अफसरों को टारगेट कर अपनी रोटी सेंक रहे राजनेता

0
158

शशी कुमार केसवानी

 पिछले कुछ दिनों से मध्यप्रदेश के प्रशासनिक अफसरों पर हर नेता अपने हिसाब से निशाना साध रहा है। जबकि उनका इस राजनीति से दूर तक कोई वास्ता नहीं है। फिर भी हर नेता की अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा बहुत बड़ी होती जा रही है। जिसका कारण है किसी राजनीतिक दल पर निशाना साधने के बजाय प्रशासनिक अफसरों पर निशाना साधना ज्यादा अच्छा होता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती भड़की हुई हैं क्योंकि राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें मध्यप्रदेश से टिकट नहीं दिया और उन्हें दरकिनार कर केंद्रीय राज्यमंत्री अल मुरुगन को उम्मीदवार बना दिया उमा अपनी ही पार्टी से खफा हैं और उन्होंने मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी उमा भारती ने कहा कि यदि मध्यप्रदेश सरकार ने शराब बंदी का एलान नहीं किया तो वह 15 जनवरी से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगी उमा भारती ने फिर एक बार विवाद खड़ा करते हुए नौकरशाही (ब्यूरोक्रेसी) की तथाकथित शक्ति पर सवाल उठाया है उमा भारती ने भोपाल के अपने आवास में ओबीसी कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान नौकरशाही के बारे में जो टिप्पणी की, वह अपमानजनक मानी जाती है. वायरल हो रहे वीडियो में उमा भारती ने कहा था कि नौकरशाही की औकात ही क्या है! वे हमारी चप्पल उठाते हैं और हम उन्हें वेतन देते हैं, पोस्टिंग देते हैं इसलिए वे कुछ भी नहीं हैं यह गलतफहमी है कि नौकरशाह नेताओं को गुमराह करते हैं।  आपको क्या लगता है ब्यूरोक्रेसी नेता को घुमाती है… नहीं-नहीं, अकेले में बात हो जाती है

पहले और फिर ब्यूरोक्रेसी फाइल बनाकर लाती है। यह पूरा किस्सा उमाभारती ने राज्यसभा में जगह नहीं मिलने से अपनी खीज अधिकारियों पर निकाल दी और साथ ही साथ शिवराज सिंह चौहान पर भी सवाल खड़ा कर दिया।  जब उमा भारती मुख्यमंत्री थी जब यहीं अधिकारी थे जिनकी उमाभारती तारीफ करते नहीं थकती थी, लेकिन राजनीति में आस्थाएं बहुत जल्दी बदलती है लेकिन उमाभारती कब क्या कह दे कोई भरोसा नहीं बाद में ंअपनी बात पर अफसोस जता दे वो भी एक सामान्य बात है पर इस बार तो हद यह हो गई कि उन्होंने दिग्विजय सिंह को चिट्ठी लिखकर अपना दर्द दिग्विजय सिंह पर जाहिर किया हालांकि चिट्ठी में उन्होंने अपनी भाषा सुधारने को कहा था और दिग्विजय सिंह को भी सलाह दी थी लेकिन ये भाई-बहनों की चिट्ठी सोशल मीडिया पर खूब चली। वैसे बीच-बीच में अपनी नाराजगी का इजहार शराब बंदी को लेकर भी करती रहती है। शराब बंदी एक ऐसा मुद्दा है जिस पर शिवराज को आसानी से घेरा जा सकता है।  

यह कमजोर नस उमाभारती के हाथ में है जब मौका आता है थोड़ी सी दबा देती है बाकी आगे के लिए छोड़ देती है। ज्ञात हो कि राजनीतिक दृष्टि से अगर बात 2005 से पहले के वर्षों की की जाए तो भारतीय जनता पार्टी में एक ऐसी नेता रहीं जिनकी ताकत और कद अटल बिहारी वाजपयी तथा लालकृष्ण आडवाणी के बाद तीसरे स्थान पर रहता था. यहां बात हो रही है भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती की. आज भले ही बीजेपी के कार्यकर्ता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का जाप कर रहे हों लेकिन एक दौर था जब उमा भारती को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर शख्स पहचानता था किंतु अपने भड़काऊ भाषण और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ विवादित बयान देने की वजह से उनका राजनीतिक ग्राफ नीचे गिरने लगा. बीजेपी से उन्हें दो बार निलंबन का सामना करना पड़ा.

कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के साथ संबंधों को लेकर भी पार्टी में उनकी छवि धूमिल हो गई थी. 2005 के निलंबन से लगभग छ्ह साल के राजनीतिक वनवास बाद 2011 में एक बार फिर उमा भारती की भाजपा में वापसी हुई. इसका श्रेय तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को जाता है. उन्होंने ही उमा की घर वापसी की घोषणा की. गडकरी को छोड़कर उनकी वापसी को लेकर किसी के भी चेहरे पर उत्साह नजर नहीं आया. वैसे उनकी वापसी को लेकर शुरू से ही पार्टी में विरोधाभास की स्थिति विद्यमान थी. विरोध करने वालों में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे बड़े नेता रहे जिनसे कभी भी उनकी नहीं बनी. उमा भी उनके खिलाफ लगातार बोलती रही हैं.


 लेकिन आश्चर्य तब होता है जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अपने प्रशासनिक अफसरों पर सवाल उठाते है हाल ही में दिए बयान में उन्होंने वल्लभ भवन में पदस्थ अफसरों के लिए कहा अगर सेक्रेटिएट (मंत्रालय) में बैठ जाओ तो वहां तो रंगीन पिक्चर खींच दी जाती है। जय हो महाराज. सब दूर आनंद ही आनंद है। पर फील्ड में जाओ तो जनता से मिलकर पता चलता है कि दरअसल कहां तक आनन्द पहुंचा। उन्होंने मंच पर बैठे अधिकारी से कहा कि मैं संजय शुक्ला के बारे में नही बोल रहा। उन्होंने यह भी कहा कि नीचे भी काम मुख्यमंत्री की आंख का इशारा देखकर होता है सीएम जिस पर फोकस कर ले बस वहीं विकास तेजी से होता है बल्लभ भवन में बैठकर कुछ नहीं होगा। जाहिर है सरकार योजनाएं तो बनाती है लेकिन सरकारी तंत्र उसका लाभ जनता तक पूरा पूरा नहीं पहुंचने देता।  उन्होंने यह भी कहा कि राजनेताओं को गुमान हो जाता है कि सब कुछ वही हैं उनसे ज्यादा कोई बुद्धिमान नहीं है मैं इसे नहीं मानता हूं वैसे शिवराज सिंह चौहान कुछ अधिकारियों से सदैव ही खुश रहते है पर कुछ अधिकारियों से नाराज रहते है, जिसका कारण है कभी उन्हें टांगने का बोल देते है तो कभी कुछ ओर बोल देते है। असल में शिवराज जी अपना दर्द दिल के अंदर छिपा नहीं पाते है, जिसका कारण उनका दर्द छलककर बाहर आ जाता है वरना कौन मुख्यमंत्री अपने ही अफसरों के लिए इस तरह के बयान देगा। जय हो…