किसानों की खुशहाली पर खुली सरकार की पोल, खातेगांव में हल में बैल की जगह जुते पिता-पुत्र

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देवास। किसान खुशहाल है, वो आत्महत्या करता है, दाने-दाने को तड़पता है, अपने बच्चों को कपड़े पहनाने को तरसता है, बैलों की जगह खुद हल में जुतता है, लेकिन वो खुशहाल है। वो इसलिए खुशहाल है क्योंकि सरकार कहती है कि वो खुशहाल है। वो अपने बारे में क्या सोचता है ये मायने नहीं रखता, मायने ये रखता है कि सरकार उसके बारे में क्या सोचती है।
Open government pole on the prosperity of farmers, father-son sleeping in place of bull in Khangadong
सरकार के मुलाजिम-मंत्री उसके बारे में क्या सोचते हैं। क्या हुआ अगर वो गरीबी की वजह से पट्टे में मिली जमीन को जोतने के लिए बैलों की जगह खुद ही जुत जाता है। हो सकता है ये हुक्मरानों को बदनाम करने की उसकी साजिश हो, लेकिन वो है तो खुशहाल ही। देवास के खातेगांव तहसील के पुरोनी पठार गांव से सामने आई ये तस्वीर किसान की खुशहाली के तमाम दावों को आईना दिखाती है। ये तस्वीर सरकार में शामिल हर उस नेता के बयान की पोल खोलती है जो कहता है कि किसान परेशान नहीं है।

धूल सिंह को पट्टे पर कुछ जमीन मिली थी ताकि वे अपनी गुजर-बसर कर सकें। धूलसिंह को मिली जमीन इतनी पथरीली है कि बमुश्किल उस पर वे खेती कर पाते हैं। इस खेती से इतनी उपज भी नहीं होती कि उनके परिवार का पेट भर सके, बैल खरीदना या ट्रैक्टर किराये पर लेकर खेत जुतवाना तो दूर की बात है। यही वजह है कि खेत जोतने के लिए बैलों की जगह पिता-पुत्र हल में जुत जाते हैं। जबकि उनकी पत्नी पीछे बोहनी करती हुई चलती है।

देवास के इस किसान की ये तस्वीर उस हकीकत को बयां करती है जिसे देखने में सियासतदानों की आंखें कमजोर पड़ जाती हैं। या फिर उनके एयरकंडीशन्ड दफ्तर आम लोगों से कई प्रकाशवर्ष दूर, इतनी ऊंचाई पर हैं जहां से ये दर्दनाक तस्वीरें नजर ही नहीं आती।