31 जुलाई 1980 का वो दिन,
जो आवाज की दुनियां के शहंशाह मो.रफी के जिस्म से रूह को अलग कर गया , यानि रफी साहब इस फानी दुनियां को अलविदा कह गए, वैसे भी इस फानी दुनियां से एक दिन सभी को जाना है । कुछ लोग जिन्दगी की जद्दोजहद में उलझ कर गुमनाम चले जाते हैं और कुछ लोग अपनी पहचान से अमर हो जाते हैं। इन्ही अमर लोगो मे एक चमकता नाम है मो. रफी
हम कह सकते हैं कि अगर एक ही गीत में इजहार-ए-इश्क की एक सौ एक विधाएं दिखानी हों, तो सिर्फ एक ही गायक का नाम जुबान पर आता है वो थे मोहम्मद रफी, वैसे तो आपने रफी साहब के बारे में आप ने बहुत पढ़ा और सुना होगा मगर आज कुछ हटकर बताने का प्रयास है जैसा की आप जानते ही हैं कि चाहे वो प्रेम का तराना हो , अल्हड़पन,दिल टूटने की व्यथा हो, परिपक्व प्रेम के उद्गार हों, प्रेमिका से प्रणय निवेदन हो या सिर्फ़ उसके हुस्न की तारीफ…
You will not forget me
इश्क विश्क को छोड़ भी दीजिए इंसानी ख्यालात या भावनाओ के जितने भी पहलू हो सकते हैं… दुख, खुशी, आस्था या देशभक्ति या फिर गायकी का कोई भी रूप हो भजन, कव्वाली, लोकगीत, शास्त्रीय संगीत या गजल, मोहम्मद रफी साहब के तरकश में सभी तीर मौजूद थे.जो आवाज से लोगों के दिलों में उतरने के लिए काफी थे आज भी हैं और हमेशा रहेंगे..
एक किस्सा मुझे मालूम हुआ
एक बार मो रफी साहब को श्रीलंका आमन्त्रित किया गया कि चार फरवरी 1980 को श्रीलंका के स्वतंत्रता दिवस पर रफी साहब को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक शो करने का आमंत्रण मिला । रफी साहब वहां पहुचे ,उस दिन उनको सुनने के लिए लगभग 12 लाख कोलंबोवासी जमा हुए थे, जो उस समय का विश्व रिकॉर्ड था.
श्रीलंका के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और प्रधानमंत्री प्रेमदासा उद्घाटन के तुरंत बाद कई कार्यक्रमो में भाग लेने जाने वाले थे. लेकिन रफी साहब के जबर्दस्त गायन ने उन्हें रुकने पर मजबूर कर दिया और वह कार्यक्रम खत्म होने तक वहां से हिले नहीं.
मोहम्मद रफी की बहू यास्मीन खालिद रफी, जिन्होंने रफी साहब की जीवनी भी लिखी है अपनी किताब में कहती हैं कि रफी साहब की आदत थी कि जब वह विदेश के किसी शो में जाते थे तो वहां की भाषा में एक गीत जरूर सुनाते थे. उस दिन कोलंबो में भी उन्होंने सिंहला में एक गीत सुनाया और सबको आवाज के जादू से हैरान कर दिया।
यहां ये बताना जरूरी है कि रफी साहब ने न सिर्फ हिंदी उर्दू में बल्कि मराठी,तेलगु,उड़िया,सिंधी पंजाबी सहित भारत की लगभग हर भाषाओं में सफल गाने गए है। साथ ही पश्तो, इंग्लिश सहित कई विदेशी भाषाओं में भी गाने गाए है।
मशहूर संगीतकार खय्याम याद करते हुए कहा था कि, “1949 में मेरी उनके साथ पहली गजल रिकॉर्ड हुई जिसे वली साहब ने लिखा था.. अकेले में वह घबराते तो होंगे, मिटाके वह मुझको पछताते तो होंगे. रफी साहब की आवाज के क्या कहने! जिस तरह मैंने चाहा उन्होंने उसे उससे अच्छा गाया. जब ये फिल्म रिलीज हुई तो ये गाना रेज आॅफ द नेशन हो गया.”
मोहम्मद रफी साहब के करियर का सबसे बेहतरीन वक़्त था 1956 से 1975 तक का समय. इस बीच उन्होंने कुल छह फिल्मफेयर पुरस्कार जीते और रेडियो सीलोन से प्रसारित होने वाले बिनाका गीत माला में दो दशकों तक छाए रहे.
रफी साहब के बेटे शाहिद रफी से हमने उनके वालिद के बारे में पूछा कि रफी साहब की सादगी के किस्से इतने मशहूर हैं आप भी कुछ बताइये तो उन्होंने बताया, ” हमे कभी एहसास भी नहीं हुआ कि अब्बा (रफी साहब) इतने बड़े गायक हैं घर मे हम लोगों (अपने परिवार) के साथ कैरम खेलना , पतंग उड़ाना बिल्कुल सादगी से रहना ..बहुत धीरे बात करना किसी दूसरो की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना उनकी आदत थी”।
यही संस्कार शाहिद रफी में मुझे देखने को मिले ।
रफी साहब ने फिल्मी और गैर फिल्मी गीतों जान भर दी थी । एक से बढ़कर एक गाने…
वहीं शाहिद रफी की पत्नी फिरदौस शाहिद रफी बताती हैं कि अब्बा (रफी साहब) के इंतेकाल के बाद उनकी शादी हुई लेकिन जहां भी हम जाते हैं उनकी (रफी साहब) की बहू के रूप में मुझसे सबका मिलना और परिचय ही मेरे लिए बहुत इज्जत की बात है।
कहते हैं समय सबका एक जैसा नहीं होता, ये बात रफी साहब के साथ भी हुआ।
इसी दौरान ‘आराधना’ फिल्म रिलीज हुई. राजेश खन्ना ने पूरे भारत को चकाचौंध कर दिया और आरडी बर्मन ने बड़े संगीतकार बनने की तरफ अपना पहला बड़ा कदम बढ़ाया.
