और मैं रास्ते की तरह देखता रह गया!!!

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•शशी कुमार केसवानी

दुनिया में भाईयों में अक्सर प्यार होता है। लेकिन कुछ भाई ऐसे रहते है। जिनमें बहुत प्यार रहता है। मैं उन खुशनसीबों में से हूं जिन्हें अनंत प्यार करने वाला बड़ा भाई मिला। बहुत डांट भी मिली। नाराजगी भी मिली, लेकिन इन सबके पीछे छुपा हुआ बेशुमार प्यार ही था।
लेकिन मैं उन बदनसीब लोगों मे से भी हूं जिनका भाई उनकी आंखो के सामने हाथों में हाथ लिये हुए इस फानी दुनिया से जा रहा था और मै मेरा भतीजा रौनक बेबस मजबूर ,असमर्थ, असहाय डॉक्टरों के प्रयासो को देख रहे थे। लेकिन उस खुदा के आगे न हमारी चली न डॉक्टरों की, सभी हारे हुए खड़े रहे।
मेरे बड़े भाई राजकुमार केसवानी दुनिया के लिए पत्रकार, लेखक,कवि, फिल्म इतिहासकार थे पर मेरे जीवन में तो बचपन से लेकर आज तक उस्ताद ही रहे। चाहे मेरे स्कूल में एडमिशन का हो या किताबें लेनी हो चाहे जीवन के जो भी फैसले रहे हो वो सब वो ही देखते थे। उनका अनंत प्रेम अपने आपसे अलग ही नहीं कर पाता था। जब धीरे-धीरे बड़े होने लगे तो क्रिकेट खेलने से लेकर सभी खेलों को सिखाने की कोशिश करते रहे। चाहे वो साइकिल या स्कूटर चलाना हो सब समय आने पर सब सिखाते रहे। जरा सी गलती पर बहुत नाराज भी हो जाते थे। बस थोड़ी देर में उससे कई गुना ज्यादा प्यार भी कर देते थे। कुछ समय बाद ऐसा समय आया जब भाइयों में से कब दोस्त बन गए पता ही नहीं चला। मैं सारी बातें अपनी जरूर बता देता वो भी सभी बाते शेयर करते थे
मुझे कम ही चीजों पर शाबाशी मिलती थी, बाकी चीजों के लिए सीख जरूर देते थे। लेकिन वो उनका एक अलग अंदाज था। हम अक्सर होटलों में खाने के लिए जाया करते थे दोनों का स्वभाव चटोरेपन वाला था। कई होटल वाले आश्चर्य करते थे कि दो भाई अक्सर होटल में आकर बहुत देर तक खाते रहते है और बातें करते रहते है हसी ठहाकों के साथ ऐसा शायद उन्हें कम देखने को मिलता था। भाई साहब तो अक्सर फोन कर देते थे,कि जल्दी आ जाओ तुम्हारी पसंद का खाने मे कुछ बनाया है। मैं भी दीवाने टाइप का आदमी जो ठहरा तो तुरंत पहुंच जाता था और साथ-साथ खाते थे, और घंटों बाते बहस व मस्ती करते रहते थे। लेकिन आज पीछे मुड़कर देखता हूँ तो जीवन में जैसे सब कुछ खाली हो गया है। भाई साहब का अचानक यूं जाना दिल में एक वीरानगी और अकेलापन छोड़ गया है। जिसे शायद मैं शब्दों में कभी भी जाहिर नहीं कर पाउंगा जब अस्पताल में थे, जब मेरा हाथ वो पकड़ते थे तो एक अलग ताकत महसूस होती थी। ऐसा लगता था मेरे सिर पर अभी साया है और ये साया बना रहेगा, लेकिन भगवान को शायद ये मंजूर न था। इसी वजह से केसवानी परिवार अपने आप में एक अकेलापन महसूस कर रहा है। न केवल केसवानी परिवार उनके कई चाहने वाले मित्र, लाखों प्रशंसक भी ऐसा ही महसूस कर रहे है। मुझे याद आता है कि उनके जीने का एक अलग अंदाज था। अपनी हर किताब को ऐसे रखते थे जैसे छोटे बच्चे को संभालकर पाला जाता है। सालों पुरानी गानों की चौपड़ियां भी ऐसे रखते थे। जैसे कोई जौहरी हीरे जवाहरात रखता हो। किताब के छूने पर वो अक्सर नाराज होते थे और मेरा पेट बिना डांट खाए भरता नहीं था। तो जानबूझकर किसी किताब को छेड़ता जरूर था। डांट भी पड़ती, मजा भी आता था, भाभी पीछे से खड़ी हुई हंसती रहती थी। वो जानती थी कि ये सब जानबूझकर कर रहा है उन्हें ये भी पता था कि इस डांट के भीतर क्या छुपा है। बाद में कहती कि दोनों भाई एक-दूसरे के बिना रह भी नहीं पाते हो और रूठते भी रहते हो तो भाई साहब गुस्से में कहते थे ये जबरदस्ती मेरी किताबों को छेड़ता है। मेरी हंसी निकल जाती थी तो वो और नाराज होते थे। मैं दिल में सोचता था कि यार है तो किताब ही कोई लड़की तो है नहीं कि छेड़ रहा हूं पर ये बात समझने में मुझे सालों लग गए कि उनका प्यार उन किताबों के लिए किसी महबूबा से कम नही था भाई एक व्यक्ति न होकर अपने आप में एक यूनिवर्सिटी ही थे जिनसे अनंत सीखने को मिलता था। मुझे ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को समाज व देश को लेकिन अब जो जीवन का खालीपन है अब न कोई सिखाने वाला है न बहुत कुछ सीखने की इच्छा रह गई है।
पर हां उस्ताद के कुछ अधूरे काम है जो पूरे करने है उन्होंने ही यही सिखाया था परिस्थिति चाहे जो हो सोचा हुआ काम पूरा करना ही चाहिए, बस यही सोच के साथ अब आगे बढ़ना है क्योंकि जीवन में उस्ताद तो एक ही होता है उस्ताद के जमूरे बहुत हो सकते है पर इस उस्ताद का मैं वो जमूरा हूँ, जो वो चाहते थे उसे हर हाल मै पुरा करने का इरादा भी रखता हूँ
तभी तो उस्ताद का सच्चा जमूरा रहूंगा जिसे वो कभी अपनी नजरों से दूर नही होने देते थे हर पल नजर रखते थे।
लिखने को तो ग्रन्थ है पर अब बस।
भाई मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया!!