राजीव सक्सेना
भारत भवन : बड़ी झील के किनारे
कला विधाओं का अनूठा समागम..
इंदिरा गाँधी जी के रहते कला और संस्कृति के संरक्षण के तहत उन्नीस सौ बयासी की दो बड़ी
सौगात… रंगीन दूरदर्शन के शुभारम्भ और विस्तार के साथ ही… मध्यप्रदेश की खूबसूरत राजधानी भोपाल में विविध कला केंद्र ‘भारत भवन ‘ की स्थापना मानी जाएंगी.
दूरदर्शन ने दिल्ली से लेकर देश के कोने – कोने में अपने पैर पसारे… तो देश के दिल से … सांस्कृतिक गतिविधियों का एक अंतहीन सा सिलसिला भारत भवन….के ज़रिये देश – विदेश के कलाकारों को… एक उम्दा मंच हासिल हुआ.. बीते सेंतीस साल में इस कला परिसर में एक छत के नीचे… बहुविधा.. से जुड़े तमाम कला – अनुष्ठान…विश्व भर में कीर्तिमान की तरह साबित हुए..
उन्नीस सौ सतासी से लेकर सत्तानबे तक दस साल अखबारों में रविवारीय संपादक और कला समीक्षक की दोहरी ज़िम्मेदारी निभाते हुए श्यामला हिल्स के कृष्णा नगर में जे. स्वामीनाथन मार्ग पर… स्तिथ भारत भवन की गतिविधियों से लगातार सम्बध्द रहने का अवसर मिलता रहा… एक नहीं, अनेक खट्टी – मीठी यादें.. एक एक कर उभर कर मानस पटल पर जगह तलाश रही हैं…
ऐतिहासिक कमला पार्क से पॉलिटेक्निक चौराहे की ओर जाते हुए बाबा साहब की दरग़ाह से सीधे हाथ की तरफ मुड़कर… मुख्यमंत्री निवास और वनविहार के रास्ते पर… मिस्र के पिरामिड का सा आभास देते हुए.. कुछ झुके हुए से तिकोने गुम्बद… और उन पर उकेरी हुई लोक संस्कृति की अनूठी झलक…..बड़े से द्वार से भीतर प्रवेश करने पर बाएं हाथ पर टिकट घर…दाएं पर…कुछ आगे.. “स्वाद” नामक रेस्त्रां…
सीधे जाने पर… भव्य अंतरंग…और कोई आधा दर्ज़न आर्ट गैलेरीज… इससे पहले प्रसाशनिक कार्यालय… लायबेरी… सिरेमिक सेंटर… और फ़िल्म सेक्शन…
छत से पीछे की तरफ जाने पर… राजधानी की शान बड़े तालाब के खुशनुमा नज़ारों को समेटे हुए एम्फी थिएटर बहिरंग…
स्व. अर्जुन सिंह जी के मुख्य्मंत्रीकाल में संस्कृति सचिव रहे कवि अशोक वाजपेयी की व्यक्तिगत रूचि के चलते भारत भवन ने शुरुआत के तकरीबन दस बरस विश्व स्तर के अनगिनत आयोजन से अपना सांस्कृतिक खाता समृध्द किया…बाद में इतनी ही संख्या विवादों की भी रही.. और उतार – चढाव का बैलेंस बना रहा…
दैनिक जागरण में साहित्य संपादक रहते हुए विश्व कविता समारोह सरीखे विराट आयोजन का एक अदद हिस्सा बतौर समीक्षक बनना सचमुच सौभाग्य ही रहा…देश विदेश के ख्यात कवियों से भारत भवन की तालाब किनारे की सीढ़ियों पर बैठकर साक्षात्कार लेना…स्वार्गिक अनुभव सा था…
“अंतरंग ” के भव्य सभागार में भारतीय पद्धति की.. सीढ़ी पर आसननुमा बैठक में दर्जनों नाट्य प्रस्तुति… नृत्य प्रदर्शन देखना… कवियों… लेखकों… आलोचकों को सुनना….
