‘नायक’ शिवराज के इर्द-गिर्द घूमती मप्र की ‘सियासत’

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कौशल किशोर चतुर्वेदी

मध्यप्रदेश की सियासत की कहानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। कभी पार्टी के अंदरखाने की गतिविधियों से शिवराज चर्चा में आते हैं तो कभी विपक्षी दल कांग्रेस शिवराज को चर्चा में ला देता है। मुख्यमंत्री के पद पर चौथी पारी धुआंधार तरीके से आगे बढ़ा रहे शिवराज की सेहत पर फर्क पड़ता है या नहीं, यह तो शिवराज ही बता सकते हैं लेकिन हर फिल्म में ‘नायक’ की भूमिका में वह ही नजर आते हैं। सारी पटकथा उन पर ही केंद्रित रहती है। पिछली तीन पारियों ने जहां उन्हें ‘जननायक’ बनाकर जनता का प्रिय नेता बनाया था तो चौथी पारी ने यह साबित कर दिया है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर इतनी लंबी पारी खेलने की बराबरी कर पाना नामुमकिन नहीं तो आसान भी नहीं है।

हाल-फिलहाल शिवराज को लेकर कांग्रेस ने निशाना साधा है कि मोदी जी ने शिवराज से दूरी दिखाई। चार तस्वीरों का हवाला देते हुए कांग्रेस ने साफ किया है कि यूपी के सीएम को मोदी ने बग़ल में बिठाया। उत्तराखंड के सीएम को बग़ल में बिठाया। असम के सीएम को बग़ल में बिठाया। जबकि मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज को दूर बिठाया। चुटकी ली गई है कि सरकार बदल गए हैं या सरकार बदलने वाली है। कांग्रेस का मंतव्य शायद मुख्यमंत्री बदलने को लेकर है। जिस तरह की सियासत की मध्यप्रदेश में पिछले दिनों चाय के बहाने चर्चा हुई थी, शिवराज और मोदी के बीच दूरी के नाम पर कांग्रेस ने भी एक बार ख्याली पुलाव बनाने की कोशिश की है।
वास्तव में कहा जाए तो इस कुर्सी के असली हकदार भाजपा में यदि कोई है तो वह शिवराज ही हैं। लगातार हटाए जाने, बदले जाने और किसी नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाए जाने की अफवाहों और कयासों के बीच यदि कोई चेहरा मुस्कराता हुआ और ज्यादा निखरा-निखरा सा नजर आता है तो वह भाजपा की मध्यप्रदेश की सियासत में शिवराज का ही होता है।

