TIO राकेश अचल
कलियुग में द्वापर के नजारे देखकर दिल बाग़-बाग़ है .दिल का बाग़ होना कोई आसान काम नहीं है. जिन लोगों का दिल बाग़ नहीं होता,वे लोग अपनी औलादों का नाम ही दिलबाग रखकर संतोष अनुभव कर लेते हैं ,लेकिन अपनी बात और है. अपना दिल सच्ची-मुच्ची का बाग़-बाग़ है .और क्यों न हो भला मंत्री जी जो उनके घर आये हैं .
कलियुग में तो पहले मंत्री बनना कठिन काम है.अव्वल तो चुनाव के लिए टिकिट कबाड़ो,फिर चुनाव जीतो और चुनाव जीतने के बाद भी मंत्री न बन पायो तो अपने नेता के दल के साथ दलबदल करो ,तब कहीं जाकर मंत्री बनो .मंत्री बनकर सबसे बड़ा काम होता है भक्तों के घर जाना और उनकी अँखियों की प्यास बुझाना .मंत्री का और भक्तों का पुराना रिश्ता होता है.चोली-दामन जैसा ,हड़िया-पारे जैसा .मंत्री के घर आते ही मन झूमकर गाने लगता है
-‘घर ए मेरे मंत्री जी
प्यास बुझी इन अंखियन की ‘.
हमारे शहर की रिवायत है कि जो भी मंत्री बनकर शहर आता है पहले उसका स्टेशन पर,हवाई अड्डे पर और नहीं तो उसके घर के दरवाजे पर स्वागत किया जाता है .मंत्री चूंकि मंत्री है इसलिए उसे मजबूरी में लोकलेखा परीक्षण के लिए अधिकारियों और पार्टी के नेताओं से मंत्रणा करना पड़ती है,लेकिन उसका असल काम भक्तों के घर जाकर उनके सुख-दुःख में भागीदारी करना होती है .मंत्री की मजबूरी ये है कि वो अपनी कमाई में से तो अपने भक्तों को कुछ दे नहीं सकता इसलिए उनके सुख,दुःख ही बांटकर भक्तों का दिल बाग़-बाग़ कर देता है .
मंत्री दरअसल कलियुग में कृष्ण का अवतार हैं .मंत्री और भक्त का कृष्ण और सुदामा का अटूट रिश्ता है. मंत्री किसी भी दल का हो उसका फर्ज है भक्तों के घर जाकर दर्शन देना,उनका घर आंगन पवित्र करना.उनकी बैठक याने दरबारे ख़ास में बैठकर चाय-पान करना,नाते-रिश्तेदारों,परिजनों और इष्टमित्रों के साथ फोटो खिंचवाना .इस मामले में मंत्री का दिल काफी उदार होता है .बेचारा भक्तों की खुशी के लिए तब तक फोटोशूट में शामिल होता है जब तक कि फोटोग्राफर या मोबाइलग्राफर ही अपने हाथ खड़े न कर दे .
मंत्री और भक्तों के इस परम पावन रिश्ते को लेकर मै बेहद भावुक हो जाता हूँ.मैंने देखा है कि मंत्री की संवेदना कितनी दीर्घजीवी होती है .मंत्री अपने भक्त के घर तब नहीं जाता जब उसके ऊपर दुखों का पहाड़ टूटा होता है. दरअसल ऐसा करना यानि सही वक्त पर भक्त के घर जाकर सुख-दुःख बांटने से मंत्रित्व की महिमा ही नहीं रहती .मंत्री तब जाता है जब भक्त की आँखों के आंसू अपने आप सूख जाते हैं.उन्हें रूमालों की जरूरत नहीं पड़ती .अनेक बार तो मंत्री शोक जताने दो-तीन माह बाद भी पहुँच जाते हैं. शादी में शामिल न हो पाने वाले मंत्री हनीमून मनाने गए वर-वधु को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आशीर्वाद दे देते हैं .मंत्री का काम ही ऐसा है. बेचारा जीवन बाहर भक्तों को देता ही तो है .लेता तो केवल चुनाव के वक्त है .
