नई दिल्ली। अक्सर चर्चाओं और बहसों में यह सुनने को मिलता है, ‘तुम्हें बस इससे तकलीफ है, वहां सीमा पर जवानों को देखो…।’ ऐसी बहस से दूर सरहद के रखवाले तमाम मुश्किलों से जूझते हुए बस एक ही बात दिमाग में रखते हैं, वह है देश की रक्षा। पाकिस्तान से लगी लाइन आॅफ कंट्रोल यानी नियंत्रण रेखा का जिक्र आते ही कंटीली तारों से उलझी एक तस्वीर सामने आती है, लेकिन क्या असल में तस्वीर बस इतनी ही है?
Where the breath is also difficult, the army is stationed 24 hours.
आमतौर पर लोग समझते हैं कि लाइन आॅफ कंट्रोल कोई रेखा है, जो दो देशों को बांटती है लेकिन असलियत एकदम उलट है। यह सीमा का जटिल बंटवारा है, जहां सीमा कहीं ऊंचे पहाड़ों के रूप में है, कहीं गहरी खाइयों के तो कहीं दुर्गम तलहटियों के। हम करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर एलओसी के पास एक निगरानी चौकी पर गए, जहां अचानक आॅक्सीजन की कमी से सांसें उखड़ने-सी लगीं, सांसें संभालने में कुछ वक्त लग गया। यहां लाइफ बेहद मुश्किल है लेकिन जवानों के इरादे उससे कहीं ज्यादा मजबूत हैं।
चौकी की एक दीवार पर लिखा है, ‘अगर शांति चाहते हो तो हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहो।’ यही सेना का मंत्र है। एलओसी पर मौजूद कमांडिंग आॅफिसर कहते हैं कि यहां मुश्किल नहीं बल्कि चुनौतियां हैं और चुनौती के साथ मौका भी है। वह मौका जो दूसरी जगहों पर नहीं है। यहां जवान अपने देश की टेरिटोरियल इंटिग्रिटी (क्षेत्रीय अखंडता) को बरकरार रखता है। यहां 4 तरह की चुनौतियों से निपटना होता है। दुश्मन की आंख में आंख डालकर मुकाबला, घुसपैठियों की कोशिश और साजिश नाकाम करना, जवानों का खुद फिट रहना और मौसम की मार।
वह कहते हैं कि जब 20 फीट ऊंची बर्फ जमा हो जाती है तब भी पलटन की इज्जत के लिए जवान कुछ भी कर सकता है। देश की रक्षा और पलटन की इज्जत ही वह मंत्र है जो आर्मी को ड्राइव करती है। देश के कई कोनों में जब कई घटनाएं, कई विरोध, कई प्रदर्शन हो रहे होते हैं और बातचीत आकर जवानों पर टिक जाती है। ह्यतुम्हें इससे तकलीफ है, सेना पर जवान को देखो जैसे डायलॉग जब देश भर में घूम रहे होते हैं तब भी सरहद के रखवाले उसी मुस्तैदी से डटे होते हैं। उनके नाम पर कहां, क्या कहा जा रहा है इससे बेफिक्र उनका बस एक ही फोकस है, वह है देश की रक्षा। देशवासियों से वह बस इतना कहना चाहते हैं कि भरोसा रखें।
रात के वक्त जहां बादलों से ढकी चांद की रोशनी में दो कदम चलना भी मुश्किल है वहां जवानों की चौकस निगाहें अंधेरे को चीरते हुए हर रास्ता नाप रही हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं दुश्मन का कोई कदम यहां पड़ा तो नहीं। वह भी इस अंदाज में कि कदमों की जरा भी आहट न हो। क्योंकि दुश्मन भी कहीं घात लगाकर बैठा हो सकता है। कमांडर कहते हैं कि यह सरप्राइज का खेल है जिसने अपना धैर्य खोया, जिसने अपना सरप्राइज खोया वह ट्रैप में फंसा। बारिश हो या बर्फ, यहां न चौकसी में कमी आती है न ही ट्रेनिंग में।