और अगले दिन के अपने अख़बार के लिए वहीं से सीधे दफ़्तर जाकर रात में ही लिखकर देना…
देर रात घर आकर खाने का तब एक अलग ही रोमांच हुआ करता…
शीर्ष रंगपुरुष ब. व. कारंथ साहब… मशहूर पेंटर जे. स्वामीनाथन साहब से कई कई बार गुफ़्तगू कभी ना भुला पाने वाली यादें हैँ… “आगरा बाज़ार ” के प्रदर्शन पर हबीब तनवीर साहब से पहली भेंट… बाद में “मिट्टी की गाड़ी” के वक़्त उनसे दोबारा लम्बा इंटरव्यू और नया थिएटर के सभी कलाकारों के साथ ग्रुप फोटो और बातचीत… यादगार रही…
रंगमंडल के दूसरे बेच के स्थायी कलाकारों में स्व. विभा मिश्रा, अलोक चटर्जी, सरोज शर्मा, मांगीलाल शर्मा… संजय मेहता..मीना सिद्दू… कमल जैन.. से मित्रता के रिश्ते लम्बे समय रहे.
चित्रकार अखिलेश जी…लोक कलाकार जनगण सिंह श्याम, जदुमणि.. सिरेमिक आर्टिस्ट, मूर्तिकार देवीलाल पाटीदार..पुष्पनीर जैन.. रॉबिन डेविड… संगीतकार उमाकांत – रमाकांत गुंदेचा, उमेश तर्कसवार… प्रशासनिक अधिकारी कवि ह्रदय ध्रुव शुक्ल, प्रकाशन प्रभारी मदन सोनी… से लेकर फ़िल्म प्रभारी…सैनी जी और छायाकार विजय रोहतगी तक से लगभग रोज़ की दुआ सलाम और प्रेम व्यवहार ने भारत भवन को अपने ही घर का एक हिस्सा बना दिया था…
कभी एकदम सुबह… कभी दोपहर…तो कभी शाम भारत भवन की चाहरदीवारी में… स्वाद रेस्त्रां के समोसे और चाय पर कला चर्चा के साथ बिताना शग़ल भी और ग़हरी रूचि की तरह रहा…
बंशी कौल, मीता वशिष्ठ, सुरेश भारद्वाज… मोहन महर्षि… सुषमा सेठ.. प्रभात गाँगुली साहब…से मुलाक़ात…अविस्मरणीय रहीं..
अकस्मात् लगे ग्रहण की तर्ज़ पर…कारंथ साहब और आर्टिस्ट विभा मिश्रा प्रकरण ने इस केंद्र की छवि पर आलोचकों को छींटाकशी के कई सारे मौक़े दे डाले…
समय बदला… कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकार अस्तित्व में आयी और यूपी से दया प्रकाश सिन्हा जी को भारत भवन की कमान सौपी गई…रंगमंडल में शेखर वैष्णवी के अलावा अन्य जगहों पर अनेक बदलाव हुए…
निजी रंग संस्थाओं को भारत भवन परिसर के अंतरंग उपलब्ध कराने जैसे निर्णय सकारात्मक भी और नकारात्मक भी माने गए…
मुझे भी एक नाट्य समारोह एक पत्रिका ‘रंगकृति’ के साथ… अंतरंग में आयोजित करने का अवसर हासिल हुआ.
13 फ़रवरी 1982 से अब तक के अड़तीस बरस में भारत भवन की दीवारों पर…कई रंग चढ़े… उतरे… रंगत… अब बदरंग सी हो चली कहने में गुरेज नहीं…बोर्ड मेंबर्स के चयन में… लगातार लापरवाही और भाई भतीजावाद हावी होना दुखद है…कभी अदने से कर्मचारी रहे अब संस्कृति विभाग के सर्वेसर्वा बतौर कमान सम्हाले बचकाने से फैसले ले रहे हैं.. कभी बोर्ड में हबीब साहब सरीखे सही लोग रहे…आज शशि जी की बेटी संजना कपूर हैं…वहीं…राम तेरी गंगा मैली की एक नायिका रही दिव्या राणा भी सदस्य हैं…
परिकल्पनाकार चार्ल्स कोरिया की डिजाइन की गई बुलंद ईमारत सीना ताने ज़रूर खड़ी है पर नित नये प्रयोग इसकी बुनियाद हिलाने की सतत कोशिश में हैं…
ब हर हाल, भारत भवन की कुल उपलब्धियों ने
बदलते हालातों की विडंबना पर पर्दा डाला हुआ है…और, एक बेहतर कल की आशा अब भी कहीं जीवित नज़र आती है…