सीएम के क्षेत्र में आदिवासी वर्ग से टिकट देने की मांग पकड़ रही जोर

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नरेश मेवाड़ा

मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के लिए आदिवासी वोटर्स निर्णायक हैं। आदिवासी वोट बैंक जिससे दूर हुआ, वो ‘सिंहासन’ से दूर हो गया। ऐसा ही नजारा सीएम शिवराज सिंह के क्षेत्र बुधनी विधानसभा में नजर आ रहा है। आदिवासियों को साधने जहां भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी है, तो प्रदेश के कई जिलों के आदिवासी नेता कांग्रेस से विधायक पद की दावेदारी कर रहे है। बुधनी विधानसभा सीट पर चुनावी साल में आदिवासी नेता अपनी अलग ताकत दिखाने लगे हैं। स्थानीय आदिवासी नेता कांग्रेस से टिकट देने की मांग कर रहे हैं। पूरे सीहोर जिले में आदिवासियों वोटरों की संख्या लगभग डेढ़ लाख के करीब है। वर्तमान में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे है और मुख्यमंत्री को अपने घर में ही घेरने की रणनीति के तहत कांग्रेस के द्वारा अपनी गोटी बिछाई जा रही है। सूत्रों ने बताया कि आगामी विधानसभा चुनाव का शंखनाद भी कमलनाथ सीएम के गृह जिले सीहोर से चिंतामन गणेश का आशीर्वाद लेकर करेंगे। रायसेन जिले की सिलवानी से जहां नीलमणि शाह तो सीएम की विधानसभा सीट बुधनी से पूर्व जिला पंचायत सदस्य बलराम सीराम, कांग्रेस के सक्रिय युवा नेता आदिवासी कांग्रेस विभाग सीहोर जिला अध्यक्ष सुमित नर्रे, विजेंद्र उइके कांग्रेस से टिकट की मांग कर रहे है। वहीं बुधनी विस सीट से इस बार भाजपा से कार्तिकेय चौहान का नाम चर्चा में है और वह क्षेत्र में जोर-शोर से तैयारी भी कर रहे है। बुधनी में स्थानीय स्तर पर कुछ कांग्रेस के आदिवासी नेता टिकट की मांग कर रहे है, जो 15 वर्षों से कई आंदोलन कर कांग्रेस को मजबूत कर रहे हैं। उनका मत है कि विधान सभा में दलित एवं आदिवासियों के 90 हजार से भी अधिक मतदाता है। इस लिए इस बार किसी स्थानीय आदिवासी नेता को मैदान में उतारा जाए तो बुधनी विधानसभा सीट कांग्रेस को मिल सकती है। वहीं भाजपा के कद्दावर पूर्व मंत्री रामपाल सिंह राजपूत के क्षेत्र से वर्ष 2018 में विस का निर्दलीय चुनाव लड़ चुके आदिवासी नेता नीलमणि शाह फिर कांग्रेस से विधायक पद की दावेदारी कर रहे है। क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है। इसके साथ उनके पिताजी मोतीलाल बोरा जी के समय उद्यमी विभाग संस्थान के अध्यक्ष रहे चुके है और उनकी दादी झलकन कुमारी कांग्रेस से विधायक रह चुकी है।


गोंडवाना के वोट बैंक पर कांग्रेस की नजर

कांग्रेस नेताओं ने बताया कि बुधनी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 40 हजार आदिवासी मतदाता हैं। अब तक सामान्य वर्ग का प्रत्याशी होने से पूरा वोट सरकार यानी मुख्यमंत्री के साथ चला जाता है। यदि आदिवासी वर्ग से प्रत्याशी होगा, तो इस वर्ग का एकमुश्त वोट कांग्रेस की झोली में आ सकता है। इस प्रयोग के जरिए क्षेत्र में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के असर को भी कम किया जा सकता है।


सिलवानी-भोजपुर से भी उठी मांग
आदिवासी नेताओं का कहना है कि बुधनी के अलावा प्रदेश सरकार के मंत्री रामपाल सिंह के क्षेत्र सिलवानी में लगभग 48 हजार आदिवासी वोट हैं। इसी प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री स्वगीय सुंदरलाल पटवा के भतीजे व प्रदेश सरकार के मंत्री सुरेंद्र पटवा के भोजपुर विधानसभा क्षेत्र में भी इस वर्ग के वोटों की संख्या 42 हजार बताई गई है। मप्र में 20 फीसदी आदिवासी नेता है।


विधानसभा चुनाव 2018 में किसे मिले कितने वोट
पार्टी प्रत्याशी वोट मिले
भाजपा शिवराज सिंह 123492
कांग्रेस अरुण यादव 64493
गोडवाना गणतंत्र पार्टी रेवाराम सल्लाम 8,152
बीएसपी संजीव कुमार 1,683


बुधनी का सियासी इतिहास
बुधनी से शिवराज सिंह ने पहला चुनाव 1990 में लड़ा था. इसके बाद 2005 उनके लिए बदलाव लेकर आया जब उन्हें मध्य प्रदेश में बाबूलाल गौर को हटाकर मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद 2006 में अपनी पुरानी सीट बुधनी से उपचुनाव में कांग्रेस के राजकुमार पटेल को करीब 36 हजार मतों से हराकर विधानसभा के सदस्य बने. इसके बाद चौहान ने लगातार 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में बुधनी सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. 2008 में उन्होंने कांग्रेस के महेश सिंह राजपूत को 41 हजार वोटों से परास्त किया जबकि 2013 में महेंद्र सिंह चौहान को 84 हजार मतों से हराया था.


ये नेता कमलनाथ से कर चुके मांग
विगत दिनों आदिवासी नेता कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ से मिलकर अपनी बात रख चुके है और क्षेत्र में आदिवासी समुदाय एकजुटता के साथ अपनी बात रख रहा है। आदिवासी समुदाय के कई नेताओं के द्वारा कांग्रेस नेताओं से संपर्क कर अपनी बात रखी है। ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों बुधनी विधान सभा से आदिवासी वर्ग के वोट बैंक को देखते हुए इसी वर्ग से प्रत्याशी घोषित किए जाने की चचार्एं भी चली थी। ऐसे में आदिवासी नेता अब कांग्रेस से टिकट मिलने की आस में लगातार भोपाल के चक्कर लगा रहे है।

47 सीटों का खेल
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के वोटों के कारण ही कांग्रेस सत्ता हासिल कर पायी थी। कांग्रेस को 47 में से 30 सीटें मिली थी। प्रदेश में आदिवासियों की बड़ी आबादी होने से 230 विधानसभा में से 84 सीटों पर उनका सीधा प्रभाव है। प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थी। कांग्रेस के खाते में 15 सीट आयी थी। लेकिन 2018 के चुनाव में सीन एकदम उल्टा हो गया। आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 पर ही जीत दर्ज कर सकी। कांग्रेस ने 30 सीटें जीत ली थी। भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी थी। बहरहाल देखना होगा कि 2023 के चुनावों में आदिवासी समाज किस दल को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाता है।