प्रभु के प्रति अटूट प्रेम और विश्वास का इससे बेहतरीन उदाहरण कहां मिलेगा कि भक्त अपने प्रभु को बीमार मानकर एक नन्हे शिशु की भांति उनकी सेवा करते हैं। उन्हें देसी वस्तुओं से बना काढ़ा पिलाया जाता है। इस वक्त उन्हें चटपटी चीजें नहीं बल्कि केवल मौसमी फल और परवल का जूस दिया जाता है। 15 दिन के उपचार के बाद भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होते हैं और अपने भाई बलभद्रजी और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के यहां भेंट करने जाते हैं।
Sad Lord Jagannath’s child-like service, 14 will be the rath yatra
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्या तक अपने प्रभु को बीमार मानकर एक बालक की भांति उनकी सेवा की जाती है। इस दौरान मंदिर के पट बंद रहते हैं और भगवान को सिर्फ काढ़े का ही भोग लगाया जाता है। आप सोच रहे होंगे कि भला जगत के पालनहार भगवान कैसे बीमार पड़ सकते हैं तो आइए हम आपको बताते हैं
भगवान के बीमार पड़ने के पीछे क्या है पौराणिक कथा
पुराणों में बताया गया है कि राजा इंद्रदुयम्न अपने राज्य में भगवान की प्रतिमा बनवा रहे थे। उन्होंने देखा कि शिल्पकार उनकी प्रतिमा को बीच में ही अधूरा छोड़कर चले गए। यह देखकर राजा विलाप करने लगे। भगवान ने इंद्रदुयम्न को दर्शन देकर कहा, ह्यविलाप न करो। मैंने नारद को वचन दिया था कि बालरूप में इसी आकार में पृथ्वीलोक पर विराजूंगा।ह्ण तत्पश्चात भगवान ने राजा को ओदश दिया कि 108 घट के जल से मेरा अभिषेक किया जाए। तब ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा थी।
तब से यह मान्यता चली आ रही है कि किसी शिशु को यदि कुंए के ठंडे जल से स्नान कराया जाएगा तो बीमार पड़ना स्वाभाविक है। इसलिए तब से ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्या तक भगवान की बीमार शिशु के रूप में सेवा की जाती है। इस साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 27 जून को थी। जब से प्रभु को बीमार मानकर उनका इलाज चल रहा है और 14 जुलाई को रथ यात्रा से एक दिन पहले वह स्वस्थ होते हैं। तब उन्हें मंदिर के गर्भ गृह में वापस लाया जाता है।
14 जुलाई को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी रोहिणी से भेंट करने गुंडीचा मंदिर जाते हैं। भगवान के गुंडीचा मंदिर में आने पर यहां उत्सवों और सांस्कृति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यहां तरह-तरह के पकवान से प्रभु को भोग लगाया जाता है। भगवान यहां 7 दिन तक रहते हैं और उसके बाद वापस अपने मंदिर में लौट जाते हैं।