लक्ष्मीकांत शर्मा यानी कि धूमकेतु सी राजनीति ….

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ब्रजेश राजपूत ( पालिटिक्स वाला पोस्ट से साभार )


सिरोंज के श्मशान घाट पर लक्ष्मीकांत शर्मा को जब पीपीई किट पहन कर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जा रही थी तो वहां मौजूद सभी की आंखें नम थीं। विदिशा जिले के इस छोटे से कस्बे से निकल कर प्रदेश की राजनीति में भरपूर नाम और बाद में घनघोर अपमान कमाने की ऐसी कथा किसी नेता की कम ही मिलती है।
मध्यप्रदेश की राजनीति में लोगों ने लक्ष्मीकांत शर्मा को 1993 में उस दौर में जाना जब प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी। उसके बाद अगला चुनाव 1998 में भी लक्ष्मीकांत ने लंबे अंतर से जीता मगर 2003 की उमा भारती की लहर में जब बीजेपी ने सरकार में वापसी की तो उनको उमा सरकार में स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बना कर महत्व दिया गया। उसके बाद तो उन्होंने फिर पीछे मुड कर नहीं देखा। 2008 में भी उन्होंने चुनाव जीता और शिवराज सिंह चौहान की सरकार में भी कई विभागों के कैबिनेट मंत्री बने। लंबा कद, काले बाल, माथे पर तिलक और आमतौर पर पीले रंग का कुर्ता और उस पर बढिया धोती। इस पूरे परिधान में पक्के पंडित की तरह फब कर उस पर अपनी मुस्कान से हर आदमी पर छाप छोडने वाले लक्ष्मीकांत दूर से अपनी ओर सबका ध्यान आकर्षित करते थे। विधायक बनने के पहले आरएसएस से संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में अध्यापक थे। आरएसएस के संगठन में उनकी अच्छी पैठ थी जिसका फायदा उनको राजनीति में मिला और उनकी तरक्की लगातार हुयी जब तक की उनको व्यापम का ग्रहण नहीं लगा। बीजेपी सरकार में पार्टी के सारे बड़े नेताओं को सरकारी विमान से दिल्ली से लाने ले जाने और उनकी आवभगत से लेकर ठहराने तक की जिम्मेदारी शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को ही मिलती थी यही वजह थी कि वो जल्दी ही दिल्ली के आलाकमान और आरएसएस के बडे नेताओं के भी लाडले हो गये थे। और कुछ लोग उनको शिवराज सिंह के विकल्प के तौर पर आंकने भी लगे थे। यही से वो भोपाल में बैठे बडे नेताओं और मंत्रियों को खटकने भी लगे थे। कैबिनेट मंत्री के तौर पर लक्ष्मीकांत ने बहुत सारे विभाग संभाले जिनमें जनसंपर्क, खनिज, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा सरीखे नाम कमाने वाले विभाग थे। मगर नाम कमाते कमाते कब वो बदनामी कमा लेगे ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा।


