अब मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद मिलेगा गुजारा भत्ता, और प्रापर्टी में हिस्सा

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मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने तलाक के बाद मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता, मेहर और प्रॉपर्टी में हिस्सा देने का आदेश दिया। साथ ही यह भी कहा कि अगर मुस्लिम मैरेज ऐक्ट 1939 के तहत इन राहतों के लिए कोर्ट के अधिकार का जिक्र नहीं है तो भी कोर्ट के आदेश को खारिज नहीं किया जा सकता। यह नहीं कहा जा सकता है कि कोर्ट के पास ऐसे अधिकार हैं ही नहीं।
Now Muslim women will get alimony after divorce, and share in property
दरअसल, 2011 में एक महिला की अपील पर ठाणे सिविल कोर्ट ने तलाक की राहत दी थी। साथ ही महिला के पति को मेहर की राशि, दो नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता और प्रॉपर्टी में 50 फीसदी हिस्से का आदेश भी दिया था। ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को पति ने जिला अदालत में चुनौती दी जहां से केस खारिज होने के बाद उसने हाई कोर्ट का रुख किया था।

हाई कोर्ट में जस्टिस शालिनी फंसलकर जोशी ने भी सिविल कोर्ट के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने अपने फैसले में कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि मुस्लिम मैरेज ऐक्ट 1939 के विच्छेद में कोर्ट के पास इस तरह की राहत देने के लिए अधिकार क्षेत्र या शक्ति का जिक्र नहीं है, यह नहीं कहा जा सकता कि अदालत को इसे देने का अधिकार नहीं है। अगर यह प्रासंगिक है, क्लेम किया गया है और कोर्ट जरूरी समझता है तो इसे दिया जा सकता है।’

‘कोर्ट के फैसले को गुमराह नहीं किया जा सकता’
पति की अपील को खारिज करते हुए जज ने कहा कि कोर्ट का कर्तव्य है कि मौलिक न्याय हो और इसे शब्दावलियों या परिभाषिक शब्दों द्वारा गुमराह नहीं किया जा सकता है। जज शालिनी ने कहा, ‘यह कानून ही है जो तय करता है कि सभी विवादों का निवारण एक ही फोरम में होना चाहिए ताकि कार्यवाही की बहुलता से बचा जा सके। उन्होंने आगे कहा कि गुजारा भत्ता और वैवाहिक संपत्ति में अधिकार शादी या फिर इसके टूटने के परिणामस्वरूप होते हैं। ये राहत शादी के टूटने के अदालती हुक्म का अभिन्न हिस्सा है।’