राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
इनकम टेक्स और इंफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट (आईटी-ईडी) के भास्कर ग्रुप पर छापे पूरे देश में चर्चा का विषय बने हुए हैं। कड़वा सच लिखने वाले मीडिया हाउस पर सरकार के छापे कोई नई बात नही है। पहले भी ऐसा हुआ है। 1987 में इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप पर राजीव गांधी की सरकार ने भी छापे मारे थे। तब एक्सप्रेस ग्रुप के मुखिया रामनाथ गोयनका ने जो कुछ कहा था उसका लब्बोलुआब यह था कि सरकार के छापों से उनके प्रकाशन बंद होंगे और न ही सच लिखना छूटेगा। उनके एक्सप्रेस टॉवर से इतना किराया तो आ ही जाता है कि अखबारों के संस्करण छपते रहेंगे। उनके पास उत्कृष्ट कोटि के पत्रकारों व प्रभाष जोशी और अरुण शौरी सरीखे सम्पादकों की टीम थी जिसने खबरों की धार को बोथरा नही होने दिया। इतिहास में दर्ज है टीम गोयनका हीरो बनी। दैनिक भास्कर ग्रुप के अग्रवाल बन्धुओं पर भी अब यही जिम्मेदारी आन पड़ी है। जीते तो पत्रकारिता को फिर मान मिलेगा।
भास्कर पर छापे के बाद सच्ची पत्रकारिता करने का अवसर भी है। आईटी ने बीच कार्रवाई में बताया कि करीब एक सौ कंपनी के साथ 600 करोड़ रुपये की कर चोरी की है। सच भास्कर समूह से ज्यादा कौन जानता है ? लिहाजा भास्कर देश को बताए कि उसके कितने और कैसे कैसे धंधे हैं और वह कितनी कंपनियों के जरिए कितने हजार करोड़ रुपये का कारोबार करता है। बताए कि खबरें अलग हैं और कारोबार अलग। रामनाथ गोयनका की भांति खबरों में तीखा और सच्चापन कम न हो। पाठकगण इतने गुणी और सुधी हैं कि बिटवीन द लाइन समझते हैं। अभी जो मीडिया हाउस पत्रकारिता को मुज़रेखाने खाने तक लाने का पाप कर चुके हैं उनके सामने छापों ने प्रायश्चित करने का सुनहरा अवसर ला दिया है। लेकिन इसके लिए बहुत बड़ा जिगरा चाहिए। एक्सप्रेस ग्रुप की तरह न सही भास्कर देश का बड़ा मीडिया हाउस है और इन छापों ने उसे खुद को सही साबित करने का मौका दिया है।
25 सितम्बर 2009 की बात है। भोपाल के भारत भवन में एक कार्यक्रम था जिसमें भाजपा नेता सुषमा स्वराज मुख्य अतिथि थीं। पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। ये दोनों नेता दिवंगत हो गए हैं। लेकिन विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वास सारंग भी थे जो वर्तमान में मप्र के चिकित्सा शिक्षा मंत्री भी हैं। इस कार्यक्रम में मेरा सम्मान किया गया था। उन दिनों मैं भोपाल से प्रकाशित पीपुल्स समाचार में संपादक हुआ करता था। आयोजक राजेश भदौरिया ने मुझे विचार प्रकट करने के लिए आमंत्रित किया। तब मैंने पेड न्यूज और उससे पत्रकारिता में आने वाली गिरावट का उल्लेख कर अपनी पीड़ा का उल्लेख किया। इस पर सुषमा जी ने अपने भाषण में कहा कि इस विषय को वे छूना नही चाहती थी लेकिन इस मुद्दे को छेड़ा है तो मैं बता दूं किस तरह विदिशा संसदीय चुनाव में उनसे भोपाल से प्रकाशित देश के सबसे बड़े अखबार ने चुनाव में भारी भरकम विज्ञापन व धन आदि की मांग की थी। अखबारों के इस तरह के रवैये के बाद लोकसभा में जब समाचार पत्रों को रियायतों सम्बन्धी बिल का उन्होंने यह कहते हुए विरोध किया था कि मीडिया हाउस जिस तरह से धन अर्जित करते हैं उचित नही है।
पीपुल्स ग्रुप पर भी आईटी की कार्रवाई हुई थी और तब संपादक के नाते हमने पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए पूरा सच छापा था। इस सम्बन्ध में समूह सम्पादक महेश श्रीवास्तव और संपादक ओमप्रकाश सिंह ने उच्च मानदण्डों को ध्यान में रखते हुए सहमति दी थी। इसी तरह पीपुल्स के मॉल में भी निर्माण के दौरान छत गिरने का हादसा हुआ था। तब भी हमने प्रमुखता से पीपुल्स समाचार में इसका प्रकाशन किया। इन घटनाओं का उल्लेख अपनी पीठ ठोकने के लिए नही कर रहे हैं। बल्कि यह बताने के लिए कि भास्कर सही खबर छाप कर खुद को साबित कर सकता है कि वह धंधे और मीडिया के कॉकटेल से बाहर है। इस पूरे मामले में देश भर लोग सरकार और भास्कर के बीच बंट गए है। जो सरकार की कार्रवाई के पक्ष में हैं उन्हें भाजपाई और खिलाफ हैं उन्हें भास्कर समर्थक बताया जा रहा है। एक नेता तो कहते हैं कि- पेपर ने छापा तो सही सरकार का छापा तो गलत। अनेक लोग हैं जो मीडिया हाउस के कच्चे पक्के चिट्टे ला रहे हैं। सरकारी जमीनों पर कब्जे के तो कुछ सरकार से बेजा लाभ लेने के। कुल मिलाकर ये अवसर है मीडिया के लिए खुद को पाक साफ साबित करने का। नही तो लोग यही कहेंगे कि मंदिर से मुज़रेखाने और फिर रेडलाइट एरिया तक सफर दूर नही है… हम तो मीडिया से यही कहेंगे कि-
तुमने जमीर बेच कर अच्छा नही किया,
अब हर मकाम पर सौदा करेंगे लोग…
ये विचार है जो लेखक के व्यक्तिगत है