जहां तक गौर करें तो जब नरेंद्र मोदी 2014 के मई महीने में प्रधानमंत्री बने थे तब मध्यप्रदेश में शिवराज की पारी के महज छह महीने भी नहीं बीत पाए थे। और तब ही यह कयास मध्यप्रदेश के सियासी समंदर में तैरने लगे थे कि शिवराज मुख्यमंत्री पद से हटने वाले हैं। फिर जब-जब शिवराज दिल्ली गए होंगे तब-तब पार्टी के अंदर के शुभचिंतकों ने चैन की सांस ली होगी कि अब तो मोदी बस्ता दिल्ली में रखवाकर शिवराज को दिल्ली में ही बिठा लेंगे। तब चुनौती अंदर से ही मिल रही थी और नए चेहरा बनने के ख्वाब भी चुपके-चुपके तो देखे ही गए होंगे। खैर जब शिवराज बने रहे तो लोगों ने समझ लिया कि शिवराज खिलाडी़ निकले और मोदी से सेटिंग हो गई है। फिर मोदी जब-जब मध्यप्रदेश आए, तब-तब फिर यह जरूर चुटकी ली गई कि मोदी मंच पर बैठे शिवराज की तरफ देखकर मुस्कराए ही नहीं। छत्तीसगढ जाते हैं तो सीएम रमन सिंह से खुलकर मिलते हैं। उनकी तरफ देखकर हंसते हैं। शारीरिक हावभाव से कयास लगाए जाते रहे कि मोदी कभी भी शिवराज को हटा सकते हैं। हालांकि तीसरी पारी के पांच साल ऐसे ही निकल गए और चुनाव से एक साल पहले तो मानो आंधी सी आई थी कि मुख्यमंत्री के पद पर चेहरा बदलने ही वाला है। मोदी आखिर में विधानसभा चुनाव 2018 से पहले मंच पर शिवराज की तरफ देखकर मुस्करा ही दिए और खुलकर तारीफ भी करते नजर आए। शायद यही सोचकर हंसे होंगे कि लोगों ने बहुत कोशिश की शिवराज लेकिन तुम्हें कोई हटवा नहीं पाया। लोगों को तो यही लगा कि चुनाव के चलते यह मोदी का सियासी चेहरा है। बाकी चुनाव के बाद भाजपा सरकार बनी तो मुख्यमंत्री बदल जाएगा।
हालांकि चुनाव के बाद भाजपा की सरकार नहीं बनी। जब शिवराज को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया तो लोगों को समझ में आ गया कि अब यह साबित हो गया है कि शिवराज न तो मोदी की पसंद थे और न ही मोदी की पसंद हैं। और पार्टी नेताओं ने यह मान लिया था कि अब शिवराज प्रदेश की राजनीति में हासिए पर चले जाएंगे। पर शिवराज ने हार नहीं मानी और पूरे प्रदेश का दौरा करते रहे। यह भी कहते रहे कि मैं मध्यप्रदेश छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। अंतत: 15 महीने बाद ही वक्त ने करवट बदली और प्रदेश में एक बार फिर भाजपा की सरकार बन गई। सरकार बनना तो तय हो गया पर इस बार मुख्यमंत्री चुनने में पार्टी को पूरे तीन दिन लग गए। लोगों के दिल धड़कते रहे और सपने में सीएम के नए-नए चेहरे दिखते रहे।  कमलनाथ भी अपनी सरकार गिरते-गिरते यह कहते रहे कि शिवराज तुम मुख्यमंत्री नहीं बन पाओगे भले ही सरकार भाजपा की बन जाए। पर सारे कयास झूठे साबित हुए, शिवराज का विकल्प बनने की सारी कवायदों पर पानी फिर गया और अब इसी महीने शिवराज को चौथी पारी में मुख्यमंत्री बने पूरे 15 माह होने वाले हैं। और अब एक बार फिर मुख्यमंत्री पद को लेकर कयासों का जो दौर चल रहा है, उससे यह लगने लगा है कि शिवराज के हटने या उन्हें हटाए जाने की जितनी चर्चाएं होती हैं…शिवराज की मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने की उम्र उतनी ही बढ़ती चली जाती है। और हो सकता है कि चर्चाएं जारी रहें और विधानसभा चुनाव 2023 की आचार संहिता लगने का समय आ जाए। और फिर इसके बाद बोलने, कयास लगाने वालों और राजनीतिक दलों का ध्यान मोदी-शिवराज की तस्वीरों की बजाय अपना-अपना चुनाव जीतने पर केंद्रित हो जाए। फिर मोदी चुनावी सभाओं में मंच पर शिवराज के करीब बैठें, मुस्कराएं, हंसें और यह सोचें कि तुम बाजीगर हो शिवराज। चूंकि भाजपा सीएम का चेहरा बताती नहीं लेकिन अगर शिवराज के नेतृत्व में चुनाव हुआ और भाजपा जीती तो यह बात तय है कि मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने के पक्षधरों के लिए चुनौती और ज्यादा बढ़ी रहेगी। हालांकि कल किसी ने नहीं देखा लेकिन यह तय है कि शिवराज की बराबरी कर पाना असंभव नहीं तो आसानी से संभव भी नहीं है। चाहे राजनैतिक उपलब्धियों का जिक्र हो, चाहे मुख्यमंत्री पद पर रहते सरकार की उपलब्धियों को इतिहास में दर्ज किया जाए…मध्यप्रदेश की सियासत में ‘नायक’ की भूमिका में शिवराज नजर आते रहेंगे।