मजे की बात ये है कि हमारे मंत्रियों की संवेदना दलगत राजनीति से जुड़ी होती है. मंत्री किसी विरोधी के घर भूलकर भी नहीं जाता,कभी-कभी तो उसे दल के साथ ही गुट तक का ख्याल रखना पड़ता है .इस मामले में केवल पत्रकार बिरादरी अपवाद मानी जाती है. मंत्री किसी भी पत्रकार के यहां जा सकता है,भले ही वो किसी दल का ‘माउथपीस’ हो .पत्रकार और भक्त में जो फर्क होता है उसे मंत्री भलीभांति जानता है .
मंत्री का आना एक घटना है,एक इतिहास है. मुझे याद है कि मेरे यहां भी दो मर्तबा कुछ मंत्री मेरा पहले से पावन घर पावन करने आये थे .मेरा मंत्रियों से भक्तों वाला रिश्ता नहीं है.मै कभी उन्हें अपने यहां आमंत्रित भी नहीं करता .फिर भी किस्मत में लिखा था सो दो मर्तबा मंत्री मेरे घर भी आये,इसलिए मुझे तजुर्बा है मंत्री की संवेदनाओं का .बहरहाल बात मंत्री की है तो मंत्री तक ही सीमित रहना चाहिए ..
समाज में आज भी जैसे कृष्ण का महत्व है वैसे ही मंत्री का भी है. यदि आपके यहां शादी-विवाह या फेरे में कोई मंत्री आता-जाता है तो महल्ले में आपकी नाक काटने के बजाय अपने आप ऊंची हो जाती है .स्थानीय प्रशासन और पुलिस वाले भी आपको जान लेते हैं कि-आप भी कुछ हैं ‘.वरना सिर्फ आप जानते हैं कि आप क्या हैं ?अपने आपकी स्थापना के लिए आपके घर किसी मंत्री का एक न एक बार पदार्पण आवश्यक है .हमारे एक मित्र का बेटा तो इस मामले में अब दक्ष हो चुका है. शहर में कोई भी मंत्री आये,उसे अपने घर ले जाकर ही मानता है. जब तक मंत्री के साथ उसका फोटो न खिंच जाये तब तक उसे नींद नहीं आती. फोटो में सेंटर टेबिल पर भुने हुए सूखे मेवों की प्लेटें जरूर दिखाई जाती हैं .
भक्तों और मंत्रियों के इस रिश्ते की खासियत ये है कि इसमें छोटे-बड़े का विचार नहीं किया जाता.विचारणीय होता है दलीय रिश्ता .मंत्री के घर आने के बाद उनके आने की फोटो स्थानीय अखबारों में छपवाना एक दूसरा बड़ा ‘टास्क’ होता है. अक्लमंद भक्त इस मौके पर सरकारी फोटोग्राफर को घेरकर रखते हैं और जो इस बारे में नहीं जानते वे शहर के कुछ अखबारों के रिपोर्टरों से अपनी दोस्ती या सम्पर्क बनाकर चलते हैं. पता नहीं कब,कौन मंत्री उनके घर आ धमके ?मंत्रियों के इस मानवीय और संवेदनशील व्यवहार को देखकर विरोधी भी हतोत्साहित होते हैं.वे मंत्री पर संवेदनहीनता के आरोप आसानी से नहीं लगा सकते .उन्हें ऐसा करते वक्त सौ बार सोचना पड़ता है .
लगातार संकीर्ण और हृदयहीन हो रही सियासत के लिए मंत्रियों और भक्तों के बीच का ये प्रयोग उत्साहजनक है .इससे राजनीति में सुचिता और संवेदनशीलता का संचार होता है .यदि देश की सियासत में संवेदनशीलता होगी तो नौकरशाही में भी संवेदनशीलता बढ़ेगी ,सिस्टम में भी इसकी झलक दिखाई देगी .लोकतंत्र भी इसी से मजबूत होगा .इस समय हमें यानि देश को एक मजबूत और संवेदनशील लोकतंत्र की जरूरत है .हम सब जन संख्या नियंत्रण तो कर ही लेंगे ,पहले अपने मंत्रियों को तो संवेदनशील बना लें .कलिकाल में जिन भक्तों के घर जाकर मंत्रियों ने कृपा बरसाई उनके बारे में जानना है तो फुर्सत से मिलिए .अभी तो मंत्री चलीसा का पाठ कीजिये,मंत्री जी की आरती गाइये .जयकारे लगाइये .