विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। बता दें कि इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इसी कड़ी में आर्ट आॅफ लिविंग एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है जिसका नाम ‘प्रदूषण के खिलाफ आवाज, ग्रीन एनर्जी की ओर कदम’ है।
Changing climate, hot soil
जलवायु परिवर्तन
यह एक ऐसा बदलाव है जिसे हम देख भी रहे हैं और महसूस भी कर रहे हैं। तापमान में वृद्धि और बारिश के समय में बदलाव इसी की देन हैं। हम महसूस कर सकते हैं कि मौसम सामान्य की तुलना में ज्यादा गरम होता जा रहा है। सूखे का दायरा बढ़ रहा है। मौसम में परिवर्तन से फसलें चौपट हो रही हैं, जिससे खाद्यान्न की कमी भी हो रही है। सबसे बड़ी चिंता तो इस बात की है तापमान बढ़ने से धुव्रीय क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है और इससे बाढ़ आने के साथ ही कई तटीय शहरों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। वन्यजीवों के लिए भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
क्या करें- जरूरत न हो तो बिजली का इस्तेमाल न करें, गाड़ी कम चलाएं, छएऊ बल्ब का इस्तेमाल करें, जितना संभव हो वृक्षारोपण करें।
प्रदूषण
धरती पर आज हम कहीं भी जाएं, प्रदूषण किसी न किसी रूप में हमारे लिए चुनौती पेश कर रहा है। प्लास्टिक पलूशन हो, वायु या फिर जल प्रदूषण, यह इंसानों के साथ-साथ जीव-जंतुओं की भी सेहत बिगाड़ रहा है। ज्यादा से ज्यादा आधुनिक सुविधाओं की चाह ने प्रदूषण को नियंत्रण से बाहर कर दिया है। प्रदूषण सीधेतौर पर इंसानों से क्रियाकलापों से ही पैदा हुई स्थिति है। प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारी प्रयासों, उद्योगों में नई तकनीक अपनाने के अलावा आम लोगों को भी इस भागीरथ प्रयास में भूमिका निभानी होगी।
क्या करें- घर के आसपास सफाई रखें, जरूरत की ही चीजें खरीदें, रीसाइकल की आदत डालें, कूड़े का बेहतर प्रबंधन करें, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें।
आबादी विस्फोट
धरती पर आबादी बढ़ने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। विश्व की आबादी करीब 7.6 अरब पहुंच गई है। अगर हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को एक बेहतर जीवन देना चाहते हैं तो हमें उनके लिए पानी, भोजन, रहने के लिए जगह आदि के साथ धरती को साफ-सुथरा बनाकर रखना होगा।
क्या करें- खाने और पानी को बर्बाद न करें, आबादी पर अंकुश लगाएं, शेयर करने की आदत डालें।
जैव विविधता को नुकसान
प्रत्येक जीव की हमारी धरती पर अपनी अलग भूमिका है। अगर इसमें से कोई एक के लिए खतरा पैदा होता है तो इससे बाकी अछूते नहीं रह सकते। शहरीकरण के लिए तेजी से पेड़ों को काटा जा रहा है, उसी गति से वृक्षारोपण नहीं हो रहा है। इससे आगे चलकर स्वच्छ आॅक्सीजन की कमी और वन्यजीवों को विस्थापित होना पड़ सकता है। पेड़-पौधे सीधे तौर पर ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ते हैं। जैसे- मधुमक्खियों की आबादी घट रही है तो परागण की भूमिका के कारण इसका पर्यावरण के साथ-साथ खाद्यान्न उत्पादन पर भी असर होगा। इस समय कई जीव-जंतुओं के लिए खतरा पैदा हो गया है। इंसानों से सीधे तौर पर या पर्यावरण में बदलाव के कारण वे हाशिए पर आ गए हैं।
क्या करें- जीव-जंतुओं का संरक्षण करें। जानवरों के रहने के लिए जंगलों को नष्ट होने से बचाएं।
सूखती धरती, समंदर में घुलता जहर
धरती पर सूखा बढ़ रहा है। ऐसे में इंसानों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। वहीं समंदर में डेड जोन तेजी से बढ़ रहे हैं, जहां आॅक्सीजन खत्म हो जाता है और समुद्री जीव-जंतुओं का जीवन खत्म हो जाता है। दुनिया के महासागरों में 146 डेड जोन्स पाए गए हैं। दरअसल, पानी में रसायनों की बढ़ती मात्रा के कारण ऐसे हालात बन रहे हैं। उत्तरी अमेरिका के तटीय क्षेत्र में डेड जोन में रसायनों की मात्रा ज्यादा होने के कारण मछलियों की संख्या घट रही है। ऐसे में सीफूड इंसानों के लायक नहीं बचेगा और न ही वायु की गुणवत्ता बेहतर रह सकेगी।
अच्छी बात- वृक्षारोपण से धरती को फिर से हरा-भरा किया जा सकता है। डेड जोन्स को वापस बेहतर किया जा सकता है, हालांकि यह काम मुश्किल है।