गुवाहाटी। असम में नैशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजंस (एनआरसी) का फाइनल ड्राफ्ट जारी होने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आग बबूला हैं। हालांकि, खुद बंगाल सरकार एनआरसी की ओर से भेजे दस्तावेजों की जांच-पड़ताल में सबसे पीछे है। एनआरसी स्टेट कोआॅर्डिनेटर ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया है उसके अनुसार पश्चिम बंगाल को एनआरसी की तरफ से 1.14 लाख दस्तावेज वेरिफिकेशन के लिए भेजे गए थे, जिनमें से सिर्फ 6 फीसदी को ही बंगाल सरकार ने वापस भेजा।
West Bengal behind the investigation of documents sent by NRC
असम में रहनेवाले ऐसे लोगों का यह आंकड़ा था जो जॉब या शादी के कारण वहां रह रहे हैं। पहली लिस्ट में 40 लाख लोगों के नाम नहीं होने पर ममता बनर्जी लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। ममता का दावा है कि केंद्र सरकार खास तौर पर बंगाल से असम में रहने गए लोगों को लिस्ट से निकाल रही है।
पश्चिम बंगाल के बाद बिहार, चंडीगढ़, मणिपुर और मेघालय प्रांत हैं जहां से दस्तावेजों की पुष्टि सबसे कम हुई है। इन सभी राज्यों से सिर्फ 2 से 7 फीसदी तक ही नागरिकों का सत्यापन हो सका है। 5 लाख लोगों का नाम एनआरसी की पहली लिस्ट में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं हो सका है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार की संस्थाएं दस्तावेजों की जांच कर प्रमाणित करने का काम नहीं कर पाई। सरकारी लाल फीताशाही की लेट-लतीफी के कारण 5 लाख लोग लिस्ट में शामिल होने से रह गए।
एनआरसी के स्टेट कोआॅर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने 5.7 लाख दस्तावेज 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जांच-पड़ताल के लिए भेजे थे। एनआरसी की तरफ से भेजे दस्तावेजों के आधार पर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को जांच कर यह बताना था कि असम में रहने वाले लोग संबंधित राज्य या संघ शासित प्रदेश के हैं, लेकिन जीवन परिस्थितियों के कारण असम में रह रहे हैं। इन दस्तावेजों में बर्थ सर्टिफिकेट, चुनाव प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेज और असम से पूर्व में रहने वाले राज्य का डोमिसाइल आदि शामिल थे।