राकेश अचल
देशव्यापी विजय अभियान पर सात साल पहले निकली भाजपा को अब चुनावों से डर लगने लगा है.उसने भारत विजय का सपना छोड़ा तो नहीं है किन्तु अब चुनावों से कन्नी काटना शुरू कर दिया है. मध्यप्रदेश में पंचायत चुनावों को न करने का निर्णय कर भाजपा ने अपने भय को अब सार्वजनिक कर दिया है .मध्य्प्रदेश में भाजपा की कलमिया सरकार चल रही है,कलमिया अर्थात जनमत की नहीं बल्कि दल-बदल की सरकार ,जो फिलहाल पंचायत चुनावों का सामना करने की स्थिति में नहीं है .
दरअसल चुनाव टालने की बात उत्तर प्रदेश में चल रही थी. उत्तर प्रदेश की बड़ी अदालत तक ने सरकार से राज्य में विधानसभा चुनाव टालने का आग्रह किया था .निर्देश देने वाली न्यायिक संस्था जब आग्रह करने लगे तो आप अंदाजा लगा सकते हैं की डर कहँ-कहाँ तक है .उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिसकते जनाधार को देखते हुए ये अटकलें लगातार तेज हो रहीं हैं की भाजपा येन -केन विधानसभा चुनावों को टालना चाहती है और इसके लिए बहाने खोज रही है. उत्तर प्रदेश में विभिन्न एजेंसियों के चुनावी सर्वेक्षणों ने भाजपा नेतृत्व को सकते में डाल दिया है .
उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव भले सत्तारूढ़ भाजपा लड़ रही है लेकिन चुनावी रथ पर सवार खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं. मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी रथ के पीछे दौड़ते नजर आ रहे हैं .चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश में एक दर्जन से अधिक रैलियां कर चुके हैं.उत्तर प्रदेश पर उनकी कृपा पूरी तररह बरस रही है ,बावजूद ये आशंकाएं बनी हुई हैं कि भाजपा विधानसभा चुनाव टालना चाहती है .अटकलें लगाईं जा रही हैं की उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में भी भाजपा विधानसभा के चुनाव राष्ट्रपति शासन का इस्तेमाल कर करना चाहती है .
बहरहाल इससे पहले मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव करने के लिए उतावली भाजपा सरकार ने अचानक पंचायत चुनाव न करने की घोषणा कर दी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले महीने पंचायत चुनावों के लिए इतने उतावले थे की एक अध्यादेश तक ले आये थे. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जब मध्यप्रदेश सरकार आरक्षण नियमों की अनदेखी कर चुनाव करने का आरोप लगाया था तो उनकी खिल्ली उड़ाई गयी थी .बाद में जब मामला अदालत पहुंचा तो भाजपा सरकार के हाथों के तोते उड़ गए. सरकार ने पहले चुनाव न टालने का फैसला किया,कहा -चुनाव तो होंगे लेकिन मतगणना नहीं होगी लेकिन बाद में सरकार इससे भी पीछे हट गयी और अंतत: सरकार ने आनन-फानन में राज्यपाल को पूर्व में जारी अध्यादेश रद्द करने का आग्रह कर दिया .
मध्यप्रदेश की सरकार ने सोचा था कि इस तरह चुनाव टालकर सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी ,लेकिन हुआ उलटा .राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार की बात नहीं मानी और कहा कि इस मामले में आयोग अदालत की बात मानेगा .गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में पंचायत चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है .और ऐसी व्यवस्था है कि यदि एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाये तो उसे रोका नहीं जा सकता .अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भागे-भागे दिल्ली पहुँच गए हैं ताकि देश की सबसे बड़ी अदालत में मामले की पैरवी सही ढंग से करा सकें .
आप प्रश्न कर सकते हैं कि पहले पंचायत चुनाव करने को उतावली राज्य सरकार अचानक चुनाव टालने पर क्यों उत्तर आयी ? क्या सचमुच सरकार ने पहले पंचायत चुनाव करने में आरक्षण नियमों की अनदेखी की थी या फिर उसे अचानक हार का भय सताने लगा ? जबाब सरकार के फैसले में ही छिपा है .सरकार ने पंचायत चुनावों की प्रक्रिया के चलते हुए राज्य में ओबीसी के मतदाताओं की गणना करने का एक और बेतुका फैसला किया था .जो इस बात का प्रमाण है कि सरकार बुरी तरह से हड़बड़ाई हुई है .
