राघवेंद्र सिंह
मध्यप्रदेश भाजपा में रविवार को साढ़े चार बरस बाद नए पदाधिकारियों के पदभार ग्रहण का समारोह। उत्सवी वातावरण में उत्साही युवा पदाधिकारियों के लिए दूल्हे की तरह स्वागत सत्कार के प्रबंध। रैली की शक्ल में विक्ट्री का निशान दिखते अभी अभी नेता बने पदाधिकारी बने नेताओं का अपने समर्थकों का पार्टी कार्यालय में आना वर्तमान और भूतकाल के लोगों को कौतुक का विषय बना हुआ था। ऐसा लगा जैसे भाजपा में किसी को हराकर नई तुम का गठन हुआ और पुरानों को अपदस्थ कर नए “सत्तारूढ़” हो रहे हैं। पदों से विदा किए गए नेताओं को गैरहाजरी देख लगा कि वे पद ही नही पार्टी से भी रुखसत हो गए या कर दिए गए हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के साथ तीन तीन प्रदेश प्रभारियों की अनुपस्थिति अच्छे भले सुस्वादु भोजन में कंकर की तरह लगी।
तमाम प्रशंसा, आलोचना- समालोचना के बीच प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा बधाई के हकदार हैं कि वे देर से ही सही अपनी टीम अपने हिसाब से बनाने में सफल हुए। वे खुद भी जानते है कि उन्होंने कितना बड़ा काम किया है। उनके पहले राकेश सिंह और नन्दू भैया भी अपनी टीम बनाने का काम नही कर पाए थे। पदाधिकारी चुनने के मामले में जो सफल रहे नेताजी लोग स्थान नही पा सके हैं उनके दर्द को समझने के लिए भारतीय क्रिकेट टीम के एक ऐसे खिलाड़ी की याद रही है जो वेस्टइंडीज के खिलाफ शतकीय पारी में 142 रन बनाने के बाद भी दोबारा टीम में नही चुने गए। इस खिलाड़ी का नाम मोहम्मद कैफ है। उसने पिछले साल रिटायरमेंट लिया है। सन्यास के ऐलान के समय उन्होंने कहा कि मुझे आज तक यह पता नही चल पाया कि शतक बनाने के बाद भी उन्हें टीम में क्यों नही लिया गया। शायद मरते दम तक उन्हें ये सवाल फांस की तरह चुभता रहेगा। भाजपा को यहां तक लाने वाले ऐसे अनेक नेता होंगे जो “वक्त है बदलाव का, और बदलती भाजपा” में युवाओं को आगे लाने के लिए खुद को डस्टबिन में डला या फेंका हुआ महसूस कर रहे होंगे। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि नई टीम निर्वतमान नेताओं के त्याग और समर्पण को विस्मृत करने के अपराध से भी बचे, यह ही उनके एक्शन प्लान का हिस्सा होगा। पहले दिन तो इस भाव के दर्शन नही हुए। बहुतेरे नेता मन मसोस कर किल्पते हुए रह गए होंगे।
एक वरिष्ठ नेता ने कहा नए नेता भी सब सम्भाल ही लेंगे लेकिन दिल दुखाकर शायद उपलब्धियों के ढेर बहुत दिन तक हरे भरे नही दिखते। कोई हरा चश्मा लगाए रखे तो अलग बात है।
रघु जी अस्पताल में …
भाजपा के बुजुर्ग नेता रघुनन्दन शर्मा दो दिन से कोविड 19 की चपेट में आने के बाद चिरायु अस्पताल के रुम 211 में भर्ती है मगर किसी ने उनकी कोई खैर खबर नही ली। जाहिर है पार्टी या नेतागण उनको पूछ नही रहे हैं। जश्न में डूबी भाजपा और उनके नेताओं ने उन्हें फोन भी नही किया। पद मिलने के बाद आशीर्वाद लेने घर जाने की बात ही छोड़िए किसी ने फोन भी नही किया। श्री शर्मा ने पार्टी को अपनी पूरा जीवन भाजपा को दिया है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं लेकिन आज उनके विस्तार में जाने का वक्त नही है। उपेक्षा के यह उदाहरण चिट्ठी को तार रूप में समझना चाहिए। एक वरिष्ठ नेता का कहना है अनुभव सब सिखाता है।थोड़ा समय लगेगा यह टीम भी सीख जाएगी। लेकिन इतना तय है कि नई टीम में प्रदेश को जानने वाले और कार्यकर्ता की पीड़ा जानने वाले नए नेताओं की दरकार है। मुख्यमंत्री बनने के पहले शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि छोटों को स्नेह और बड़ों को सम्मान देंगे। वे उस लाइन चले तो चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए।
मैं तो उसे ढूंढ रहा हूं…
यदि संगठन की उम्मीदों पर पूरी टीम खरी नही उतरी तो एक कवि सम्मेलन का लतीफा याद आ रहा है। जिसमें काव्य पाठ कर रहे कवि के सामने एक श्रोता लट्ठ लेकर टहलने लगा था। बार कविता बदलने के बाद भी जब कवि के यह पूछने पर की यदि आपको कविता पसन्द नही आ रही तो मैं बैठ जाऊं। इस श्रोता ने कहा तू तो पढ़े जा “मैं तो उसे ढूंढ रहा हूँ जो तुझे लेकर आया है” । नई टीम चुनने वाले से ज्यादा चुने गए पदाधिकारियों को यह साबित करना है कि उनका चयन सही हुआ है।