इंडियन फ़िल्म फेस्टिवल ओरछा, बुंदेली धरती पर अनोखा प्रयास।

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कंचन किशोर
राजा बुंदेला की मंशा है, जो समाज से मिला उसे उसी तरह से वापस करना है, कुछ कुछ कबीर दास जी की उक्ति ” ज्यो की त्यों धर दीन्ही चदरिया” जैसा समझ मे आता है। अब बात करते है मई के महीने की तपती धूप में टीकमगढ़ जिले के पावन धाम ओरछा में बेतवा के तट पर मुम्बई से बड़े फिल्मकारों के साथ स्थानीय फिल्मी पौध को इस विशेष कला के गुरों से परिचित कराने की। आज नही तो कल हसरत यह कि मुम्बइया फ़िल्म उधोग की तरह बुंदेली फ़िल्म उद्योग भी पुष्पित और पल्लवित रूप में खड़ा हो, मज़बूती के साथ दुनिया के सामने सिर उठा के कहे कि जी हाँ हम है बुंदेली,,,,देश का दिल,,देश का ह्रदय,,जहाँ रहते है वीर बुंदेले,जहाँ की धरती न केवल आध्यात्मिक, पौराणिक है, बल्कि जहाँ के कण कण में शैव, शाक्त और वैष्णव परम्पराओ के विभिन्न देव समाहित हो, विश्व बंधुत्व का उद्घोष करते है। यहाँ की धरती में हर कोस में पानी और पाँच कोस में वाणी बदलने की बात भी हमारे अनूठे प्रेम को बताते है।

कहावत है दिल्ली है दिल वालो की,मुम्बई है पैसे वालो की,पर श्री बुंदेला ने इस कहावत को भी पलट कर रख दिया है।उन्होंने अपने इस प्रकार के चौथे प्रयास में यह दिखा दिया है कि अब छोटे गाँव या छोटे शहर की प्रतिभाओं को मुंबई जाकर संघर्ष करने के लिए भटकने की जरूरत नही बल्कि उन्हें यही पर फ़िल्म उद्योग से सम्बंधित बारीकियां मुफ्त में सीखने को मिलेगी और फिर वे वहाँ जाएं  और अपना काम स्थापित करें, जिससे उनको वहाँ पर आसानी रहे। वरिष्ठ फिल्मकार रजित कपूर हो (राज़ी फेम्) या फिर केतन आनंद, यह बेवाकी से स्वीकारते हैं कि बुंदेलखंड के हर कदम पर एक नई लोकेशन अलग तरह की कहानी के साथ मौजूद है,,,,जरूरत केवल मुम्बइया फिल्मकारों की यहाँ पर आकर उसे सेल्युलाईट के लिए तैयार करने की है। उन्ही के शब्दों में कहे तो बुंदेली फ़िल्म संसार का शुभारंभ हो चुका है,यह धीरे धीरे खड़ा होगा,,लड़खडायेगा,उठेगा,गिरेगा और फिर चल पड़ेगा कभी न रुकने के लिए,विश्व भर में अपनी कीर्ति पताका फहराने के लिए,निश्चित तौर पर राजा बुंदेला के यह प्रयास उन्हें बुंदेली फ़िल्म उद्योग के जनक के रूप में  परिभाषित करेगे।।।

श्री बुंदेला की धर्म पत्नी सुस्मिता मुखर्जी बड़ी संजीदगी से कवि दुष्यंत की कविता “एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो” की तर्ज पर कहती है हमारा काम चल रहा है, फ़िल्म की भाषा मे कहे तो द शो मस्ट गो आन,,,यानि तीर निकल चुका है।देश के किसी भी फिल्मकार के लिए ओरछा में रुद्राणी कला केंद्र के दरवाजे खुले है।फ़िल्म निर्माण से सम्बंधित बेसिक जरूरत के हिसाब से इसे डिजायन किया गया है। आने वाले कल में बुन्देलखण्ड के हर जिले के साथ हर बड़े शहर में इस फेस्टिवल को ले जाने की इच्छा है।

दिल्ली विश्वविधालय के प्रो अभय कहते है कि वास्तव में बुंदेली फ़िल्म उधोग की सम्भावनाओ के द्वार ही नही अपितु समूचे बुन्देलखण्ड में एक बड़े उधोग के प्रवेश करने की आहट है।वह कहते है बुन्देखण्ड डिफेंस कॉरिडॉर और बुन्देखण्ड एक्सप्रेस वे के साथ वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट, सरकार के यहाँ के उद्योग जगत की सम्भावनाओ की बानगी दिखाते हैं,,पर बुंदेली फ़िल्म उद्योग गेम चेंजर की भूमिका में होगा। शासन और प्रशासन ने साथ दिया तो बुन्देखण्ड के हर जिले में इस उद्योग को खड़ा करने के लिए कच्चा माल हर कदम पर मौजूद है,उसे संयोजित कर क्षेत्र से न केवल बड़े स्तर पर बेरोजगारी दूर की जा सकती है,बल्कि इस इलाके को विश्व स्तर पर ठीक से खड़ा कर पर्यटन उद्योग को बहुत आगे ले जाया जा सकता है।

खजुराहो अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सव के सफल 3 वर्ष के पश्चात ओरछा में ऐसे समारोह की यह एक सुखद शुरुआत है।  पश्चिम से आई हवा भी शुभ संकेत दे रही है।