आपको याद होगा कि प्रदेश में पिछले दिनों जब विधानसभा के उप चुनाव हुए थे तब भाजपा में ये घबड़ाहट नहीं थी लेकिन बहुत कम समय में भाजपा सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे आने लगा .पार्टी की सरकार बनाने के लिए भाजपा ने कांग्रेस के बागियों से सत्ता में भागीदारी का जो अनुबंध किया था उसे पूरा करने के लिए सरकार को पहले बागियों को मंत्री बनाना पड़ा था और जो उपचुनाव हार गए थे उन्हें हाल ही में मंत्री समकक्ष निगम,मंडलों के अध्यक्ष पद देना पड़े .सत्ता के इस ‘ एक पौंड गोश्त ‘ के बंटवारे को लेकर भाजपा में आंतरिक असंतोष भी भाजपा की पंचायत चुनावों से पीछे हटने की एक वजह है .
देश का पिछले कुछ महीनों का राजनीतिक परिदृश्य देखें तो आप पाएंगे कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के हिस्से में जय कम लेकिन पराजय ज्यादा आ रही है .जय का अश्व अब रफ्तार से दौड़ नहीं पा रहा है .बंगाल में मार खाये भाजपा के अश्वमेघ को उत्तर प्रदेश में दौड़ाने के लिए जिस अनुकूल माहौल की जरूरत थी उसे समाजवादियों ने खराब कर दिया है .यानि भाजपा के सामने उत्तर प्रदेश में भी ठीक वैसी ही चुनौती है जैसी कि बंगाल में थी .बंगाल में तो फिर भी ममता बनर्जी एकला चल रहीं थीं,किन्तु उत्तर प्रदेश में तो सपा,बसपा और कांग्रेस बराबरी से भाजपा को परेशान किये हुए हैं .यानि उत्तर प्रदेश का खेला बंगाल के खेला से एकदम अलग है लेकिन रोचक बंगाल जैसा ही है .
चुनावों से भी भागती दिखाई दे रही भाजपा में इस समय नेतृत्व भले ही किसी एक परिवार का न हो लेकिन उसकी धुरी में जो है वो सबको दिखाई देता है. दुर्भाग्य से अब देश में जितने भी चुनाव होते हैं उन्हें स्थानीय नेतृत्व नहीं खुद प्रधानमंत्री मोदी जी लादते हिन्. उन्हीं का सुदर्शन चेहरा बेचने की कोशिश की जाती है,लेकिन दुर्भाग्य से सब जगह अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आते .कर्नाटक ,मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़,दिल्ली,बंगाल,बिहार सब जगह भाजपा ने प्रधानमंत्री जी का चेहरा बेचने की कोशिश की लेकिन लाभ नहीं हुआ .अब उत्तर प्रदेश में भी यही सब हो रहा है .अब राज्यों की उपलब्धियां नहीं बल्कि मालिक का चेहरा ही चुनावी मोहरा है .इसलिए चुनावों से भी को आप इसी से जोड़कर देखेंगे तो मुमकिन है कि किसी नतीजे पर पहुँच जाएँ .
मुझे याद आता है कि चुनाव से भयभीत राजनीतक दल और नेता अक्सर कुछ न कुछ गड़बड़ी कर बैठते हैं . माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से भी ये भय कुछ गलत निर्णय न करा ले ये आशंका मुझे खाये जा रही है .पराजय की आशंका से भयाक्रांत लोग जब चुनावों से भागते हैं तो अचानक उनमें तानाशाही के अंकुर फूटने लगते हैं. इसलिए नजर रखिये ,सावधान रखिये .सावधानी में ही सुरक्षा है .भाजपा को ये याद रखना चाहिए कि -‘ बकरे की माँ आखिर कितने दिन खैर मना सकती है,?