नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज विधि निर्माता (सांसद या विधायक) के वकील के रूप में वकालत करने पर पाबंदी की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इधर, केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सांसद फुल टाइम कर्मचारी नहीं हैं. वो जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं और उनका कोई नियोक्ता नहीं है, इसलिए वो प्रैक्टिस कर सकते हैं.
Supreme Court reserves order, advocates law and order, MP opposes the decision
वहीं, बार काउंसिल आॅफ इंडिया ने भी कहा कि सासंद बतौर वकील कोर्ट में पेश हो सकते है. सुप्रीम कोर्ट बीजेपी नेता अश्वनी उपाधयाय की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. बीजेपी नेता अश्वनी उपाधयाय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सासंदों, विधायकों को बतौर वकील कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोक की मांग की है.
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि बार काउंसिल के विधान और नियमावली के मुताबिक कहीं से वेतन पाने वाला कोई भी व्यक्ति वकालत नहीं कर सकता. क्योंकि वकालत पूर्णकालिक पेशा है. ऐसे में सांसद और विधायक जब सरकारी खजाने से वेतन और भत्ते लेते हैं तो कोर्ट में प्रैक्टिस कैसे कर रहे हैं. याचिका में कहा गया है कि जब तक कोई भी सांसद या विधायक जैसे पद पर है तब तक उसकी वकील के रूप में प्रैक्टिस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए. शपथ लेते ही उसका लाइसेंस तब तक सस्पेंड कर देना चाहिए जब तक वो सांसद या विधायक है.
उपाध्याय ने इस बाबत सुप्रीम कोर्ट का 1994 में आया जजमेंट भी अटैच किया है. इसमें प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर को कोर्ट ने कहा कि, वो तब तक वकालत के योग्य नहीं माने जाएंगे जब तक कि वो डॉक्टर के पद से इस्तीफा ना दे दें. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब डॉक्टर एक साथ दो जगह से वेतन और भत्ते लेकर वकालत नहीं कर सकता तो सांसद और विधायक कैसे प्रैक्टिस कर सकते हैं.