आंखों से अपने जज्बातों को बयां करने वाली लीना चिटनिस

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शशी कुमार केसवानी

नमस्कार आईये आज बात करते है एक ऐसे पढ़े-लिखे परिवार से आई लड़की जो बेहद ही खूबसूरत और जिसे अपनी बात रखने का बेहतरीन सलीका भी आता था। जी हां उसका नाम है लीला चिटनीस। उन्होंने फिल्म में अभिनेत्री के रूप में सफलता तो हासिल की थी लेकिन मां के रूप में निभाया किरदार भी भुलाया नहीं जा सकेगा। ये बहुत ही सभ्य थी। जिस तरीके के फिल्मों में काम किया उसके लिए कोई आत्मविश्वास से भरपूर ही काम कर सकता है। लीला चिटनिस का जन्म 9 सितंबर 1912 को महाराष्ट्र के धारवाड़ में हुआ। कर्नाटक के ब्राह्मण परिवार में जन्मीं लीला चिटनिस के पिता इंग्लिश लिट्रेचर के प्रोफेसर थे। लीला चिटनिस ने ग्रेजुएशन किया था। उन्हें महाराष्ट्र की पहली ग्रेजुएट सोसाइटी लेडी का खिताब भी मिला। लीला चिटनिस के पास 30 के दशक में कॉलेज की डिग्री थी। वह उस दौर की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी हीरोइन थीं। पढ़ाई पूरी करने लीला चिटनिस ने ‘नाट्यमानवांतर’ नाम का एक थिएटर ग्रुप जॉइन कर लिया। इस ग्रुप के साथ लीला चिटनिस ने कुछ कॉमेडी और ट्रैजिक प्ले भी किए। कम उम्र में शादी होने के बाद वो जल्द ही चार बच्चों की मां भी बन गईं।

कुछ समय लीला उनके पति के साथ ब्रिटेन में भी रही थी। उनके पति उम्र में काफी बड़े थे। इन्होंने लंदन में आजादी की लड़ाई में भी काम किया था। ब्रिटेन में एक बार इनके पति ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे मान्वेंद्र राय को घर में पनाह दी थी। जिसके कारण लीला के पति को पुलिस ने हिरासत में लिया था मगर बाद में वे जेल से बाहर आ गए थे, लेकिन गिरफ्तारी की तलवार भी काफी समय लटकी रही। स्थिति सामान्य होने पर वे भारत आकर मुंबई शहर में रहने लगे। उम्र का बड़ा फर्क होने की वजह से लीला और उनके पति गजानन यशवंत चिटनिस के बीच अक्सर किसी ना किसी बात को लेकर विवाद बना रहता था जिस वजह से उनकी शादी भी लंबा सफर तय नहीं कर पाई और दोनों ने अलग होने का फैसला किया। लेकिन पति से अलग होने के बाद बच्चों की परवरिश के लिए लीला ने एक स्कूल में बतौर अध्यापिका काम करना शुरू कर दिया। बच्चों की पढ़ाने के साथ-साथ लीला कई नाटकों में भी काम करने लगीं।

फिर उनका वक्त बदला और उन्हें काफी मेहनत के बाद सागर मूवीटोन फिल्म में एक्स्ट्रा अभिनेत्री के रूप में काम करने का मौका मिला। इसके बाद उसी कंपनी की दूसरी फिल्म जेंटलमैन डाकू में लीला को ऐसा किरदार मिला जिसमें उन्होंने सिर्फ पुरुषों की पोशाक पहननी थीं, लीला ने यह किरदार भी बखूबी निभाया। फिर उन्हें मास्टर विनायक की फिल्म छाया (1936) में दमदार किरदार निभाने का मौका मिला। उस समय लीला अपने करियर के ऐसे पड़ाव पर थी कि वो जिस चीज को भी हाथ लगाती, वहीं चमक उठती थी, तभी लीला को बॉम्बे टॉकीज से जुड़ने का मौका मिला। लीला की अदाकारी और कलाकारी से काफी प्रभावित होकर बॉम्बे टॉकीज ने लीला को उस दौर के सुपरस्टार अशोक कुमार के साथ फिल्म ‘कंगन’ में लीड रोल निभाने का मौका दिया जोकि पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म भी रहीं और देश की पहली सिल्वर जुबली फिल्म भी रही। लोगों ने उस वक्त अशोक और लीला की जोड़ी को काफी पसंद किया, जिसके बाद दोनों ने कई फिल्में एक-साथ कीं। लीला चिटनिस आज की मशहूर अभिनेत्री काजोल की कजिन परनानी थी। एक बार बात करते हुए काजोल ने बताया था कि नानी अपने जीवन के आखिरी पड़ाव तक बहुत ही सुंदर दिखती थी। उनके अंदर एक मां हमेशा छुपी हुई कहीं न कहीं नजर आती थी। वे हमेशा अपने बेटों और अपने परिवार के बच्चों को लेकर बहुत जागरूक और सजग रहती थी। अमेरिका जाने से पहले जब मेरे से मिली तब बहुत भावुक हो रही थी। जबकि मैंने कहा कि मैं भी आती जाती रहूंगी और अपन मिलते रहेंगे।

