सीबीआई का आरोप : राजा को बरी करते समय साक्ष्य और गवाहों की हुई अनदेखी

0
172

नई दिल्ली। पिछले साल 2जी मामले पर जज ओपी सैनी के फैसले को दिशाहीन बताने वाली सीबीआई ने ए राजा और अन्य को बरी करने के लिए फैसले में ‘दिमाग का इस्तेमाल’ नहीं करने के लिए विशेष न्यायाधीश की निंदा की है। सीबीआई ने कहा कि जज ओपी सैनी ने इस बड़े घोटाले में डीएमके नेता और पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा समेत अन्य आरोपियों को बरी करते हुए भौतिक साक्ष्यों और भरोसेमंद गवाहों की अनदेखी करते हुए आरोपियों के बयानों को ही ‘परम सत्य’ मान लिया।
CBI’s accusation: Ignoring evidence and witnesses while acquitting the king
ओपी सैनी ने 21 दिसंबर 2017 को 2जी स्कैम में ए राजा, कनिमोझी और यूनीटेक एमडी संजय चंद्रा, डीबी रियल्टी चीफ शाहिद बलवा समेत अन्य को बरी कर दिया था। जज ने सीबीआई पर आरोप लगाया था कि वह अपने केस को साबित करने में असफल रही और उसके आरोप ‘अफवाह, गपशप और अटकलों’ पर आधारित थे। इस साल मार्च में सीबीआई ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी।

टीओआई ने सीबीआई की अपील देखी है। सीबीआई ने अपनी अपील में फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि इसमें दस्तावेजी साक्ष्य, गवाहों के बयान और मामले की पृष्ठभूमि पर दिमाग का इस्तेमाल नहीं दिखता। सीबीआई ने कहा कि सैनी ने भौतिक साक्ष्यों, बलवा की स्वान टेलिकॉम और यूनिटेक ग्रुप आॅफ कंपनीज की अक्षमताओं, ए राजा, शाहिद बलवा व संजय चंद्रा की पहले की अंतरंगता और 200 करोड़ रुपये के ट्रांजैक्शन की पूरी तरह से अनदेखी की।

सीबीआई ने अपील में कहा है कि सैनी ने देश के लॉ आॅफिसर जीई वाहनवती (भूतपूर्व सॉलिसिटर जनरल), डीएस माथुर (पूर्व टेलिकॉम सेक्रटरी) और अशीरवथम आचार्य (राजा के पूर्व अडिशनल पीएस) जैसे भरोसेमंद गवाहों के बयानों की भी अनदेखी की। इसमें दावा किया गया है कि विशेष जज ने अभिोजन पक्ष की तरफ से पेश किए गए विश्वसनीय सबूतों को नजरअंदाज कर दिया और आरोपी ए राजा और उनके निजी सचिव आरके चंडोलिया के अपुष्ट साक्ष्यों को ‘परम सत्य’ के रूप में स्वीकार कर लिया।

सीबीआई ने कहा कि जज ने ए राजा के सबूतों को सवालों से परे मान लिया, जबकि उनके जवाब कपटपूर्ण और लिखित रिकॉर्ड के उलट भी थे। सीबीआई ने दावा किया कि 2जी स्कैम में सैनी के जजमेंट का एक हिस्सा भ्रष्टाचार के केसों पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है। सैनी ने ऊङ्मळ के सारे अधिकारियों के बयानों को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उन्होंने सेवा नियमों और कार्यालय की प्रक्रियाओं के अनुसार ए राजा, सिद्धार्थ बेहुरा और आरके चंडोलिया के मौखिक निदेर्शों को लिखित में रिकॉर्ड नहीं किया।