।

लेकिन सिंधिया के साथ भाजपा में आए तीन मंत्री हारने के कारण अलबत्ता सत्ता सुख से वंचित हो गए हैं। महाराज सत्ता – संगठन में से किसी एक रास्ते कोई गरिमापूर्ण पुनर्वास अवश्य करा देंगे। ऐसा सिंधिया के साथ दिल्ली दरबार और संघ परिवार के साथ होने के कारण संभव होता लग रहा है। मगर इस गुणाभाग के बीच सत्ता से वंचित भाजपा के वफादार विधायकों के असन्तोष और उनकी बेचैनी को शांत रख पाना संगठन के लिए कठिन काम होगा। मंत्रिमण्डल विस्तार में अनदेखी को महाकौशल से लेकर विंध्य और मध्य भारत तक काफी हद तक मान-अपमान से जोड़कर देखा जा रहा है। संगठन प्रोटेम स्पीकर के पद पर रामेश्वर शर्मा की नियुक्ति को पहले ही परेशान था अब विस्तार के बाद सबको साधे रखना मुश्किल होगा। दबाव अब सत्ता से संगठन की तरफ शिफ्ट होगा। संगठन का विस्तार एक असरदार उपाय हो सकता है। दूसरा इलाज सरकार में रिक्त तीन मंत्री पद और एक विधानसभा अध्यक्ष का पद जिसका चयन होना है।


ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों का भाजपा सरकार में मान बरकरार रखवाने में कामयाब हो गए। तीन जनवरी को सिलावट और राजपूत के मंत्री पद की शपथ लेने के मिशन सिंधिया का एक चरण पूरा हुआ। विभाग भी पूर्ववत रहने के आसार हैं। मतलब कोई घटबढ़ नही होनी है। बस अब बात आ गई है मंत्रियों की कार्यशैली पर। सिंधिया समर्थकों के कामकाज और ईमानदारी व दक्षता को लेकर भाजपा दूरबीन से नजर रखेगी। कार्यकतार्ओं की अनदेखी और भ्रष्टाचार की खबरें सत्ता- संगठन में सिंधिया की इमेज को प्रभावित करेगी। ऐसे में मुख्यमंत्री के पास प्रमुख सचिव व सचिवों के मंत्रियों की गतिविधयों को परखने व काबू में करने का अघोषित मगर सबसे मारक विकल्प खुला रहेगा। जाहिर मंत्रियों की कार्यशैली और उनके निर्णयों की फाइल तैयार होती रहेगी। इस बारे कहता कोई नही है पर करते सब हैं। विस्तार की थकाने वाली प्रक्रिया को सिंधिया की टीम पार निकल गई है। इसे उनकी सफलता के रूप में भी देखा जा रहा है। मगर यह तो एक पड़ाव भर है आगे स्थानीय निकायों के चुनाव, संगठन के साथ निगम- मण्डलों नियुक्ति जैसे कई इम्तहान बाकी हैं। बहरहाल अभी

तो सिंधिया महाराज की जय जय…
मंत्रिमंडल विस्तार में जो सिंधिया ने चाहा लगभग वही हुआ। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महाकौशल, विंध्य और मध्य भारत से अपने समर्थकों को शपथ नही दिला पाए। इनमे विंध्य इलाके से राजेन्द्र शुक्ल, केदार शुक्ल के गिरीश गौतम के नाम प्रमुख हैं। विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए विंध्य से नागेंद्र सिंह नागौद, जबलपुर से अजय विश्नोई और होशंगाबाद से पुर विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीतासरन शर्मा भी चर्चा में है। इन नेताओं में किसी के नाम पर सहमति नही होने के कारण मामला अटक गया है। शिवराज समर्थक पूर्व मंत्रियों में रामपाल सिंह और गौरीशंकर बिसेन भी प्रबल दावेदार हैं। मंत्री पद के जोड़तोड़ में भाजपा के कुछ नेता मानते हैं कि इस बार दिल्ली दरबार ने सिर्फ सिंधिया की सुनवाई हुई और शिवराज शिविर थोड़ा पिछड़ गया। यदि यह सत्य है तो आने वाले दिनों में सरकार से जुड़े फैसले दिल्ली के इशारे पर होते दिखेंगे।

शिवप्रकाश का भोपाल मुख्यालय रंग लाएगा…
भाजपा में संगठन को लेकर धीरे धीरे बढ़े बदलाव हो रहे हैं। इसके चलते मध्यप्रदेश समेत आधा दर्जन राज्यों के प्रभारी राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश का भोपाल मुख्यालय बनाने के गहरे अर्थ हैं। असल में अनन्त कुमार के बाद प्रदेश को कोई ऐसा प्रभारी नही मिला जो समन्वय और संतुलन से काम कर पाए। अब मुरलीधर राव के साथ दो सचिव भी प्रदेश के सह प्रभारी बनाए गए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है। शिकायतें यह आ रही थी कि सत्ता संगठन में समन्वय नही हो पा रहा है इसलिए कार्यकतार्ओं से जुड़े कई काम अटक जाते हैं। जो बाद में गुटबाजी और असन्तोष की वजह बन जाते हैं। पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह के बाद असन्तुलन की बीमारी ज्यादा बढ़ी और इसके विष्णुदत्त शर्मा के कार्यकाल में भी उभरने की खबरें हैं।
बॉक्स
कमलनाथ को लेकर कांग्रेस में क्लेश के आसार
मप्र कांग्रेस में कमलनाथ के पद मोह के कारण आने वाले दिन कलह और क्लेश से भरे हो सकते हैं। कमलनाथ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं। इसे लेकर पार्टी में असन्तोष गहरा रहा है। इस मम्मले में दिग्विजय सिंह ने तटस्थ रुख अख्तियार कर रखा है। आगे पीछे यह भी कमलनाथ के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। नेताप्रतिपक्ष के लिए डॉ गोविंद सिंह, सज्जन वर्मा और जीतू पटवारी के नाम सबसे प्रभावी है। कमलनाथ यदि नेताप्रतिपक्ष बने रहना चाहते हैं तो उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ेगा। इस पद पर पटवारी का दावा ज्यादा मजबूत लगता है। अजय सिंह राहुल का नाम भी चचार्ओं में है। लेकिन इन सब मामलों में दिग्विजय सिंह जिसके साथ होंगे सफलता उसे मिलने के आसार ज्यादा हैं।