माता शबरी जयंती 24 फरवरी पर विशेष धैर्य, भक्ति और जूठे बेर?

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पूर्णिमा दुबे

शबरी माता का असली नाम श्रमणा था। वह भील समुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थी। इसी कारण उनका नाम शबरी पड़ गया। उनके पिता भीलों के मुखिया थे। उन्होंने श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय किया। शबर जाति में विवाह से पहले अनेक पषुओं की बलि देने की प्रथा थी। यह देखकर श्रमणा बहुत दुखी हुई। पषुओं को बलि देने से रोकने के लिए विवाह से एक दिन पहले वो घर छोड़कर दंडकारण्य वन में चली गई।

मतंग ऋषि से भेंट
दंडकारण्य वन में मतंग ऋषि तपस्या करते थे। उनका एक आश्रम था जहां अन्य ऋषि मुनि भी रहकर तपस्या किया करते थे। श्रमणा भी वहां रहना और सेवा करना चाहती थीं। परन्तु भील जाति की होने के कारण मन में शंका भी थी। फिर भी वह सबके उठने के पहले ही आश्रम से नदी तक के पथ को साफ कर देती। कांटे-कंकड़ हटाकर साफ रेत बिछा देती कि किसी के पैरांे मंे कंकड़ न चुभे। यह सब कार्य वो चुपचाप किया करती।
एक दिन वो बड़ी लगन और समर्पण के भाव के साथ सफाई कार्य कर रही थी तभी मतंग ऋषि ने उन्हें देख लिया। वो उनका सेवाभाव देखकर बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में रहने के लिए आज्ञा दे दी। माता शबरी को तो मन चाही मुराद मिल गई। वह पूरी लगन और समर्पण के भाव के साथ आश्रम में रहते हुए सेवा कार्य करने में जुट गई। मतंग ऋषि का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही रहकर भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करें। वे इस आश्रम में आएंगे तो उनकी सेवा करके पुण्य प्राप्त करना।

मतंग ऋषि की मृत्यु के बाद शबरी का पूरा जीवन हर क्षण मात्र भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा। वह प्रातः उठकर नदी से स्वच्छ जल लाती, रास्तें को बुहारकर उसमें साफ रेत बिछाती और ताजे फूलों को बिछाती। स्वादिष्ट फल वन से तोड़कर लाती और उसे साफ करती। भगवान राम की प्रतीक्षा उन्होंने बड़ी लगन और समर्पण के साथ लंबे समय तक की। एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं। वे समझ गयी कि भगवान राम आए हैं। अब तक वृद्ध हो चली माता शबरी के शरीर में तो मानो नवजीवन का संचार हो गया। बेहद प्रसन्नता के कारण उन्हें मानो सूझ ही न रहा था कि क्या करें। वृद्ध शरीर में युवा समान चुस्ती आ गई और वह भागती हुई भगवान राम के पास पहुंची।

भगवान राम का आगमन
भगवान राम को पूर्ण सम्मान और आदर के साथ आश्रम में लाई और उन्हें आसन पर बिठाया। चरण धोकर स्वादिष्ट फल परोसे। यह सुनिष्चित किया कि फल स्वादिष्ट हों और उनमें किसी तरह की कमी न हो।

जूठे बेर?
कहा जाता है कि माता शबरी ने अपने जूठे बेर भगवान श्री राम को खिलाए। पर इस तथ्य का वर्णन घटना के मूल स्त्रोत महर्षि वाल्मीकि की रामायण में है और न ही तुलसीदास रचित रामचरित मानस में। फिर यह तथ्य प्रचारित कैसे हुआ? बचपन से या कहूं जब से बुद्धि ने परखना-समझना शुरु किया तब से मन में आता रहा है कि हम बिना स्नान किये भगवान की ना तो पूजा करते हैं और ना ही उन्हें भोग अर्पित करते हैं। यदि हम सामान्य जन ऐसा नहीं करते तो माता शबरी जो भक्ति की पर्याय रहीं वो अपने जूठे बेर कैसे भगवान को खिला सकती हैं? शहर के बुद्धिजनों से चर्चा की तो समझ आया कि जंगल में फल ही भोजन के लिए उपलब्ध होते हैं। माता शबरी भी बेर एवं अन्य फल तोड़कर लाती और उसी का भोजन किया करती थी। यदि कोई अतिथि आता तो उन्हें भी फल ही परोसती। फल चखकर या जूठा करके नहीं। फिर उनके भक्तिमय व्यक्तित्व के साथ ऐसा अन्याय क्यों किया गया, यह समझ से परे है। अब यदि मां रसोई में भोजन बनाते हुए परिवार के सदस्यों को भोजन करवा रही है तो दूसरे या तीसरे नंबर पर भोजन करने वाले सदस्य को जूठा भोजन परोसा जा रहा है, ऐसा तो कतई नहीं कहा जा सकता।

नवधा भक्ति
भगवान श्री राम ने शबरी को नवधा भक्ति का संदेष दिया और सीता माता को ढूंढने के लिए सहायता भी मांगी। माता शबरी ने कहा कि सृष्टि के रचियता जो सब कुछ जानने वाले हैं उन्हें सीता माता का पता न मालूम हो, ऐसा कैसे संभव है। पर ससम्मान जो जानकारी उनके पास थी वो उन्होंने भगवान श्री राम को दी। उन्होंने पंपा सरोवर की तरफ जाने और सुग्रीव से मित्रता करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सुग्रीव उन्हें माता सीता के पास तक ले जाएंगे। इसके बाद योगाग्नि से शरीर को त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया।
धैर्य और भक्ति का पर्याय
कहते हैं कि माता शबरी को भगवान राम के आने के बारे में जब बताया गया तब वह अल्पायु थीं और उस समय तो भगवान श्री राम का जन्म भी न हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन गुरु की सेवा और भगवान राम की प्रतीक्षा में बिता दिया। धैर्य और भक्ति का इससे अच्छा उदाहरण इस संसार में नहीं है।

शबरी धाम
दक्षिण-पष्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा से 33 किलोमीटर और सापुतारा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है। माना जाता है कि शबरी धाम वही स्थान है जहां शबरी और भगवान राम की मुलाकात हुई थी। शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित होता जा रहा है।