ओंकारेश्वर में राष्ट्रीय परिसंवाद, सेहत, शांति, सरकार और संविधान

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पिछले दो बरस बड़ी बेचैनी भरे बीते। कोरोना ने स्वास्थ्य,सामाजिक, आर्थिक,कारोबारी और मानसिक स्तर पर करारी चोट पहुंचाई।हमने बहुत नुकसान उठाया।खतरा अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। कोविड की दूसरी भयावह लहर के झटके से उबरे नहीं हैं।आने वाले दिनों के संकेत भी चेतावनी से भरे हैं।ऐसे में बीच के तनिक राहत भरे अंतराल का लाभ लेते हुए जानी मानी स्वयंसेवी संस्था विकास संवाद ने अपने सालाना राष्ट्रीय संवाद का चौदहवां जलसा कर डाला। यह जलसा देश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और आस्था के केंद्र ओंकारेश्वर में हुआ । तीन दिन के इस आयोजन का मुख्य मक़सद अतीत के विकराल दौर से सबक लेते हुए आने वाले(?)खतरनाक दौर का मुक़ाबला करने के लिए अपने आप को तैयार करना है ।

चूंकि इस श्रृंखला के दो जलसे लॉक डाउन तथा आपसी दूरी के चलते नहीं हो सके थे,इसलिए विकास संवाद परिवार भी उत्साहित था कि चुनिंदा विशेषज्ञों से कुछ सार्थक संवाद के ज़रिए कोई ठोस निष्कर्ष निकाला जा सके,जो आने वाले दिनों के लिए एक नई ज़मीन खोजे।यह जमीन काफी हद तक मिली भी ।अनुभवों,तथ्यों,आंकड़ों और तंत्र की नाकामियों के अनेक प्रसंग सामने आए । यह भी सभी ने महसूस किया कि यदि अभी कोविड की लहरें आती रहीं तो चरमराया हुआ हमारा सामाजिक ढांचा बिखर जाएगा । हम स्थाई तौर पर सदियों पहले के असामाजिक दौर में दाख़िल हो जाएंगे । बचाव के प्रयास ज़रूरी हैं । लेकिन करे कौन ? सरकारी तंत्र के बस का नहीं ।गैर सरकारी स्तर पर एक सीमा तक ही कुछ काम हो सकेगा । फिर उसके आगे क्या ?

इस विराट शून्य के साथ ही कुछ आशा,कुछ निराशा और अवसाद की अनेक कहानियों के बीच यह जलसा संपन्न हुआ । इस सारी कवायद के सूत्रधार सचिन जैन और सह सूत्रधार राकेश मालवीय और उनकी टीम ने यकीनन कुछ तारे टिमटिमाते हुए देखे होंगे।हमें आगे ले जाने का रास्ता भी हमें उनकी रौशनी से मिलेगा ।
इस दो दिनी मंथन में किसने क्या कहा,यह अधिक मायने नहीं रखता अलबत्ता जिन बिंदुओं को छुआ गया, उनका ज़िक्र ज़्यादा महत्वपूर्ण है । केंद्र बिंदु था स्वास्थ्य के लिए शांति और शांति के लिए स्वास्थ्य ।इसके इर्द गिर्द उपविषयों में सेहत पर गांधी जी का नज़रिया,सामाजिक खुशहाली और उत्तम सेहत का रिश्ता,कोरोना का मानसिक असर और आने वाले दिनों के लिए समाज और व्यवस्था के लिए चेतावनी शामिल थे ।यह मसला भी लोगों को परेशान करता रहा कि भारतीय संविधान में एक एक नागरिक का स्वास्थ्य राज्य याने सरकार की ज़िम्मेदारी मानी गई है । कोरोना काल में सरकार यह ज़िम्मेदारी निभाने में सफल नहीं मानी जा सकती ।

जिन लोगों ने इस मानसिक मंथन में हिस्सा लिया,उनमें से मैं भी एक था ।मेरे अलावा अनेक प्रदेशों से पत्रकार, बुद्धिजीवी,डॉक्टर,सामाजिक कार्यकर्ता,गांधीवादी विचारक और पत्रकारिता के छात्र शामिल हुए।इनमें वरिष्ठ गांधीवादी पत्रकार अरविंद मोहन,देश के जाने माने मनोचिकित्सक डॉक्टर हरीश भल्ला,हिंदुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रहे चंद्रकांत नायडू,कर्मवीर के प्रधान संपादक डॉक्टर राकेश पाठक,वरिष्ठ पत्रकार और संपादक प्रकाश पुरोहित, वरिष्ठ पत्रकार और वेब माध्यमों पर देश को पहला शोध देने वाले डॉक्टर प्रकाश हिंदुस्तानी,यायावर दार्शनिक सोपान,वरिष्ठ पत्रकार और माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी,न्यूज इंडिया के मैनेजिंग एडिटर पशुपति शर्मा,नेहरू पर अपनी पुस्तक से देश भर में चर्चित वरिष्ठ पत्रकार पीयुष बवेले,बीबीसी से संबद्ध रहे वरिष्ठ पत्रकार निधीश त्यागी, लेखक विचारक तथा छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के पहले मुखिया ईश्वर सिंह दोस्त,आईटीएम विवि के प्रोफेसर जयंत तोमर,स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका सीटू तिवारी,डॉक्टर अजय सोडानी,पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता संदीप नाइक,डॉक्टर ए के अरुण और अनेक राज्यों से आए मुद्दों की समझ रखने वाले प्रतिनिधियों ने शिरकत की।तीन दिन तक चलने वाले तमाम सत्रों का संचालन सदाबहार गांधीवादी चिन्मय मिश्र ने किया । इस मौके पर कुछ मित्रों को मैंने अपनी नई किताब शब्द सितारे भेंट की ।उसके बारे में अलग से लिखूंगा । जलसे के कुछ चित्र आप यहां देख सकते हैं ।