राकेश अचल
मुझे हंसी आती है लेकिन बहुत कम आती है.क्योंकि मै अपने रहनुमाओं की हरकतों पर हँसते-हँसते आजिज आ चुका हूँ .कभी किसी के इतिहास ज्ञान की वजह से हंसना पड़ता है तो कभी किसी के सामान्य ज्ञान की वजह से.कभी किसी की पोशाक हंसने पर मजबूर कर देती है तो कभी किसी का भाषा ज्ञान ..लेकिन आज फिर हंसी आ ही गयी क्योंकि देश के गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने कहा कि- ‘ वे जब भी यूपी आते हैं उन्हें लगता है जैसे वे अपने घर आये हैं .’
गोया कि मै उत्तर प्रदेश में जन्मा हूँ,मेरी गर्भनाल वहां है ,इसलिए जब कोई उत्तर प्रदेश के बारे में कुछ कहता है तो मेरे कान खड़े हो जाते हैं. मै रोमांचित,पुलकित,भावुक हो जाता हूँ .अमित शाह की बात सुनकर भी मेरे साथ ऐसी ही स्वाभाविक प्रतिक्रिया होना चाहिए थी ,हुई भी लेकिन उनकी बात सुनकर मेरे सिर्फ कान खड़े हुए .कान खड़े होने के अर्थ आप सब जानते हैं. कान सिर्फ आदमी के ही नहीं बल्कि हर उस प्राणी के खड़े हो सकते हैं जो ध्वनियों के प्रति संवेदनशील है .
हमारे ननिहाल में जो अश्व था उसके कण भी खड़े हो जाते थे.हमने उसकी प्रजाति का तो पता नहीं किन्तु सब उसे कलमी घोड़ा कहते थे .वो दूर से ही हमारे नाना जी की पदचाप सुनकर अपने कान हिलाने लगता था .पशुओं में अश्व के अलावा कुत्ते,बिल्ली,गधे ,खरगोश,गाय,बैल,भैंस यहां तक कि चूहे तक के खड़े हो जाते हैं .मुमकिन है कि मेरा ज्ञान भी कानों के खड़े होने के मामले में सीमित हो लेकिन बात कानों के खड़े होने की है .कान खड़े होने का मतलब है कि आपकी आत्मा आपको सचेत कर रही होती है कि कुछ न कुछ होनी,अनहोनी होने वाली है,इसलिए सावधान हो जाये .
यूपी के बारे में शाह साहब की बात सुनकर यूपी के तमाम लोगों को सावधान हो जाना चाहिए,क्योंकि शाह साहब जो कुछ कहते हैं उसके दूरगामी परिणाम होते हैं,अर्थ तो अनेक होते ही हैं .वे पिछले दिनों असम गए थे,वहां से उनके वापस लौटने के दो दिन बाअद ही असम और मिजोरम ऐसे भीड़ गए ,जैसे जन्म-जन्म के दुश्मन हों,जबकि वे रिश्ते में बहनों की तरह रहते थे .शाह साहब इससे पहले न जाने कितनी बार बंगाल गए.वहां उन्होंने न जाने किस-किसके घर में भांति-भांति का खाना खाया लेकिन नतीजा क्या हुआ ?आप सब जानते ही हैं .बंगाल को वे अपनी टीम के साथ मिलकर सोनार बांग्ला बनाना चाहते थे ,नहीं बना पाए तो युद्ध का मैदान बनाकर चले आये.बंगाल में राजनितिक कार्यकर्ता ही नहीं राज्य पाल और मुख्यमंत्री तक आमने-सामने हैं
हमारा यूपी बहुत बड़ा सूबा है. यहां बड़े-बड़े लोग पैदा होते आये हैं. ज्यादातर प्रधानमंत्री भी हमारे यूपी से ही बनते आये हैं .दरअसल यूपी में सब कुछ बड़ा ही बड़ा होता है. यहां की आबादी बड़ी,यहां के क्रांतिकारी बड़े,यहां की नदियाँ बढ़ीं,यहाँ की समस्याएं बड़ी और यहां तक कि यहां के भगवान भी बड़े .यहां आकर हर कोई बड़ा होना चाहता है. हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी गुजरात में रहकर भी देश के प्रधानमंत्री हो सकते थे लेकिन उन्हें भरोसा नहीं था कि पांच साल चल भी पाएंगे या नहीं ? सो यूपी से आकर लोकसभा का चुनाव लड़ा और लगातार लड़ रहे हैं .और गजब देखिये कि लगातार प्रधानमंत्री भी बने हुए हैं .
