शशी कुमार केसवानी
वरिष्ठ पत्रकार
आगामी उपचुनावों से पहले यदि बिजली कटौती की समस्या का निराकरण नहीं हुआ तो यह भाजपा के लिए गले की फांस बन जाएगा। क्योंकि भाजपा सरकार को बिजली के मुद्दे पर अपने ही लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। बिजली कटौती पर उपभोक्ता की शिकायत पर बिजली कर्मचारी का जवाब होता था कि मेंटनेंस हो रहा है, लेकिन लोगों की इसकी सच्चाई खुद भाजपा विधायकों ने बताई। इधर कांग्रेस का आरोप है कि अघोषित बिजली कटौती से बच्चों की पढ़ाई के साथ काम-धंधे भी प्रभावित हो रहे हैं। यदि स्थिति में जल्द सुधार नहीं होता है तो कांग्रेस आंदोलन करेगी। उनका कहना था कि सरकार दावा करती है कि 21 हजार मेगावाट बिजली उपलब्ध है, तो फिर लगातार अघोषित कटौती क्यों हो रही है। मध्यप्रदेश में एक सप्ताह से अघोषित बिजली कटौती हो रही है। इसका सबसे ज्यादा असर फसलों पर पड़ रहा है, क्योंकि अधिकतर जिलों के ग्रामीण इलाकों में 2 से 10 घंटे तक बिजली बंद की जा रही है।
विपक्ष इसे मुद्दा बनाकर सरकार के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की तैयारी में है।
मध्यप्रदेश सरकार हर साल चार हजार करोड़ रूपए से अधिक का भुगतान उन बिजली कंपनियों को कर रही है जिन से दीर्घ अवधि के लिए बिजली क्रय किए जाने के अनुबंध किए गए थे। मध्यप्रदेश के बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाने के बाद भी सरकार इन अनुबंधों को समाप्त नहीं कर पा रही है। कटौती के इस मौसम में इन करारों से भी राज्य को बिजली नहीं मिल पाई है। सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि अनुबंध के अनुसार जिन कंपनियों को अपने कोटे की बिजली नहीं दी है, उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। मध्यप्रदेश देश के उन चुनिंदा राज्यों में है, जो पावर सरप्लस स्टेट के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। पिछले कुछ दिनों से हो रही बिजली कटौती ने लोगों को दिग्विजय सिंह के शासनकाल की याद दिला दी है। सरकार भी मान रही है, बिजली की कमी है। सरकार अतिरिक्त बिजली भी खरीद रही है। इसके बाद भी सत्ताधारी दल भाजपा के विधायक मोर्चा खोले हुए हैं। विधायक नारायण त्रिपाठी ने तो आंदोलन की धमकी भी दी है। कांग्रेस बिजली कटौती के मुद्दे को लगातार उछाल रही है। राज्य में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर चुनाव होना है। वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार सड़क, बिजली और पानी के मुद्दे पर दिग्विजय सिंह सरकार की नाकामियों के कारण बनी थी। वर्ष 2005 में शिवराज सिंह चौहान ने इन तीनों मुद्दों पर प्राथमिकता और तेजी से काम किया। इसका परिणाम यह हुआ कि मध्यप्रदेश बिजली के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गया। अचानक आए बिजली संकट के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपना पूरा ध्यान बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर देना पड़ रहा है। राज्य की आर्थिक स्थिति पहले से ही खस्ता है।
रकार को हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है। अचानक शुरू हुई बिजली की कटौती ने किसानों की समस्या को बढ़ा दिया है। राज्य के अधिकांश हिस्सों में इस बार मानसून बेहद कमजोर रहा है। इस कारण खरीफ सीजन में किसानों को सिंचाई के लिए बिजली की जरूरत है। रबी और खरीफ सीजन में मध्यप्रदेश और पंजाब के बीच बिजली का आदान-प्रदान होता रहता था। रबी में पंजाब को जरूरत पड़ने पर मध्यप्रदेश बिजली देता था। और खरीफ अपने हिस्से की बिजली पंजाब मध्यप्रदेश को दे देता था। मध्यप्रदेश में पिछले कुछ सालों में चावल की खेती का चलन बढ़ गया है। इस कारण खरीफ सीजन में भी बिजली की मांग लगातार बनी रहती है। बारिश न होने से राज्य की जल विद्युत परियोजनाएं भी लगभग बंद पड़ी हुई हैं। उल्लेखनीय है कि सामान्यत: मानसून के दौरान सिंचाई के लिए बिजली की सीमित आवश्यकता ही होती है। इसके चलते इन माहों में विद्युत इकाईयां वार्षिक रखरखाव के लिए बंद की जाती हैं। महाकौशल में बारिश कम होने से नर्मदा का जल स्तर घट गया है। इससे बरगी, गांधी सागर और ओंकारेश्वर बांध पूरे नहीं भर पाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि मंडला से लेकर बरमान तक बारिश नहीं होने के कारण जल विद्युत संयंत्र (हाइडल प्लांट) बंद हो गए हैं। दिग्विजय सिंह ने लिखा है कि बड़ी विडंबना है, वर्षा ऋतु में हाइडल प्रोजेक्ट से पूरी बिजली पैदा होती है, कृषि की मांग नहीं है. मध्यप्रदेश में आवश्यकता से ज्यादा बिजली उत्पादन की क्षमता है फिर कटौती क्यों हो रही है, समझ से परे है बंटाधार कौन? एक अन्य ट्विट में दिग्विजय ने लिखा- बिजली कटौती से हाहाकार-अंधेरा लाई शिवराज सरकार ।