कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को मनाये जाने वाले पर्व रूप चौदस को नरक चतुर्दशी, छोटी दीपावली, नरक निवारण चतुर्दशी या काली चौदस के रुप में भी जाना जाता है। इस साल यानी 2023 में रुप चौदस या काली चौदस या नरक चतुर्दशी का त्योहार 11 नवंबर को मनाया जाएगा। दिवाली के पांच दिनों के त्यौहार में यह धन तेरस के बाद आता है। इसे छोटी दीपावली के तौर पर भी जाना जाता है। इस दिन स्वच्छ होने के बाद यमराज का तर्पण कर तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है और शाम के वक्त दीपक जलाए जाते हैं। मान्यता है कि तेरस, चौदस और अमावस्या के दिन दीपक जलाने से यम के प्रकोप से मुक्ति मिलती है तथा लक्ष्मी जी का साथ बना रहता है। इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा भी की जाती है। बचपन में हनुमान जी ने सूर्य को खाने की वस्तु समझ कर अपने मुंह में ले लिया था, इस कारण चारों और अंधकार फैल गया। बाद में इंद्र देवता ने सूर्य को मुक्त करवाया था। चैलेंज के लिए विशेष फोटो इन रूप की रानियों ने कराया हैं मुंबई की टैरो कार्ड रीडर ज्योति जगियानी, इंदौर की मॉडल नुपुर छाबड़ा, दिल्ली की मिसेज एशिया शिवानी सिंह, दिल्ली शिक्षाविद दिव्या तंवर, भोपाल इन्फ्लूवेंसर नेहा जैमिनी, मुंबई की मॉडल प्रकृति शर्मा, शिक्षाविद दिल्ली की नैनसी जुनेजा ने विशेष तौर पर फोटो भेजे, जिनके हम आभारी हैं।
आम्बा हल्दी, बेसन, मलाई, गुलाबजल, जामफल (पिसा हुआ), चंदन पावडर, केसर, गुलाब की सूखी पखुंड़ियां कुछ बूंदे नींबू की, लौध्र, दूध या मिल्क पावडर मिलाकर पारंपरिक उबटन बनाया जाता है जिसे अपनी त्वचा अनुसार ही लगाएं। उबटन उतारते समय तिल के तेल का उपयोग करें तो ज्यादा अच्छे परिणाम मिलते है अंत में हल्के गुनगुने पानी से थपथपाकर साफ करें।
रूप चौदस का महत्व: क्या है रूप चौदस
रूप चौदस सौन्दर्य को निखारने का दिन है। भगवान की भक्ति व पूजा के साथ खुद के शरीर की देखभाल भी जरुरी होती है। ऐसे में रूप चौदस का यह दिन स्वास्थ्य के साथ सुंदरता और रूप की आवश्यकता का सन्देश देता है। जिस प्रकार महिलाओं के लिए सुहाग पड़वा का स्नान माना जाता है, उसी प्रकार रूप चौदस पुरुषों के लिए शुद्घि स्नान माना गया है। वर्षभर ज्ञात, अज्ञात दोषों के निवारणार्थ इस दिन स्नान करने का शास्त्रों में काफी महत्व बताया गया है। माना जाता है कि सूर्योदय के पहले चंद्र दर्शन के समय में उबटन, सुगंधित तेल से स्नान करना चाहिए। सूर्योदय के बाद स्नान करने वाले को नर्क समान यातना भोगनी पड़ती है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि ऋतु परिवर्तन के कारण त्वचा में आने वाले परिवर्तन से बचने के लिए भी विशेष तरीके से स्नान किया जाता है। रूप चौदस पर विशेष उबटन के जरिए और गर्मी और वर्षा ऋतु के दौरान बनी परत को हटाने के लिए विशेष उबटन का स्नान करना चाहिए।
रूप चौदस की कहानी
भगवान के ध्यान में तल्लीन एक योगी ने समाधि लगाई, लेकिन कुछ ही समय बाद उसके शरीर और बालों में कीड़े पड़ गये। इससे परेशान योगी की समाधी टूट गई। अपने शरीर की दुर्दशा देख योगी काफी दुखी हुआ। इस दौरान नारदजी वहां से वीणा बजाते हुए गुजर रहे थे। योगी ने नारद जी को रोककर पूछा कि प्रभु चिंतन में लीन होने की चाह होने पर भी उसकी यह दुर्दशा क्यों हुई। इस पर नारद जी बोले कि आपने प्रभु चिंतन तो किया लेकिन देह आचार नहीं किया। समाधि में लीन होने से पहले देह आचार कर लेने से यह परेशानी नहीं होती। इस पर योगीराज ने परेशानी दूर करने के बारे में पूछा तो नारद जी ने कहा की रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल की मालिश कर पानी में अपामार्ग ( चिचड़ी ) का पौधा डालकर उससे स्नान करने के बाद व्रत रखते हुए विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने पर शरीर स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा। नारद जी की बात को मान योगिराज ने वही सब किया जिससे वे स्वस्थ और रूपवान हो गए। माना जाता है कि उसी वक्त से रुप चौदस या नरक चतुर्दशी मनाने की परंपरा शुरू हुई।