मध्यप्रदेश में तकनीकी शिक्षा विभाग के अंतर्गत आता था व्यापम यानिकी व्यावसायिक परीक्षा मंडल जिसका काम प्रदेश में मेडिकल कॉलेज की भर्ती के अलावा नौकरी की दस से ज्यादा परीक्षाएं आयोजित करना। 2009 में जब व्यापम कांड खुला तो लोग ये जानकर हैरान रह गये कि परीक्षा में पास कराने का गोरख धंधा व्यापम के अफसर और दलालों की मदद से चल रहा था। मेडिकल परीक्षा में एडमिशन कराना हो या फिर नौकरी दिलाना सबमें पैसा खर्च कर भर्तियां हो रहीं थीं। इतना बडा घोटाला बिना किसी नेता की मिलीभगत से चल नहीं सकता था इसलिये उस दौर के अनेक बीजेपी नेताओं के नाम इसमें आने लगे। उमा भारती से लेकर आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक के सुदर्शन का नाम भी इसमें उछाला गया मगर इसमें पकडे गये लक्ष्मीकांत शर्मा। शर्मा को उनके निशात कालोनी वाले उस घर से ही गिरफ्तार किया गया जिसमें वो मंत्री बन कर ठाठ से रहते थे। जांच एजेंसियों ने दावा किया कि लक्ष्मीकांत के खिलाफ पक्के सबूत हैं इस घोटाले में शामिल होने के। फिर तो भोपाल की अदालत में चलने वाली पेशियों पर लक्ष्मीकांत एक मामले में जाते थे और दो दूसरे मामले में गिरफ्तार हो जाते थे। व्यापम से लाभ पाकर नौकरी पाने वालों में बडे बडे लोगों के नाम आये और इससे साफ हो गया कि कोई व्यक्ति था जिसने प्रभावशाली लोगों से जुडे लोगों को नौकरियां दिलवायीं। लक्ष्मीकांत फंस चुके थे। लंबे समय तक उनको भोपाल की केंद्रीय जेल में रहना पडा। जेल में रहने के दौरान किसी खबर के सिलसिले में एक बार जब मैं उनसे मिलने गया था तो वो फूट फूट कर रो पडे थे। कहने लगे कि ना तो यहां आपका टीवी देख पाता हूं और ना ही कोई अच्छा अखबार। वक्त की बलिहारी देख कर मैं भी हैरान था कि जो व्यक्ति प्रदेश सरकार का जनसंपर्क मंत्री रहा हो जिसके घर सारे चैनल और सैंकडों अखबार आते हों वो कैसे एक एक अखबार के लिये तरस रहा था। लक्ष्मीकांत ने व्यापम को लेकर कभी अपना मुंह नहीं खोला चाहे जेल में हो या उसके बाहर वो चुप ही रहे। जेल से निकलने के बाद भी अधिकतर समय उन्होंने भोपाल के रिवेरा कालोनी के अपने घर पर एकांत में ही काटा। वो बहुत कम लोगों से मिलते जुलते थे मगर एक बडे घोटाले का राजदार होने का फायदा उन्होंने ये जरूर उठाया कि अपनी सीट पर उनको नहीं तो अपने बडे भाई उमाकांत शर्मा को बीजेपी से टिकट दिलाकर विधायक बनवा ही दिया। भाई की राजनीतिक पारी शुरू होते ही लक्ष्मीकांत और शांत हो गये और पिछले दिनों कोरोना की चपेट में आकर बहुत सारे राज अपने सीने में समेटकर चले ही गये।

उनसे जुडा मुझे एक किस्सा और याद आता है 2013 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दो जगहों से चुनाव लडा था। बुधनी के अलावा विदिशा से भी। शिवराज सिंह जब विदिशा से पर्चा भरने कलेक्ट्रेट गये तो हम सब भी थे। वहीं एक कोने में मुझे हाथ में बडा सा नारियल लिये और रामनामी ओढे छिपे हुये लक्ष्मीकांत खडे थे मैंने उनको पहचाना और जरा सी बात करनी शुरू ही की थी कि उनके पुरोहित ने इशारा किया और वो मेरा अच्छा मुहूर्त है कहकर चल दिये चुनाव का पर्चा भरने। मगर वो नहीं जानते थे कि वो उनका अच्छा मुहूर्त नहीं था। उसी चुनाव से उनके सितारे गर्दिश में आ गये वो सिरोंज का चुनाव बुजुर्ग नेता गोवर्धन उपाध्याय से हारे और उसके कुछ महीने बाद ही जांच एजेंसी का शिकंजा उन पर कसा और वो व्यापम घोटाले में गिरफ्तार हो कर लंबे समय के लिये जेल चले गये। कर्मकांडी ब्राह्मण जिनके परिवार में पुरोहिताई होती हो उनके राजनीतिक करियर पर ऐसा ग्रहण लगेगा किसी ने सोचा भी नहीं होगा। लक्ष्मीकांत शर्मा मध्य प्रदेश की राजनीति में धूमकेतु की तरह उभरे और उसी तरह अस्त हो गये। पहले आभा बिखेरी बाद में अंधकार में विलीन हो गये।