हमको लोकतंत्र बचाना है

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दिमाग की बात
सुधीर निगम

जनता को हो या न हो, इन दिनों सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों का मुख्य काम या मुद्दा लोकतंत्र बचाने का हो गया है। यहां किसी को विकास की चिंता नजर नहीं आ रही। ऐसा प्रतीत होता है कि विकास तो पैदा होने के बाद ही कुपोषण का शिकार हो गया है। उसकी लंबाई-चौड़ाई बढ़ नहीं पा रही है। आंगनबाड़ी की व्यवस्था अच्छी नहीं है यार।
We have to save democracy
खैर छोड़िए, मै भी कहां विकास को लेकर बैठ गया। असली मुद्दा तो लोकतंत्र है। लोकतंत्र को खतरा हुआ तो विकास की तो वैसे ही बाट लग जाएगी। पक्ष-विपक्ष दोनों लगातार इसी बात पर दुबले हो रहे हैं कि दूसरे दल (जो भी उनके विरोधी हैं) लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं। सो इसकी जानकारी जनता को देना तो बनता है बॉस। तो चढ़ गए एक-दूसरे पर राशन-पानी लेकर।

एक दल को 43 साल पुरानी इमरजेंसी याद आ गई, तो दूसरी वर्तमान को ही अघोषित आपातकाल बताकर खतरनाक मान रही है। हम तुम्हें हिटलर कहें, तुम हमें औरंगजेब, और जनता वो बस वोटर है, इनकी नजरों में हमारी आपकी औकात इससे ज्यादा नहीं। अब गौर कीजिए। इंदिरा गांधी ने अपनी जिद में इमरजेंसी लगाकर लोकतंत्र का गला घोंटा था, जनता ने सजा भी दी सत्ता से बाहर फेंक कर।

इस समय उसका जिक्र इतनी शिद्दत से क्यों हो रहा है, तो भाइयों चुनाव में एक साल भी नहीं बचा, अब नहीं तो क्या 2020 में याद करेंगे उस काले अध्याय को। मध्यप्रदेश विधानसभा में तो इमरजेंसी को इतने दिल से याद किया गया कि मात्र पाँच दिन का सत्र दो दिन में निपट गया। लोकतंत्र की दुहाई देते देते ये क्या हो गया।

आपातकाल में लोकतंत्र का गला घोंटा गया था, इसे भी कम से कम खरोंच मारना तो कह ही सकते हैं। दोनों ही बड़े दल वर्तमान में लोकतंत्र के बहुत बड़े हिमायती है, आप मेरी बात नहीं मान रहे तो उनके क्रियाकलाप देख लो। एक पार्टी में दो के अलावा तीसरे की नहीं चलती, तो दूसरी उससे भी आगे है वहाँ तो कोई दूसरा भी नहीं है। भाई आप दोनों एक कृपा करो लोकतंत्र की चिंता छोड़ दो। जनता को पता है कि लोकतंत्र को खतरा किससे है। और सनद रहे लोकतंत्र की घुट्टी पिलाने वालों, जनता जब घुट्टी पिलाती है तो वो पांच साल तक असर दिखाती है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है