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पन्ना जिले में तैनात वन रक्षक की एक्सीडेंट में मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन ने शर्मसार करने वाली हरकत की। अस्पताल ने परिवार से 90 हजार रुपए मांगे। परिवार ने असमर्थता जताई तो प्रबंधन ने शव को कमरे में कैद कर लिया और साफ कह दिया कि पैसे देने पर ही शव देंगे। परिवार ने प्रशासन से शिकायत की तो अफसरों ने पहुंचकर शव को परिवार के सुपुर्द कराया।
पन्ना जिले में रहने वाले डीलन सिंह (50) वन विभाग में वन रक्षक थे। पिछले दिनों एक्सीडेंट में वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे। पन्ना से रेफर होने पर परिजन ने उन्हें जबलपुर के मुखर्जी हॉस्पिटल में भर्ती कराया। यहां हॉस्पिटल ने 5 लाख रुपए एडवांस जमा कराकर इलाज शुरू किया। बुधवार देर रात इलाज के दौरान वन रक्षक डीलन सिंह की मौत हो गई। अस्पताल प्रबंधन ने उनके बेटे विकास से 90 हजार रुपए और जमा करने के लिए बोला। परिवार पहले ही सारी जमा पूंजी अस्पताल में जमा कर चुका था।
परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्य के खोने के गम से दुखी बेटे विकास ने पैसे जमा करने में असमर्थता जताई तो प्रबंधन ने गुरुवार तड़के 3 बजे कमरे में शव को बंद करके बाहर से ताला लगा दिया। इतना ही नहीं, परिवार से सख्त लहजे में कहा कि 90 हजार रुपए की व्यवस्था करके जमा करो, इसके बाद ही लाश ले जाने देंगे। अस्पताल वालों की इस हरकत से परेशान विकास ने SDM ऋषभ जैन को फोन करके आपबीती सुनाई। अस्पताल प्रबंधन की इस असंवेदनशीलता पर SDM ने तुरंत तहसीलदार संदीप जायसवाल और डॉ. विभोर हजारे को हॉस्पिटल भेजा।
गुरुवार शाम 6.00 बजे दोनों अधिकारी अस्पताल पहुंचे और अस्पताल प्रबंधन से बात की। इसके बाद शव को अस्पताल ने परिजन को सौंपा। शव को मेडिकल कॉलेज भिजवाया गया। परिजन के आग्रह पर अधिकारियों ने डीन डॉ. प्रदीप कसार से बात की और रात में ही पोस्टमार्टम कराया। इसके बाद परिजन शव लेकर रवाना हुए।
एक्सीडेंटल डेथ का मामला था, इसलिए शव नहीं दे रहे थे: संचालक
मुखर्जी हॉस्पिटल के संचालक डॉक्टर अभिजीत मुखर्जी के मुताबिक वनरक्षक को 26 जुलाई को भर्ती करने परिजन लाए थे। बीच में उसे मेडिकल भी ले गए थे। फिर वापस लाए। मरीज कोमा में चला गया था। उसके ब्रेन की सर्जरी भी की गई थी। वह पूरे महीने लाइफ सपोर्ट पर रहा। बीच में परिजनों को बोला भी गया था कि वे मेडिकल में शिफ्ट कर लें। वहां वेंटीलेटर मिल जाता और परिजनों का खर्चा भी बच जाता। हमारे अस्पताल में ही आउटसोर्स पर संचालित लाइफ केयर यूनिट में उनका इलाज चल रहा था। एक्सीडेंटल डेथ का प्रकरण था। हम शव को परिजनों को नहीं दे सकते थे। पुलिस के आने पर शव दिया गया। पैसों के खातिर बंधक बनाने का परिजनों का आरोप बेबुनियाद है।