यूपी वैसे हर मामले में बड़ा है लेकिन उसके इस बड़प्पन की वजह से अब उसे बड़े-बड़े लोग खाला का घर समझने लगे हैं,जबकि ऐसा है नहीं. यूपी उन 22 करोड़ लोगों को भी कम पड़ता है जो यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहते हैं,ऊपर से अब गुजरात वालों को ये सूबा भने लगा है.खुदा खैर करे .खैर इसलिए करे क्योंकि यहां अगले साल ही विधानसभा के चुनाव हैं .और चुनावों से पहले जब कोई यूपी को अपना घर जैसा बताने लगे तो खतरा और बढ़ जाता है .
हमारी संस्कृति हमें वसुधैव कुटुंबकम का सूत्र देती है .हम इसे मानते भी हैं इसलिए हमरे लिए सब भारतवासी हैं. कोई गुजराती,पंजाबी,मराठी या और कुछ नहीं है ,लेकिन जब कोई चुनाव के समय दादुर मुद्रा में टर्राता है तो डर लगता है.इंसान अपने तजुर्बों से सीखता है. हम भी आखिर इंसान ही हैं.हमारा भी यही तजुर्बा है कि जहा-जहां संतों के पेअर पड़ते हैं,वहां-वहां बंटाधार होना तय होता है .ये बंटाधार कभी राजनीतिक दल का हो सकता है ,समाज का हो सकता है ,सियासत का हो सकता है ,आम जनता का हो सकता है .
अब जैसे कान खड़े होना एक क्रिया और क्रिया विशेषण है वैसे ही बंटाधार होना भी एक क्रिया और क्रिया विशेषण है.और भी कुछ हो सकता है .उमा बहन जी ने हमारे सूबे मध्यप्रदेश के एक निवर्तमान मुख्यमंत्री का नाम ही मिस्टर बंटाधार रख दिया था .जनता ने उमा जी की बात मान भी ली और उन्हें राजा से रैंक बना दिया था.बेचारे एक बार रैंक बने तो आजतक राजा नहीं बन पाए.मौक़ा आया भी तो कमलनाथ राजा बन गए ,लेकिन उनका बंटा भी एक महाराजा ने पलट दिया .बंटा उत्तर भारत में एक छोटा सा पात्र होता है.बनते में अक्सर घी रखा जाता है .और जब इस बनते में रखे घी की धार बनाकर दाल में डाली जाती है तो बंटा खाली हो जाता है .इसीलिए बंटाधार का अर्थ ही खाली होना,निबटाना,समाप्त होना हो गया .
बहरहाल हम अपने यूपी और शाह साहब की बात कर रहे थे. वे हमारी यूपी में आकर घर जैसा अनुभव करते हैं,ये खुशी कि बात है साथ ही खतरे की घंटी भी है,इसलिए सबको सावधान रहना चाहिए.सबको यानि सबको.मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी .क्योंकि शाह साहब साह साहब हैं .जिसकी तारीफ़ कर दें उसी का बंटाधार करा सकते हैं .हम नहीं चाहते कि हमारा भीड़भाड़ वाला लेकिन खूबसूरत ,समस्याग्रस्त यूपी असम,मिजोरम या बंगाल जैसा कष्ट भोगे .इसलिए बार-बार कहते हैं कि -‘ जागते रहो !चुनाव के समय वैसे भी सबको जागना चाहिए,अन्यथा गुड़ का गोबर होना तय है .
एक बात और बता दें कि यूपी वालों को जगाने के लिए नेहरू जी की प्रपौत्री श्रीमत्रि प्रियंका वाड्रा पिछले कुछ वर्षों से काम कर रहीं हैं.अखिलेश बाबू ने भी अपनी साइकल के पंचर जुड़वा लिए हैं. बहन मायावती ने भी अपने कुंजर के मस्तक पर ब्राम्हणों वाला त्रिपुण्ड लगा दिया है .लेकिन ये सब यूपी वाले हैं शाह साहब की तरह साबरमती के संत नहीं है .आजकल वैसे भी संतों के ढिंग बैठने से लोक-लाज खोने का खतरा बढ़ गया है .