इलस्ट्रेटेड वीकली आॅफ इंडिया के पूर्व सह-संपादक राजू भारतन कहते हैं, “आराधना के सभी गाने पहले रफी ही गाने वाले थे. विदेशी दौरे में रफी साहब मसरूफ न होते,एसडी बर्मन बीमार नहीं पड़ते और आरडी बर्मन ने उनका काम नहीं संभाला न होता तो किशोर कुमार सामने आते ही नहीं और वैसे भी ‘आराधना’ के पहले दो डुएट रफी साहब ने ही गाए थे.”
जिन अभिनेताओं के लिए रफी साहब गा रहे थे… दिलीप कुमार, धर्मेंद्र, जीतेंद्र और संजीव कुमार, वे पुराने पड़ गए थे और उनकी जगह नए अभिनेता ले रहे थे और उनको नई आवाज की जरूरत थी. आरडी बर्मन जैसे संगीतकार उभर कर सामने आ रहे थे और उन्हें कुछ नया करके दिखाना था.” फिर बाद में उन्होंने भी रफी साहब से कई गाने गवाए..
अचानक फिल्म इंडस्ट्री एक अफवाह फैली की हज करने के बाद रफी साहब ने गाना गाना छोड़ दिया। मगर जल्द ही इस अफवाह की हवा निकल गई। और लक्ष्मी कांत प्यारे लाल जैसे संगीतकारो ने रफी साहब से बहुत ही खूबसूरत गाने गवाए जो काफी मशहूर भी हुए। जानेमाने ब्रॉडकास्टर अमीन सयानी मोहम्मद रफी साहब और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी के बारे में एक दिलचस्प किस्सा सुनाया था.
सयानी कहते हैं, “एक बार लक्ष्मीकांत ने मुझे बताया कि जब वो पहली बार रफी साहब के पास गाना रिकॉर्ड कराने के लिए गए तो उन्होंने उनसे कहा कि हम लोग नए हैं इसलिए हमें कोई प्रोड्यूसर बहुत ज्यादा पैसे भी नहीं देगा. हमने आपके लिए एक गाना बनाया है. अगर आप इसे गा दें कम पैसों में तो बहुत मेहरबानी होगी.”
साहब ने धुन सुनी. उन्हें बहुत पसंद आई और वह उसे गाने के लिए तैयार हो गए. रिकॉर्डिंग के बाद वह रफी साहब के पास थोड़े पैसे लेकर गए. रफी साहब ने पैसे यह कहते हुए वापस लौटा दिए कि यह पैसे तुम आपस में बांट लो, ये फिल्म थी पारसमणि इसके बाद लक्ष्मीकांत प्यारे लाल ने दोस्ती फिल्म भी रफी साहब गवाया पैसे की बात पर रफी साहब ने मना कर दिया बहुत इसरार करने पर केवल 1 रु लिया।
*स्टाइलिश घड़ियों और कारों के शौकीन*
रफी साहब बहुत कम बोलने वाले, जरूरत से ज्यादा विनम्र और मीठे इंसान थे. उनकी बहू यास्मीन खुर्शीद बताती हैं कि न तो वह शराब या सिगरेट पीते थे. बॉलीवुड की पार्टियों में भी जाने का उन्हें कोई शौक नहीं था. घर पर वह सिर्फ़ तहमद-कुर्ता ही पहनते थे लेकिन जब रिकॉर्डिंग पर जाते थे तो हमेशा सफेद कमीज और पतलून पहना करते थे.
उनको स्टाइलिश घड़ियों और फैंसी कारों का बहुत शौक था. लंदन की कारों के रंगों से वो बहुत प्रभावित रहते थे इसलिए एक बार उन्होंने अपनी फिएट कार को तोते के रंग में हरा रंगवा दिया था. उन्होंने एक बार मजाक भी किया था कि वह अपनी कार को इस तरह से सजाते हैं जैसे दशहरे में बैल को सजाया जाता है. रफी साहब वह बहुत अच्छे मेहमाननवाज भी थे. दावतें देने का उन्हें बहुत शौक था. उनके नजदीकी दोस्त खय्याम बताते हैं कि रफी साहब ने कई बार उन्हें और उनकी पत्नी जगजीत कौर को साथ खाने पर बुलाया था और उनके यहाँ का खाना बहुत उम्दा हुआ करता था।
*मोहम्मद अली से मुलाकात*
रफी साहब को बॉक्सिंग के मुकाबले देखने का बहुत शौक था और मोहम्मद अली उनके पसंदीदा बॉक्सर थे. 1977 में जब वह एक शो के सिलसिले में शिकागो में मो.अली से मुलाकात भी की और बोले मैं आपका फेन हूँ. मो. अली ने ये सुन कर गले लगा लिया कि इतना बड़ा कलाकार मेरा फेन है ..इतनी सादगी सिर्फ और सिर्फ महान गायक मो.रफी साहब में ही हो सकती है। मैं ये कह सकता हूँ कि रफी साहब जैसा सिंगर ,अभी तक पैदा हुआ न हुआ भले ही सरकार ने उन्हें भारत रत्न से अभी तक नहीं नवाजा..मगर वो भारत के रत्न थे, है और हमेशा रहेंगे, लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा थे, हैं और रहेंगें
लेखक
जावेद खान
पत्रकार है