ई-टेंडरिंग घोटाला: दो महीने में न एफआईआर न गिरफ्तारी, ईओडब्ल्यू में जाकर दब गई हजारों करोड़ रुपए की गड़बड़ी

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भोपाल। प्रदेश में दो महीने पहले उजागर हुए ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच कर रही राज्य आर्थिक अपराध अन्बेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)ने अभी तक न तो कोई एफआईआर दर्ज की है और न ही कोई गिर तारी की है। जांच एजेंसी दो महीने से सिर्फ प्राथमिक पड़ताल में ही जुटी है। जबकि यह घोटाला पूरी तरह से आईटी पर निर्भर है। जांच एजेंसी ने अभी तक घोटाले से जुड़े किसी भी स श को नोटिस देकर पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया है।
E-tendering scam: neither FIR nor arrest in two months, thousands of crores of rupees thrown into EOW
ई-टेंडरिंग घोटाला उजागर होने के बाद राज्य सरकार ने आनन-फानन में जांच का जि मा ईओडब्ल्यू को सौंपा गया था। मुख्य सचिव बीपी सिंह ने इस घोटाले में तत्काल एफआईआर करने को कहा था, लेकिन जांच एजेंसी ने अभी तक किसी के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज नहीं की है। खास बात यह है कि जांच एजेंसी ने घोटाले में शामिल किसी भी अधिकारी, ठेकेदार या आईटी कंपनियों के अफसरों से पूछताछ नहीं की है।

ऐसे पकड़ा गया था घोटाला
ई-टेंडरिंग घोटाले का खुलासा सबसे पहले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) के टेंडर प्रक्रिया में हुआ था। एक सजग अधिकारी द्वारा पाया गया कि ई-प्रोक्योंरमेंट पोर्टल में टे परिंग करके हजार करोड़ रुपए मूल्य के तीन टेंडरों के रेट बदल दिए गए थे। इस मामले में गड़बड़ी को लेकर विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने पीएचई के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल को पत्र लिखा।

इसके बाद, तीनों टेंडर निरस्त कर दिए गए। खास बात यह है कि इनमें से दो टेंडर उन पेयजल परियोजनाओं के हैं, जिनका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 जून को किया था। दरअसल, इस पूरे खेल में ई-पोर्टल में टेंपरिंग से दरें संशोधित करके टेंडर प्रक्रिया में बाहर होने वाली कंपनियों को टेंडर दिलवा दिया जाता था। इस तरह से मनचाही कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट दिलवाने का काम बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया जाता रहा है।

इस खुलासे ने एक तरह से मध्यप्रदेश में ई-टेंडरिंग व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है और इसके बाद एक के बाद एक कई विभागों में ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम में हुए घपलों के मामले सामने आ रहे हैं। अभी तक अलग-अलग विभागों के हजारों करोड़ रुपए से ज्यादा के टेंडरों में गड़बड़ी सामने आ चुकी है, जिसमें मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एमपीआरडीसी), लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, जल निगम, महिला बाल विकास, लोक निर्माण, नगरीय विकास एवं आवास विभाग, नर्मदा घाटी विकास जल संसाधन सहित कई अन्य विभाग शामिल हैं। खास बात यह है कि ईओडब्ल्यू किसी भी मामले में जांच पूरी नहीं कर पाई है।

आईटी कंपनियों की साख पर सवाल
विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग में राज्य सरकार के पास खुद के कोई एक्सपर्ट नहीं है। निजी कंपनियों की मदद से विभाग में सभी काम हो रहे हैं। प्रदेश में आईटी से जुड़े काम को देश की जानी-मानी कंपनियां कर रही है। आईटी विभाग में ही नहीं व्यापमं से जुड़ी परीक्षाएं कराने में भी आईटी कंपनियां मदद करती है। ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच में ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच में कुछ आईटी कंपनियों की भूमिका भी संदिग्ध है। हालांकि जांच एजेंसी ने अभी तक किसी ाी आईटी कंपनी की भूमिका का खुलासा नहीं किया है।

अभी जांच चल रही है। जांच में क्या तथ्य सामने आए हैं यह अभी उजागर नहीं किया जा सकता है। हां अभी इस मामले में एफआईआर भी नहीं हुई है।
बी मधु कुमार, महानिदेशक, ईओडब्ल्यू