नई दिल्ली। असम में नैशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन्स (एनआरसी) का फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद से राजनीतिक घमासान जारी है। पहली लिस्ट में करीब 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हैं। विपक्षी दल जहां इस पर हमलावर हैं, वहीं राज्यसभा में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बयान ने फिर से राजनीतिक भूचाल ला दिया। शाह ने कहा कि एनआरसी लाने का श्रेय राजीव गांधी को है, लेकिन दूसरी सरकारों में इसे लागू करने की हिम्मत नहीं थी। जानें एनआरसी पर क्या है विवाद और कैसे हुई शुरूआत…
NRC controversy: Shock in politics by Shah’s statement, said – Rajiv Gandhi did Assam Accord
देश में असम ही एक मात्र राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है। असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से थोड़ा अलग है। प्रदेश में 1985 से लागू असम समझौते के अनुसार, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा।
असम में 1980 में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हावी था। पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बनने के बाद से असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का अवैध प्रवेश चल रहा था। घुसपैठ के मुद्दे ने राज्य की राजनीति में भी जोर पकड़ा और सिटिजनशिप रजिस्टर अपडेट करने को लेकर आंदोलन खड़ा हो गया। इसका नेतृत्व अखिल असम छात्र संघ (आसू) और असम गण परिषद ने किया था। आंदोलन की आंच राष्ट्रीय राजनीति तक भी पहुंच गई और 1985 में केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ।
असम गण परिषद और अन्य आंदोलनकारी नेताओं के बीच असम समझौता हुआ। राजीव गांधी ने अवैध बांग्लादेशियों को प्रदेश से बाहर करने का आश्वासन दिया था। इस समझौते में कहा गया कि 25 मार्च 1971 तक असम में आकर बसे बांग्लादेशियों को नागरिकता दी जाएगी। इस तय समय के बाद आए बाकी लोगों को राज्य से डिपोर्ट किया जाएगा।
असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित कई अन्य संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। असम के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था। 2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में यह काम शुरू हुआ और 2018 जुलाई में फाइनल ड्राफ्ट पेश किया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने, जिन 40 लाख लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं, उन पर किसी तरह की सख्ती बरतने पर फिलहाल के लिए रोक लगाई है।