चेन्नै। बच्चों को मौलिक और बुनियादी मानवाधिकार प्राप्त हैं। उन्हें अपने बचपन का आनंद उत्साहपूर्वक लेने दें। उन्हें तनाव न दें। ये बातें मद्रास हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में कही है। कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सीबीएसई स्कूलों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) का कोर्स लागू हो। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि कक्षा दो तक के बच्चों को होमवर्क न दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि बच्चे कोई वेट लिफ्टर (वजन उठाने वाले) नहीं होते। उनके बैग सामान भरने वाले कंटेनर नहीं होते। बच्चों पर कई विषयों की पढ़ाई के नाम पर जरूरत से ज्यादा पढ़ाई का बोझ न डालें।
High court order not to be given to children till Class-2, homework
5 साल तक न पकड़ाएं पेंसिल
जस्टिस एन किरुबाकरन की बेंच ने कहा कि बच्चों को अपनी छोटी से उम्र में जीभर के सोने का अधिकार है। यह मौलिक अधिकार संविधान के 21 आर्टिकल में दिया गया है। बच्चों को अगर पर्याप्त सोने नहीं दिया जाएगा तो इससे उनके दिमाग और शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है। जब तक बच्चे पांच साल के नहीं हो जाते, तब तक उन्हें पेंसिल न पकड़ाई जाए।
बच्चों का स्वास्थ्य दांव पर न लगाएं
बच्चों को बिना तनाव और मानसिक आघात के पढ़ने के लिए अनुकूल वातावरण दिया जाए। कक्षा 1 और कक्षा 2 के छात्रों को जो होमवर्क दिया जाता है उससे उनके सोने का समय प्रभावित होता है। जो किताबें प्रिस्क्राइब्ड नहीं है और उनकी उम्र के हिसाब से उपयुक्त नहीं हैं, वे उनकी मानसिकता को प्रभावित करती हैं। बच्चों को उनका स्वास्थ्य दांव पर लगाकर स्कूल में भारी बैग ले जाने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।
महत्वकांक्षी माता पिता चुरा रहे बच्चों की मासूमियत
पीआईएल पर सुनवाई करते हुए जस्टिस किरुबाकरण ने यह भी कहा कि महत्वाकांक्षी माता-पिता अपने बच्चों की मासूमियत चुरा रहे हैं। टास्कमास्टर, टीचर और अच्छा रिजल्ट देने के नाम पर स्कूल बच्चों को अप्रासंगिक किताबें पढ़ा रहे हैं। कोर्ट ने जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उन्हें इसी 2018-19 के शैक्षिक सत्र + से लागू करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश दायर की गई एक पीआईएल पर दिया है। यह पीआईएल वकील एम पुरुषोत्तमन की ओर से दायर की गई थी। उन्होंने इसमें मांग की थी कि हाई कोर्ट सीबीएसई स्कूलों में एनसीआरटी की किताबें पढ़ाए जाने को लेकर आदेश जारी करे।