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मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय में मुखिया का रिटायरमेंट 31 मार्च को है और अब सेकंड-थर्ड लाइन तैयार नहीं होने से लोकसभा, गुजरात-यूपी-राजस्थान विधानसभा जैसे हालात निर्मित हो रहे हैं। भर्ती में बैकडोर एंट्री से विधानसभा सचिवालय में संसदीय जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ अधिकारी-कर्मचारियों का टोटा पड़ गया है। आईए आपको बताएं विधानसभा सचिवालय में क्यों बने ऐसे हालात।
मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रमख सचिव एपी सिंह लोकसभा सचिवालय से अवर सचिव के रूप में आए थे। आज जब उनका सेवाकाल पूरा होने वाला है तो विधानसभा सचिवालय में सेकंड और थर्ड लाइन दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। संसदीय नियम-परंपराओं के जानकार कहते हैं कि मध्य प्रदेश विधानसभा में कैडर रिवीजन की तरफ ध्यान नहीं दिए जाने से आज विपरीत परिस्थितियां बनी हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से आज तक कैडर रिवीजन के लिए विधानसभा ने कभी चिंता नहीं की जिससे बैकडोर एंट्री होती गईं। कैडर रिवीजन और बिना राजनीतिक दखलंदाजी के सीधी भर्तियां नहीं हो पाने से आज मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय में हालात बिगड़े हैं जिससे आने वाले समय में विधानसभा के सत्रों के संचालन नियम-परंपराओं को बताने वाले अधिकारी नहीं होने से सुचारू रूप से सत्र चल पाने मुश्किल होगा। ऐसे में करोड़ों रुपए खर्च के बाद भी विधायक अपने विधानसभा क्षेत्रों की समस्याएं-विकास के मद्दों को सदन में रख पाने में असमर्थ होंगे।
मध्य प्रदेश भी 31 के बाद अन्य राज्यों की लाइन में खड़ा होगा
लोकसभा में महासचिव उत्पल कुमार सिंह दो साल पहले सेवानिवृत्त हो चुके हैं तो गुजरात विधानसभा के सचिव डीएम पटेल छह साल पहले, यूपी विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप कुमार दुबे चार साल पहले सेवानिवृत्त हो गए हैं तो राजस्थान विधानसभा के प्रमुख सचिव एमपी शर्मा भी दो साल पहले रिटायर हो गए हैं। ऐसी ही स्थिति अब मध्य प्रदेश में बनने जा रही है और मौजूदा प्रमुख सचिव एपी सिंह भी 31 मार्च को रिटायर होने जा रहे हैं। उनके रिटायरमेंट के बाद उन्हें सेवावृद्धि दी जा रही है और ऐसे में मध्य प्रदेश भी लोकसभा, गुजरात, यूपी व राजस्थान विधानसभा सचिवालय की लाइन में खड़ा हो जाएगा।
दो दशक में एक बार बनी कैडर रिवीजन के लिए कमेटी
विधानसभा सचिवालय के कैडर रिवीजन के लिए छत्तीसगढ़ बनने के बाद से आज तक की अवधि में केवल एक बार कमेटी बनी थी जो तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी की अध्यक्षता में बनी थी। जमुना देवी कमेटी ने अनुशंसा के साथ रिपोर्ट दी थी लेकिन तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी ने उसे अमान्य कर दिया। इसके बाद या पहले ऐसी कमेटी कभी बनी नहीं जबकि जानकारों का कहना है कि हर पांच साल में नेता प्रतिपक्ष की अध्य़क्षता में विधानसभा सचिवालय कैडर रिवीजन के लिए कमेटी बनना चाहिए।
2014 में मिले 65 पद, फिर बाद में या पहले बैकडोर एंट्री होती रही
बताया जाता है कि 2014 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष सीतासरन शर्मा के कार्यकाल में तत्कालीन प्रमुख सचिव बीडी इसरानी ने विधानसभा सचिवालय के लिए अतिरिक्त पदों की कोशिश की थी। वित्त विभाग ने करीब 65 पद विधानसभा सचिवालय के लिए दिए थे। मगर इसके पहले तीन दशकों में विधानसभा अध्यक्षों में से कुछ ने अपने-अपने क्षेत्र के लोगों व पसंदीदा लोगों को बैकडोर एंट्री से भर्तियां कीं। श्रीनिवास तिवारी के समय ऐसी भर्तियों में आए सत्यनारायण शर्मा व कमलाकांत सचिव तक पहुंचे और बाद में वे पदावनत तक किए गए।
कुछ दिन पहले भी बैकडोर एंट्री से संविदा नियुक्ति
पूर्व विधानसभा अध्य़क्ष श्रीनिवास तिवारी के समय क्षेत्र विशेष के लोगों की भर्तियां होने के आरोप लगते रहे हैं लेकिन ऐसा केवल उनके समय हुआ है यह भी सही नहीं है। इसके बाद भी जिसे मौका मिला बैकडोर एंट्री से अपने क्षेत्र के लोगों को रखने की कोशिशें की गईं जिसमें कुछ सफल रहे और कुछ शुरुआती विरोध से कामयाब नहीं हो सके। कुछ दिन पहले एक वरिष्ठ मंत्री के स्टाफ के अधिकारी की बेटी की भी इसी तरह संविदा नियुक्ति हुई है जो लिखित परीक्षा के बिना ही नौकरी में आ गई हैं। ऐसे ही विंध्य के एक अन्य पॉवरफुल नेताजी के निजी स्टाफ के एक कर्मचारी की नियुक्ति के लिए कोशिशें शुरू हो गई हैं।
कैडर रिवीजन से ही तैयार होगी सेकंड-थर्ड लाइन
मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व प्रमख सचिव बीडी इसरानी कहते हैं कि विधानसभा सचिवालय में सेकंड और थर्ड लाइन को लेकर कोई चिंता नहीं की जा रही है। इससे आने वाले सालों में विधानसभा सत्रों के सुचारू रूप से संचालन में परेशानियां आएंगी। कैडर रिवीजन से ही सेकंड और थर्ड लाइन तैयार हो सकती हैं। इसके लिए विधानसभा सचिवालय को प्रयास करके कमेटी बनवाकर पदों के सृजन और भर्ती पर ध्यान केंद्रित करना होगा। जब इस बारे में विधानसभा सचिवालय का पक्ष जानने की कोशिश की गई तो प्रमुख सचिव एपी सिंह ने अधिकारियों की कमी के बारे में बताया लेकिन सेकंड और थर्ड लाइन कैसे तैयार होगी, इसका जवाब वे नहीं दे सके। विधानसभा सचिवालय में भर्ती में राजनीतिक दखलंदाजी को लेकर भी उन्होंने कोई भी टीका टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।