फिल्मी दुनिया से जुड़े एक दोस्त ने बताया था कि लीला कहती थी कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता और लीला चिटनिस ने इसी पर अमल करते हुए जो भी किरदार मिले, निभाने शुरू कर दिए। लीला चिटनिस को फिल्मों में शुरूआत में एक्स्ट्रा का रोल मिलता था। लीला चिटनिस ने वो रोल सहर्ष स्वीकार किए और धीरे-धीरे आगे बढ़ती गईं। जिस दौर में फिल्मों में एक्टिंग को ही ‘घटिया’ काम माना जाता था, उस दौर में लीला चिटनिस फिल्में करके बच्चों का पेट पाल रही थीं। वह वो काम भले ही और लोगों के लिए घटिया और दोयम दर्जे का रहा हो, पर लीला चिटनिस की तो उसमें जिंदगी बसी थी। लीला चिटनिस के करियर में ऐसा भी मोड़ आया, जब उनकी फिल्में धड़ाधड़ हिट हो रही थीं। यह 1939 की बात है। उस दौरान वह हिंदी फिल्मों की बड़ी स्टार बन गई थीं। मास्टर विनायक से लेकर नारायण काले और सोहराब मोदी जैसे उस समय के बड़े नाम लीला चिटनिस के साथ काम करने लगे। 1948 में आई फिल्म ‘शहीद’ में लीला चिटनिस, दिलीप कुमार की मां के किरदार में नजर आईं। फिल्म सुपरहिट रही और इसने लीला चिटनिस को कैरेक्टर आर्टिस्ट के किरदार में भी स्थापित कर दिया। बॉलीवुड में मां के किरदार से लीला ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है। हालांकि उस दौर में और भी ऐसी अभिनेत्रियां थीं जो मां का किरदार निभाती थीं पर दर्शकों को अपने अभिनय से बांध रखा था लीला ने, क्योंकि लीला प्यार और दुलार से भरपूर मां थीं। राजकपूर की फिल्म आवारा में भी लीला ने ही मां का किरदार निभाया। मशहूर अभिनेता अशोक कुमार ने भी माना था कि बिना कुछ कहे सिर्फ आंखों से अपनी बात समझा देने का हुनर उन्होंने लीला से ही सीखा था। लीला चिटनिस ने अभिनय करने के अलावा 1955 में आई एक-एक फिल्म ‘आज की बात’ का निर्माण और निर्देशन भी किया। 1987 में आई फिल्म ‘दिल तुझको दिया’ में काम किया था जिसमें गौरव कुमार की नानी बनी थी। इसकेबाद लीला ने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया और वो अपने बड़े बेटे के साथ अमेरिका के डॅनवर शहर में रहने लगीं। मगर 93 साल की उम्र में 14 जुलाई को लीला चिटनिस दुनिया को ही अलविदा कह गई।

सिर्फ आंखों से अपनी बातों को सझमाने का हुनर रखने वाली लीला वो पहली भारतीय अभिनेत्री थीं जिन्होंने 1941 में ‘लक्स’ साबुन के लिए विज्ञापन किया। इससे पहले लक्स साबुन में विदेशी अभिनेत्रियां ही नजर आती थी। ये विज्ञापन उस जमाने में बड़ी चर्चा में रहते थे। उन विज्ञापनों में कई तरह की बातें लिखी भी होती थी कि त्वचा इतनी सुंदर कैसे है। सुंदरता के राज क्या है, दूसरी महिलाएं लीला से जलती है, क्योंकि उसकी त्वचा इतनी सुंदर ज्यों है। इस तरह के कई स्लोगन के साथ विज्ञापन की देशभर में चर्चाएं होती रहती थी। इतना ही नहीं, लीला को महाराष्ट्र की पहली ग्रेजुएट सोसायटी लेडी का तमगा भी मिल चुका हैं।