राम गोपाल पाण्डेय
प्रियंका गांधी जी और कमलनाथ जी ने 50% कमीशन का मुद्दा ट्वीट क्या किया! भाजपा ने प्रदेश के 41 थानों में गाजे बाजे के साथ प्राथमिकी दर्ज कराकर “पचास प्रतिशत भाजपा सरकार” को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए प्रमुख मुद्दा बनाकर अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। अभी तो लोग अपने दर्द को बेनामी रूप में जाहिर कर रहे हैं लेकिन विधानसभा चुनाव बाद जब सरकार बदल जाएगी तब लोग जाहिर तौर पर शपथ पत्र में पचास प्रतिशत सरकारा की पोल की बाढ़ ले आएंगे।
अठारह वर्ष से अधिक समय से सरकार केवल और केवल मार्केटिंग, ब्रांडिंग और इवेंटिंग की सरकार है जो डबल इंजन के कवच की सुरक्षा से निरंकुश और स्वेच्छाचारी हो गई है। इन्हें लोकतंत्र, देश के संविधान, समयबद्ध योजना और कार्यक्रम, बजट व्यवस्था, विधानसभा और लोकसभा तथा न्यायालयीन व्यवस्था और देश के अन्य संस्थागत व्यवस्थाओं तथा चुस्त दुरुस्त स्वाभाविक रूप से संचालित प्रशासनिक व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है। ये तो केवल साम्प्रदायिकता तथा धर्मांधता का एजेंडा और नैरेटिव चलाकर जनता को दिग्भ्रमित कर अपनी सरकार बनाए रखना चाहते हैं। फिर जब डबल इंजन की सरकार हो जाए तो मनमर्जी, स्वेच्छाचारी और निरंकुश सरकारा (Governance) तो होगी ही।
लोकतंत्र का प्रहरी देश का मीडिया (कुछ गिनती के छोड़कर) इनकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग में सतत लगे हुए हैं और इवेंटिंग में स्थानीय वेंडर से लेकर इंटरनेशनल वेंडिंग एजेंसीस इनके काम लगातार कर रही हैं। मध्य प्रदेश के विशेष संदर्भ में देखा जाये तो भोपाल, इंदौर और अहमदाबाद के बड़े बड़े टेंट हाउसेस इनके इवेंट पूरा कर रहे हैं। शहडोल,मंडला और डिंडौरी में लाखों के हितलाभ बितरित करने के इवेंट में कई करोड़ फूंके जाते हैं, जनता के टैक्स के पैसे का भला इन्हें क्यों दर्द होगा। इनके ब्रांडिंग, मार्केटिंग और इवेंटिंग में देखा जाए तो सकल भुगतान का 50 से 60% तक पैसा लौटता है जो इनकी बेदर्दी को जग जाहिर करता है। तभी तो यह सब आम लोगों को विदित है और उनके बीच चर्चा का विषय भी है।
आज आम लोगों के कोई भी काम सहज और स्वाभाविक रूप में नहीं होते, हर काम में हर स्तर पर चढ़ोत्तरी चढ़ानी ही पड़ती है। ये तो हर स्तर पर व्याप्त चढ़ोत्तरी और कमीशन व्यवस्था को समाप्त ही नहीं करना चाहते। ये तो केवल और केवल धर्म तथा संप्रदाय के एजेंडे से जनभावनाएं कलुषित बनाए रखकर बहुसंख्यक आबादी को मौद्रिक और वस्तुगत सुविधाएं देकर अपनी ओर जनता की उन्मुखता बनाए रखना चाहते हैं। यह बात अलग है कि आम जन को जितनी सहायता सरकार से मिलती है उससे कहीं अधिक मंहगाई की मार और जीएसटी का भार उसे झेलना पड़ रहा है।
ऐसे में जहां आम जन के कोई काम सहज और स्वाभाविक रूप से नहीं होते हों तथा जीएसटी का भार और बेतहाशा महंगाई की मार उसे झेलनी पड़ती हो व सरकार के वेंडरों के भुगतान के 50% से भी कम की जब वास्तविक उपयोगिता हो और शेष कमीशन में लौट जाता हो तब फिर पचास प्रतिशत से भी कम सरकारा (Governance) नहीं तो आखिर क्या कहा जाएगा ? कर्नाटक में तो चालिस प्रतिशत सरकारा की बात थी; मध्य प्रदेश तो इस मामले में तरक्की कर गया और पचास प्रतिशत पार कर गया है। ऐसे में मध्य प्रदेश को पचास प्रतिशत सरकारा से कम आकलन करना बेइंसाफी होगी और अब तो प्रदेश के 41 थानों में भाजपा द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराकर जनता के लिए चुनावी एजेंडे में अपनी मुहर भी लगा दी है। अब गेंद जनता के पाले में है और जनता का निर्णय सर्व मान्य होगा।
राम गोपाल पाण्डेय
से. नि. अपर श्रमायुक्त