राघवेंद्रसिंह
मध्यप्रदेश अजब है और यहां की कांग्रेस उससे भी गजब है। देश पांच प्रदेशों के चुनाव में उलझा है मगर यहां गांधी की कांग्रेस को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गांधी के हत्यारे गोडसे के समर्थक के विवाद में फंस दिया है। इसकी गर्माहट सूबे से उनकी विदाई की वजह बन जाए तो हैरानी नही होगी। मामला विचारधारा का जो ठहरा। प्रदेश कांग्रेस ही इस मुद्दे पर दो फाड़ हो रही है। एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के सुर खासे तीखे हो गए हैं।
गोड़सेवादी के पार्टी में प्रवेश व विरोध के दो पाटों के बीच कांग्रेसजन सेन्डविच हो रहे है। खुद को बचाने में उलझ कमजोर हाईकमान इस बेहद सम्वेदनशील मसले पर हकीकत जानने के बाद निर्णय करने के ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है।
कांग्रेस इन दिनों अपने सबसे खराब दिनों से गुजर रही है। पार्टी हाईकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी राख में दबी बगावत की आंच में तप रहे है। गुलामनबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, आनन्द शर्मा, विवेक तनखा के साथ दिग्गज कांग्रेसी सीधे सीधे सोनिया गांधी को चुनौती दे रहे हैं। गांधी परिवार बागी तेवर अपनाने वाले नेताओं से नित नही पा रहा है और ऐसे में कमलनाथ की अगुवाई में गांधी के हत्यारे गोडसे के समर्थक बाबूलाल चौरसिया को कांग्रेस में शरीक कर नया बखेड़ा पैदा कर डाला है। पूरी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर कटघरे में खड़ा कर दिया है।
भाजपा भी गोडसे समर्थक को कांग्रेस में लेने के सवाल पर मजे ले रही है। भाजपाइयों का कहना है कांग्रेस के पास नेता-कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ गया है। इसलिए वह गोडसे समर्थक को पार्टी में ले रही है। कांग्रेस के लिए सबसे चिंताजनक बात यह है कि उसके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव बहुत व्यथित हैं और उन्होंने गोडसे समर्थक की कांग्रेस में एंट्री का खुलकर विरोध कर डाला है। कहा जाता है कि ग्वालियर में गोडसे का मंदिर बनाने वालों में शामिल रहे पूर्व पार्षद बाबूलाल के कांग्रेस में प्रवेश पर पूर्व मुख्यमन्त्री दिग्विजय सिंह के अनुज वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण सिंह और वरिष्ठ नेता मानक अग्रवाल भी इस मुद्दे पर कमलनाथ के खिलाफ हैं। यादव कहते हैं – बापू हम शर्मिंदा है। वे कहते हैं मेरी आवाज गांधी विचारधारा को समर्पित कार्यकर्ताओं की आवाज है। इसके लिए वो कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। लक्ष्मण सिंह कहते हैं गोडसे समर्थको की जगह कांग्रेस नही जेल में होना चाहिए। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में यह मुद्दा और भी तूल पकड़ेगा। नाथ समर्थक सज्जन वर्मा जरूर यादव पर तंज करते हुए कहते हैं उनके इलाके से दो विधायक पार्टी छोड़ गोड़सेवादियों से मिल गए हैं।
इस पूरे मामले में चौरसिया का कहना है कि वाल्मीकि जी का डकैत होने के बाद जब ह्रदय परिवर्तन हो सकता है तो मेरा क्यों नही। अब मैं कांग्रेस में शामिल हो कर गांधी की लाठी बनने जा रहा हूं। भाजपाई कहते हैं कि कांग्रेस को अपना नाम बदलकर गोड़सेवादी कांग्रेस रख लेना चाहिए।
दिग्ग्विजय सिंह की खामोशी क्या कहती है..?
कांग्रेस आलाकमान को टीम गुलामनबी आज़ाद के बागी तेवरों और मप्र के गोडसे समर्थक के कांग्रेस में प्रवेश को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की खामोशी सियासी हलकों खासतौर से कांग्रेस के भीतर बेचैनी पैदा कर रही है। श्री सिंह सियासी और सामाजिक जीवन में महात्मा के आदर्शों को जीने में भरोसा रखते हैं। गांधी को ओढ़ने – बिछाने वाले इस नेता का कुछ न बोलना बताता है कि गोड़सेवादी को कांग्रेस में लाने के मामले में कमलनाथ औए उनके बीच सहमति तो छोड़ दें शायद चर्चा भी नही हुई। वरना अब तक इसके समर्थन में उनका बयान आ चुका होता। जाहिर है कि कल तक जिन नाथ और सिंह की जोड़ी को छोटे – बड़े भाई के रूप में जाना था वे दिग्विजय सिंह अपने बड़े भैया के फंसने पर बचाव में अवश्य आते। दोनो नेताओं के बीच सम्बन्धों को लेकर लगता है प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनने से गिरने तक नर्मदा जी में बहुत पानी बह गया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेताप्रतिपक्ष के पद पर नाथ का बने रहना भी कांग्रेस को कमजोर ही कर रहा है। श्री नाथ की बढ़ती उम्र और भीड़ से बचने के स्वभाव के कारण कांग्रेस सड़क से सदन तक संघर्ष नही कर पा रही है। पांच प्रदेशों के चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस में परिवर्तन अवश्यम्भावी लगता है। प्रदेश के गोड़सेवादी के कांग्रेस विवाद की रिपोर्ट सिंह केम्प दिल्ली दरबार को भेज ही रहा होगा। इस प्रकरण से लगता है आगे पीछे प्रदेश की राजनीति से कमलनाथ की विदाई हो जाएगी। प्रदेश कांग्रेस और विधायक दल के प्रदर्शन से यह काम विरोधियों से ज्यादा खुद कमलनाथ करते दिख रहे हैं।
मप्र में कमजोर विपक्ष
देश और दल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु,आसाम,केरल और पंडुचेरी जैसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं। इन लगभग सभी राष्ट्रीय और प्रादेशिक प्रमुख दलों व उनके नेताओं ने अपनी ताकत झौंक रखी है। लेकिन अजब गजब मध्यप्रदेश की भांति यहां की प्रदेश कांग्रेस को समझना भी एक पहेली की भांति है।दिल्ली से लेकर मध्यप्रदेश के प्रतिपक्ष के लिए सबक है महाराष्ट्र की घटना। विपक्ष की ताकत महाराष्ट्र में नजर आई। इसमें एक मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। मामला पुणे की एक टिकटॉक स्टार पूजा ने आठ फरवरी को पुणे के वनबाड़ी इलाके में एक इमारत से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। इससे विवादों में फंसे वन मंत्री संजय राठौड़ मुश्किल में पड़ गए थे। उनकी अनेक फोटो पूजा के साथ वाइरल हुई थी। भाजपा ने मंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए विधानसभा सत्र नही चलने की चेतावनी दी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से चर्चा के बाद मंत्री राठौड़ ने इस्तीफा दे दिया।
महाराष्ट्र के मंत्री का त्यागपत्र एक उदाहरण है विपक्ष की शक्ति का। दूसरी तरफ दिल्ली में किसान आंदोलन से लेकर भोपाल तक कमलनाथ की कांग्रेस भाजपा सरकार के कानों पर जूं तक नही रेंगा पा रही है। दिग्विजय सिंह अलबत्ता गाहेबगाहे भाजपा सरकार से लड़ने का एलान करते दिखते हैं लेकिन कमलनाथ जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए सड़क से सदन तक संघर्ष की मुद्रा में नजर नही आते।